''यह खाना बना रही है या रिझा रही है?'' ऐसी ही कुछ टिप्पणी मेरी दोस्त ने ट्रैवल ऐंड लिविंग चैनल पर कुकिंग शो की हसीन प्रस्तोता निजेला लॉसन के लिए की. मैंने कभी इस तरह नहीं सोचा था. लेकिन अब मैंने गौर किया-निजेला की मादक आवाज, जिस तरह वह कैमरे के साथ फ्लर्ट करती है, यही नहीं, भोजन को मुंह में डालने की अदा भी काफी कुछ कह देती है-इस सबसे सॉफ्ट पोर्न (थोड़ी कम अश्लील फिल्म) देखने जैसा एहसास हुआ. गृहणियों को वह भाती है क्योंकि उसने खाना बनाने को फालतू के बजाए सेक्सी और आकर्षक उद्यम में तब्दील कर दिया है. और ऐसे पुरुष जो छिलकों के बिना प्याज को पहचान नहीं पाते, वे भी शायद उनकी रसोई में पहुंचने के बाद एप्रन पहनकर अंदर जाने को छटपटा रहे होंगे.
हमारी बातचीत सुन रही मेरी मां ने इस पर सख्त विरोध जताया. निजेला और पोर्न (अश्लील फिल्म)? असंभव. बात यह कि मां को निजेला पसंद है और जो भी मां पसंद करती है वह अश्लील नहीं हो सकता. आखिरकार, मां ''उस टाइप'' की इंसान नहीं है, ऐसी जिसका जिक्र उनकी 20वीं सदी की पुरानी चेंबर्स डिक्शनरी पोर्नोग्राफी का मतलब बताते हुए घुमावदार ढंग से करती है, ''अश्लील लेखन, चित्र और इसी तरह के अन्य.''
इंडिया टुडे-एसी-नीलसन-ओआरजी-मार्ग 2009 के सेक्स सर्वे के आंकड़ों पर नजर दौड़ाते समय मुझे इस बात पर ताज्जुब हुआ कि क्या शहरी भारतीयों का एक बड़ा हिस्सा भी इसी शब्दकोश का प्रयोग करता है. सिर्फ 27 फीसदी महिला उत्तरदाताओं ने स्वीकार किया है कि उन्होंने अश्लील फिल्में देखी हैं. और ऐसी महिलाएं जिन्होंने नहीं देखी हैं, और देखना चाहती हैं उनका आंकड़ा सिर्फ 4 फीसदी ज्यादा है. 66 फीसदी महिलाओं ने न सिर्फ अश्लील फिल्मों या उनके प्रयोग को लेकर अनभिज्ञता जताई है, बल्कि अपने सहभागी के साथ ऐसी फिल्में देखने की कोशिश करने की भी उनकी कोई इच्छा नहीं है. पुरुषों में इसे लेकर जबरदस्त रुझान है, 41 फीसदी पुरुषों ने अश्लील फिल्में देखी हैं. चौंकाने वाली बात यह कि 46 फीसदी पुरुषों ने कहा कि वे अपनी सहभागी के साथ अश्लील फिल्म देखना कभी नहीं चाहेंगे. कभी नहीं? यह देखने के लिए भी नहीं कि ये फिल्में होती किस तरह हैं.{mospagebreak}पोर्नोग्राफी (अश्लील साहित्य) को लेकर इस पाखंड की जड़ें तलाशने के लिए हमें इस शब्द की तह तक जाना होगा. जैसा कि मां का पुराना शब्दकोश कहता है कि इसकी जड़ें लैटिन शब्द पोर्ने, प्रॉस्टिट्यूट (वेश्या) या हारलोट से जुड़ी हैं. यह लिखित और अन्य रूपों में वेश्या को व्यक्त करने के लिए एक संदर्भ है. लेकिन भारतीय इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जिनमें वेश्या को बहुत ही आदरसूचक ढंग से पेश किया गया है. इसमें सिंधु घाटी की एक प्रसिद्ध नर्तकी या फिर हंपी के पंपापाटी मंदिर की एक प्रतिमा, जिसमें एक युवती अपनी योनि की ओर इशारा करके लुभा रही है, शामिल हैं. वेश्याएं नाटकों और उपन्यासों की नायिकाएं होती थीं. और जहां देवदासियों को पवित्र माना जाता था, वहीं मंदिर से बाहर काम करने वाली युवतियों को गणिका कहा जाता था, जो समाज में आज के बॉलीवुड सितारों सरीखा रुतबा रखती थीं. अगर मात्र वेश्वावृत्ति या सेक्स का चित्रण पोर्नोग्राफी को सामाजिक तौर पर निंदनीय बना देता है तो हमें बड़ी संख्या में भारतीय कलाकृतियों और साहित्य को हटाना या नष्ट करना होगा.
