हाले-ए-दिल गा के सुनाने का इरादा था,
कम्बख्त हर बार दगा दे जाते हैं ये आंसू
वर्ना हमें गमों को हरने का इरादा था.
सुबह के उजालो से डर सा लगता है
रात के अंधेरों से दोस्ती का इरादा था.
यूं तो डरते हैं हमसे गमों के तूफान भी
हमारा तो मौत को डराने का इरादा था. ये कविता मुंबई की रहने वाली संध्या निगम ने भेजी है.