जब दो साल पहले गर्भ निरोधक गोलियां (आइ-पिल) और दूसरी आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियां (ईसीपीएस) बाजार में लाई गईं तो इसमें कोई शक नहीं था कि वे भारतीय महिलाओं में बेहद लोकप्रिय साबित होंगी. इसकी वजह यह कि भारत में हर साल 1.1 करोड़ गर्भपात होते हैं, जो एक रिकॉर्ड है और धक्कादायक बात यह कि गर्भपात से संबंधित समस्याओं के कारण इनमें से 20,000 महिलाओं की मौत हो जाती है. ऐसे में गोली खाकर गर्भधारण की समस्या से निजात पाने का इससे अच्छा उपाय क्या हो सकता है, क्योंकि असुरक्षित सहवास के बाद 12 घंटों के भीतर इसे लेने पर इसकी सफलता की दर 95 फीसदी है. इस अवधि के बाद, इन गोलियों के निर्माताओं का स्पष्ट रूप से कहना है कि यह गर्भनिरोध के लिए कारगर नहीं होगी. वे यह भी स्पष्ट करते हैं कि ये आपातकालीन गर्भनिरोधक हैं, और ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि ये गोलियां नियमित गर्भनिरोध जिसमें अनचाहे गर्भधारण को पूरी तरह रोका जाता है, का विकल्प नहीं हैं.
दुर्भाग्य से भारत में इस तरह के संदेश लोगों तक ठीक से नहीं पहुंचते, जिससे नागरिक संगठनों में इस तरह के आपातकालीन गर्भनिरोधकों की खुलेआम बिक्री को लेकर चिंता बढ़ रही है. यह विवाद मौलिकता को लेकर उठ रहा है, क्योंकि कुछ लोग इन गोलियों के विज्ञापनों पर आपत्ति जता रहे हैं, जिनमें नवयुवतियों को इनकी वास्तविक उपभोक्ता के तौर पर दिखाया जाता है. जैसा कि तमिलनाडु के दवा नियंत्रक एन. सेल्वराजू कहते हैं, ''हम महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन यह नैतिक चिंता का विषय है. इस दवा के विज्ञापन का मतलब होगा कि महिलाए सोचेंगी, 'मैं कुछ भी कर सकती हूं और गर्भवती न होने का यह आसान रास्ता है.' हम इस तरह की प्रवृत्ति बढ़ने की इजाजत नहीं दे सकते.'' राज्य दवा नियंत्रण निदेशालय ने तो एक प्रसिद्ध तमिल पत्रिका को आइ-पिल का विज्ञापन छापने पर नोटिस तक भेज दिया. भारत में ऐसे कई संगठन हैं जो ईसीपी के विज्ञापनों और इसकी खुलेआम बिक्री कर रोक लगाना चाहते हैं. चेन्नै में महिला अधिकार वाले संगठन और तमिलनाडु सरकार के दवा नियंत्रक निदेशालय का दावा है कि गर्भनिरोधक गोलियों के विज्ञापन ड्रग ऐंड मैजिकल रेमेडीज एक्ट, 1954 का उल्लंघन करते हैं. इस वजह से तमिलनाडु में आइ-पिल की बिक्री को रोका जा रहा है, हालांकि भारतीय दवा महा नियंत्रक (डीसीजीआइ) की ओर से उसे हरी झंडी मिल चुकी है.
दूसरी ओर कुछ महिला अधिकार संगठनों ने ईसीपी को महिलाओं के सबलीकरण का हथियार बताकर उनका स्वागत किया है. पुणे के महिला अधिकार संगठन 'स्त्री' से जुड़ी राजश्री गावडे कहती हैं, ''ऐसा नहीं कि ईसीपी आने के बाद युवा लड़कियां सहवास करने लगीं, यह पहले भी होता था, जैसा कि पूर्व में गर्भपात के आंकड़े बयां करते हैं. अब ईसीपी के कारण समाज में सेक्स की दृष्टि से सक्रिय महिलाओं के लिए गर्भधारण से बचने के रास्ते हो गए हैं. यह बलात्कार की शिकार महिलाओं के लिए एक वरदान है.'' गावडे को उम्मीद है कि इस तरह की गर्भनिरोधक गोलियां खुलेआम बिक्री के लिए उपलब्ध होती रहेंगी. उन्हें डॉक्टर की पर्चों की जरूरत नहीं पड़ेगी.'' इसकी वजह बताते हुए वे कहती हैं, ''पर्ची के लिए डॉक्टर के पास जाने का मतलब होगा इमर्जेंसी के दौरान कीमती समय का नुक्सान.'' युवा लड़कियों के परेशान अभिभावकों, कुछ संगठनों, राज्य सरकारों और भारतीय विज्ञापन परिषद् के दबाव के कारण डीसीजीआइ को इसकी समीक्षा करनी पड़ी है. ईसीपी के समर्थकों के लिए राहत की बात है कि डीसीजीआइ ने इनकी खुलेआम बिक्री की इजाजत दे दी है. उसका कहना है कि ऐसा न करने से इन गोलियों का मूल मकसद ही खत्म हो जाएगा. रूस, ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा और तमाम एशियाई देशों में ये गोलियां खुलेआम बिक्री के लिए उपलब्ध हैं. ये सिर्फ मध्य पूर्व और दक्षिणी अमेरिका के कुछ हिस्सों में धार्मिक आधार पर प्रतिबंधित हैं.{mospagebreak}बहरहाल, ईसीपी को लेकर विवाद जल्दी खत्म होने वाला नहीं है. हालांकि ज्यादातर डॉक्टर इस बात से सहमत हैं कि ईसीपी एक सुरक्षित उपाय है, भले ही उनका लंबे समय तक इस्तेमाल किया जाए. लेकिन यह भी सही है कि इनके दुरुपयोग पर अभी ज्यादा शोध नहीं हुआ है. हालांकि इन गोलियों की निर्माता कंपनियां 'आपात्काल' शब्द पर जोर देती हैं, लेकिन बहुत से डॉक्टरों का कहना है कि युवा महिलाएं, यहां तक कि विवाहित महिलाएं, इनका इस्तेमाल नियमित गर्भनिरोधक गोलियों की तरह करती हैं. बंगलुरू की विज्ञापन कॉपीराइटर रागिनी रविचंदर कहती हैं, ''वास्तव में मैंने इस दवा के 'क्या करें, क्या न करें' निर्देशों को ठीक से नहीं पढ़ा है. मैंने महीने में इन्हें दो से ज्यादा बार इस्तेमाल किया है.''