बात यह है कि न सिर्फ हमारे अतीत बल्कि मौजूदा समय में भी काफी कुछ ऐसा है जो पोर्नोग्राफिक है और फिर भी स्वीकार्य है. मेरी अद्यतन वेबस्टर्स डिक्शनरी के मुताबिक पोर्नोग्राफी से अभिप्राय ''ऐसी सामग्री से है जिसका उद्देश्य यौन उत्तेजना पैदा करना है.'' अगर यह नैतिकता शून्य है तो पोर्नोग्राफी की यह परिभाषा आधुनिक जीवन शैली के प्रत्येक पहलू में समाई हुई है-विज्ञापनों, फिल्मों, टेलीविजन कार्यक्रमों समेत अन्य में. हमेशा देखा गया है कि किसी उत्पाद को खरीदने के लिए उपभोक्ताओं की भूख जगाने के मामले में उस वस्तु में सेक्स का तड़का लगाया जाता है. हम इस बात का अंदाजा लगा ही सकते हैं कि कोई भी आदमी इतना मूर्ख नहीं होता जो यह सोचे कि महंगी कार पर दिखाया जा रहा मादक कवर उसके साथ मिलेगा. और न ही होंठों के चुंबन के वे ठंडे दृश्य जो सेंसर बोर्ड की कैंची से बच गए, गुदगुदाएंगे ही, जैसे राजा बाबू फिल्म का वह दृश्य जिसमें करिश्मा कपूर और गोविंदा सरकाए ले खटिया गीत पर हर संभव सुझाने वाली मुद्रा में नाच कर रहे हैं. इसे पोर्नोग्राफी नहीं माना गया. और जो इसे देखते हैं, आनंद लेते हैं, उन्हें यह बात बताने की जरूरत भी नहीं है.
संभवतः, पोर्नोग्राफी के साथ यही बात है. जब किसी चीज पर 'पोर्नोग्राफी' का लेबल चस्पां हो जाता है तो यह स्वीकारोक्ति होती है इस बात की कि इसका मकसद यौन इच्छा भड़काना है. और इसीलिए, किसी भी तरह की पोर्नोग्राफी देखने की बात कहना, खुलेआम इस तरह की सामग्री से आनंद की अनुभूति की बात स्वीकारना है. यहां उलझाने वाली बात यह है कि आखिर क्यों भारत में यहां तक कि विवाहित जोड़ों के लिए भी इस तरह के दृश्यों के माध्यम से उत्तेजना पाना तब और अब शर्मनाक है? आजकल थेरेपिस्ट अक्सर सलाह देते हैं कि युगल एक-साथ अश्लील फिल्म देखें ताकि उनके यौन जीवन में नया संचार हो सके.
