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मैं चाहती हूं अपने आसपास के हर पुरुष को 'पिंक' दिखाऊं...

मैंने जब 'पिंक' देखी तो मैं तुम्हें बहुत मिस कर रही थी करण. काश यह फिल्म 'पिंक' मैं तुम्हारे साथ देखती और तुम्हें बताती कि...

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देश की हर लड़की की कहानी है 'पिंक'
देश की हर लड़की की कहानी है 'पिंक'

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तापसी पन्नू और अमिताभ बच्चन की 'पिंक' देखी तो बहुत कुछ दिमाग में घूम गया. आखिर इस कथानक की तरह हाथ में बैग, आंखों में सपने और दिमाग में खूब संभलकर चलने की हिदायतों के साथ दिल्ली में मेरी भी एंट्री हुई थी.

पिछले एक दशक में लड़कों के साथ खूब दोस्ती भी हुई और पार्टीज भी की. अफेयर रहे भी और टूटे भी. और इनकी चर्चा भी खूब हुई. वहीं गर्ल्स बॉन्डिंग भी भरपूर एंजॉय की. कभी टेंशन शेयर की तो कभी वाइन-वोडका की बॉटल.

इस तरह मेरा हर कदम जमाने के साथ चलते हुए भी एक दायरे में था. कभी किसी से बदतमीजी नहीं, पार्क‍िंग का झगड़ा नहीं. ऊंची आवाज में बात नहीं. मकान मालिक भी खुश क्योंकि घर साफ रहता था और किराया टाइम पर आता था.

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लेकिन कहीं न कहीं लगता रहा कि मेरा हर कदम अपने दायरे में होने के बावजूद लोग मुझे और पीजी की मेरी फ्रेंड्स को अजीब नजरों से देखते थे. मैं तब करण के बहुत क्लोज थी. कनॉट प्लेस की उस हाई क्लास कॉफी शॉप में हम एकबार देर रात बैठे थे. उसके बहुत कहने पर दिल को लगा था कि ऑफिस कैब में तो दिल्ली की रात खूब देखी है, क्यों न आज 'ट्रस्टेड दोस्त' के साथ बाहर निकल ही लिया जाए.

मैं गई बहुत उत्साह के साथ लेकिन लौटी उतनी ही हताशा और निराशा के साथ. तब मैं तुम्हें कुछ कह नहीं पाई. मेरी प्रॉब्लम पर जब तुम्हारी सोच मेरे सामने आई तो हैरान थी. फिर तुम्हारा 'कुछ फन' वाला 'ऑफर'. कुछ समझ नहीं पाई. बस वहीं से तुम्हारा नंबर ब्लॉक कर दिया.

लेकिन परेशानी तुम्हें ब्लॉक कर देने से खत्म नहीं हुई. हर दोस्त में कहीं न कहीं मुझे समय-समय पर तुम्हारी झलक महसूस होती थी.

मेरी हंसी, मेरे कपड़े, मेरे टैटू, पियर्सिंग का मेरा शौक, मेरा वाइन का गिलास, मेरे ऑफिस के टाइमिंग, लेट नाइट मूवी देखने का मेरा शौक, अपने रूम पर मेल फ्रेंड्स को आने की इजाजत देना जैसी बातों पर आने वाले रिएक्शन मेरे अंदर के खीझ भर रहे थे.

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नहीं समझ पा रही थी कि किसको क्या जवाब दूं. किस-किस का मुंह बंद करूं और किसको एक खींच कर तमाचा जड़ दूं.

हद तो तब हो गई जब एक बार मेरे कजन ने ही मेरी नाइट शिफ्ट पर सवाल उठा दिए. और मेरे जवाब देने पर यही समझाया कि इतना एटीट्यूड ठीक नहीं होता. उसकी बात से मुझे लगा कि चाचा ने उसे फॉरेन यूनिवर्सिटी भेजकर गलत ही किया. अगर उसे यही सोचना था तो वो यहां किसी वोकेशनल कॉलेज में ही पढ़ लेता. कम से कम घर के कई लाख रुपये बच जाते.

और फिर वो 'पिंक'
लेकिन 'पिंक' देखकर लगा कि अपनी एक महीने की कमाई इन सभी को यह फिल्म दिखाने में खर्च कर दूं. एक-एक सीन मुझे अपनी जिंदगी से जुड़ा लग रहा था. लग रहा था कि शायद 'पिंक' के इस शो से मैं अपने आसपास का माहौल बदल सकूंगी.

करण, मैं तुमको बता सकूंगी कि पीजी में सिर्फ आजाद होने के लिए नहीं रहा जाता. ये आपको जिम्मेदार बनाता है, अपने लिए. ऐसे रहने वाली लड़कियां 'easily available' नहीं होतीं. इसके लिए सही शब्द है Independent.

और हां, उस दिन लंच पर जब आए थे, तब अंडरगारमेंट्स बाहर सुखाने पर क्या कहा था तुमने? कुछ शर्म रखो... लेकिन तुम्हारे घर जाने पर वहां भी कपड़े बाहर ही सूखते दिखे थे. मैंने तो इसे तुम्हारी तमीज, कल्चर और करैक्टर से नहीं जोड़ा था.

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जब 'पिंक' दिखाउंगी तो अपने कजन से भी पूछ लूंगी कि तेरे ऑफिस में देर तक काम करने का मतलब है बहुत मेहनत करना. तो मेरी मेहनत 'गुलछर्रे ' कैसी हो सकती है. तुम अपने ऑफिस की लड़कियों के घर जल्दी जाने पर ऐतराज करते हो लेकिन हम तुम्हें 7 बजे ही घर में बंद क्यों दिखें.

वैलंटाइंस डे का वो ज्ञान भी मैंने सुना है... एक बार नहीं कई बार कि लड़की है तो एक बार तो मना करेगी ही. लेकिन सुन लो... मेरी ना का मतलब ना ही है. उसमें कोई हां नहीं छिपी.. फिर वो किसी भी मामले में क्यों न हो.

उस न्यू ईयर की पार्टी में मेरी वह सहेली ज्यादा पीकर लड़खड़ाई और संभलने के लिए उसने तुम्हारा कंधा पकड़ लिया था. और जो मैंने तुम्हारी नजरों में देखा था, वह मुझे खराब लगा. यह कुछ ऐसा था जैसे तुम्हारे दोस्त मुझे देखते थे, पार्टी में तुम्हारे साथ जाने और ड्रिंक लेने पर. मेरा हंसना भी उनको एक इंविटेशन जैसा लगता था.

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गर्दन पर टैटू बनवाने के बाद एक कलीग का सवाल था कि इतनी रिबेल क्यों हो रही हैं और इसी के साथ ही वह जरूरत से ज्यादा दिलचस्पी दिखाने लगा. अचानक से घर से पिक एंड ड्रॉप के ऑफर देने लगा. जब सिर्फ औपचारिकता के लिए मैंने चाय के लिए बोला तो उसने तो पूरी ऑफिस में कुछ और ही बखान कर दिया.

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मैं जानती हूं कि मेरे लिए कोई सहगल अंकल केस लड़ने नहीं आएंगे. और 'पिंक' देखने के बाद अब मुझे इसकी जरूरत नहीं लगती. मैं अब तैयार हूं कि मुझ पर सवाल उठाने वालों को अपने तरीके से जवाब देने के लिए.

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