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दिल के मरीजों को लूटा जा रहा है, तीन गुने दामों में बेचे जा रहे हैं उपकरण

भारत में चिकित्सा का खर्च बढ़ता जा रहा है और उसका एक कारण यह है कि दवा तथा उपकरण बनाने वाली कई कंपनियां मरीजों से मोटी रकम वसूल रही हैं. इन मरीजों की सुध लेने वाला कोई नहीं है क्योंकि इस फील्ड में कोई रेगुलेटर नहीं है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

भारत में चिकित्सा का खर्च बढ़ता जा रहा है और उसका एक कारण यह है कि दवा तथा उपकरण बनाने वाली कई कंपनियां मरीजों से मोटी रकम वसूल रही हैं. इन मरीजों की सुध लेने वाला कोई नहीं है क्योंकि इस फील्ड में कोई रेगुलेटर नहीं है.

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एक अंग्रेजी अखबार के मुताबिक मेडिकल उपकरण बनाने वाली कंपनियां दिल के मरीजों के लिए बनने वाले स्टेंट (डीईसी) के लिए 60,000 रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक वसूल रही हैं. कुछ तो इससे भी ज्यादा वसूलती हैं जबकि दिल में लगाए जाने वाले स्टेंट की कीमत यूरोप और यूके के विकसित देशों में भी 28 से 48 हजार रुपये तक ही होती है.

महाराष्ट्र सरकार के फूड ऐंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने स्टेंट सहित इस तरह के उपकरणों की बढ़ा-चढ़ाकर वसूली जा रही कीमत के बारे में विस्तृत जांच की और नेशनल फार्मा प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) को रिपोर्ट दी थी. उसका कहना था कि स्टेंट सहति इस तरह के मेडिकल उपकरणों को प्राइस कंट्रोल के तहत लाया जाए. उसका कहना था कि ऐसे उपकरणों के लिए मरीजों से 100 फीसदी से भी ज्यादा कीमत वसूला जा रहा है.

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इस रिपोर्ट में उदाहरण दिया गया कि कैसे मुंबई की एक कंपनी ने ड्रग-इल्युटिंग स्टेंट 40,710 रुपये में इम्पोर्ट किया. फिर उसे डिस्ट्रिब्यूटर को 73,440 रुपये में दिया. उसने स्टेंट को मुबई के एक नामी अस्पताल को 1.1 लाख रुपये में दिया. अस्पताल ने मरीज को उसके लिए 1.2 लाख रुपये वसूले. मतलब हुआ कि मरीज से लगभग तीन गुना चार्ज किया गया.

इस लूट का कारण यह है कि इस तरह के उपकरण ड्रग प्राइस कंट्रोल के तहत नहीं आते हैं और इसलिए उनके मनमाने दाम वसूले जा रहे हैं. मल्टी नेशनल कंपनियां उनका इम्पोर्ट करती हैं और उन पर मनमाना दाम लिखकर बेचती हैं. उन पर कोई लगाम नहीं है.

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