दवा कंपनियों की ओर से इन गोलियों के बारे में दी गई छपी सामग्री में हिदायत दी जाती है कि ईसीपी का इस्तेमाल एक चक्र में एक से ज्यादा बार न करें, लेकिन अधिकांश लोग इन निर्देशों पर ध्यान ही नहीं देते. अल्पकालीन दुष्प्रभाव के तौर पर जी मचलना या कुछ रक्तस्त्राव की शिकायत हो सकती है. बंगलुरू की समाज विज्ञानी रमानी राजरत्नम कहती हैं, ''समस्या गर्भनिरोधक गोलियों या बाजार में उपलब्ध दूसरी ईसीपी को लेकर नहीं है, समस्या जागरूकता को लेकर है. ये गोलियां इन चेतावनियों के साथ बेची जानी चाहिए कि ये गोलियां क्या कर सकती हैं और क्या नहीं कर सकती हैं. गोलियां निगलने भर से फायदा नहीं होगा. पुरुष और महिला दोनों को इनके परिणामों के बारे में जानना जरूरी है.'' बाली क्लीनिक की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. रीता बाली कहती हैं, ''बहुत-सी समस्याएं हैं. इनके फायदे इनके नुक्सान से कहीं ज्यादा हैं. युवा लड़कियों को इनका ताबड़तोड़ इस्तेमाल न करने की सलाह दी जानी चाहिए. विज्ञापनों में इनके आपात्कालीन इस्तेमाल की प्रकृति पर जोर देना चाहिए.''
सालाना करीब 82 लाख गोलियों की बिक्री को देखते हुए दवा कंपनियां इनका खूब विज्ञापन कर रही हैं, लेकिन उनके दुरुपयोग को रोकने के बारे में पर्याप्त जागरूकता नहीं पैदा की जा रही है. विज्ञापनों के चलते लोग इस तथ्य को जान गए हैं कि ये गोलियां अनचाहे गर्भ को रोकती हैं, लेकिन आपात्काल शब्द पर जोर नहीं दिया जा रहा है. सिप्ला की आइ-पिल भारत में सबसे ज्यादा बिकने वाला ब्रांड है, जबकि दूसरे ब्रांडों में मैनकाइंड फार्मा का अनवांटेड-72, जाइडस का ईसी2, विन मेडिकेयर का नारलेवो और पंचशील आर्गेनिक्स का ई-पिल हैं.
डॉक्टरों का बड़ा वर्ग इनकी खुलेआम बिक्री का समर्थन करता है, हालांकि कुछ डॉक्टरों का मानना है कि इन्हें डॉक्टरों की सलाह पर दिया जाना चाहिए. लेकिन उन्हें रोकने का यह भी कोई हल नहीं है क्योंकि भारत में शेड्यूल-एच के तहत डॉक्टरों की सलाह पर मिलने वाली दवाएं भी खुलेआम बिकती हैं. हैदराबाद के डॉ. राकेश मल्होत्रा, जो ईसीपी को सुरक्षित मानते हैं, कहते हैं, ''इसे डॉक्टरों की सलाह पर दी जाने वाली दवा बनाने से धोखाधड़ी ही बढ़ेगी, वक्त बर्बाद होगा और निश्चित रूप से गर्भपात के मामले बढ़ेंगे.'' स्त्री रोग विशेषज्ञ बाल कृष्णन बडीगर के मुताबिक, ''लोगों को समझना चाहिए कि एक आइ-पिल नियमित गर्भनिरोधकों का विकल्प नहीं हो सकती. उसके साथ ही इनका इस्तेमाल आपात्काल में ही करना चाहिए और ये गोलियां एड्स या दूसरे संक्रामक यौन रोगों से बचाव नहीं कर सकती हैं.'' इन दवाओं के बारे में जरूरी निर्देशों को स्पष्ट रूप से प्रकाशित करने की तत्काल जरूरत है. साथ ही इनके दुष्प्रभावों और वैधानिक चेतावनी के बारे में भी बताया जाना चाहिए. इससे इनका दुरुपयोग रुकेगा.