आज भी 46 फीसदी पुरुष और 64 फीसदी महिलाएं कहती हैं कि वे अपने सहभागियों के साथ अश्लील फिल्म देखना पसंद नहीं करेंगी. भारत में विवाहितों के लिए संतानोत्पत्ति के लिए विवाह करना तो सही है लेकिन उनके लिए यह मानना अनुचित है कि वे आनंद के लिए सेक्स करते हैं. महात्मा गांधी ने भी कहा था कि सेक्स का एकमात्र उद्देश्य संतानोत्पत्ति है. अगर जोड़े की इच्छा संतानोत्पत्ति की नहीं है तो उन्हें एक साथ सोना भी नहीं चाहिए. उनका मानना था कि जो भी औरतें गर्भनिरोधक प्रयोग करती हैं वे सब वेश्याएं हैं क्योंकि वे संतानोत्पत्ति नहीं बल्कि आनंद के लिए सेक्स कर रही हैं. हालांकि उन्होंने ऐसा करने वाले पुरुषों को ऐसे कोई संबोधन नहीं दिया. शायद यह पुरुषों को मौन स्वीकृति है; कि पुरुषों का अश्लील फिल्में देखना उचित है, और यह सर्वेक्षण में उजागर भी हो जाता है.{mospagebreak}यह दुखद है कि आधुनिक भारत अपनी यौन शिक्षा महात्मा गांधी से 1,500 साल पहले आ चुके गुरुओं से नहीं लेता, जो न सिर्फ सेक्स संबंधी भारी-भरकम पुस्तकें लिख चुके हैं बल्कि उन्हें आचार्य की संज्ञा भी दी गई. इससे हमारी कई मौजूदा यौन संबंधी समस्याओं का हल निकल आएगा, जिसमें अत्यधिक जनसंख्या और पोर्न को लेकर अरुचि भी शामिल है. भारत के प्राचीन यौन विज्ञानी कहते हैं कि सिर्फ संतानोत्पत्ति के लिए सेक्स पशुओं में होता है जबकि इंसानों के लिए इसका उद्देश्य आनंद की अनुभूति है. वे इस बात को महिलाओं पर भी लागू करते हैं. यह आनंद अपनी प्रत्येक इंद्रीय-देखने, सुनने, छूने, स्वाद और सुगंध को उत्तेजित करके पाया जा सकता है, जैसा कि अंतर्ज्ञान और संतुलन का जिक्र कामसूत्र में किया गया है. कहा जाता है कि प्रेम की कला (कामशास्त्र) सीखने के लिए संगीत, नृत्य, पाक कला, सुगंध, घुड़सवारी, परिधान पहनना समेत 64 कलाओं में पारंगत होना चाहिए. संक्षेप में कहें तो संवेदी हिस्सों को मजबूत करना होता है. यही वह ज्ञान है जिसे भारत से कहीं ज्यादा पश्चिम के देश आत्मसात कर रहे हैं.
ऐसे में सवाल पैदा होता हैः क्या पोर्नोग्राफी का कोई अनैतिक पहलू भी है? हां, है और यह जीवन या सामाजिक गतिविधियों से जुड़े किसी अन्य पहलू से अलग नहीं है. ऐसा तब होता है जब किसी के जन्मजात अधिकारों पर प्रहार होता है. जब पोर्न के शिकार को जबरन इसमें धकेला जाता है और जब उसमें इसका विरोध करने की क्षमता नहीं होती, जैसा कि तस्करी की शिकार महिला, बच्चे और जानवर. सर्वे में एक दिलचस्प बात यह सामने आई है कि पटना और लुधियाना में जानवरों से जुड़ी अश्लील फिल्में देखने वाले पुरुषों की संख्या सर्वाधिक है. यही नहीं, लुधियाना के पुरुषों ने ऐसी अश्लील फिल्मों में भी सर्वाधिक रुचि दिखाई है जिसमें एक महिला और कई पुरुष हों, यहां का आंकड़ा 51 फीसदी रहा है जो राष्ट्रीय स्तर पर 32 फीसदी है. यही वे इलाके हैं जहां स्त्री अनुपात पुरुषों की अपेक्षा कम है, जिसका कारण कन्या भ्रूण हत्या है. कुछ ग्रामीण इलाकों में तो लंबे समय से ऐसा किया जा रहा है कि कई भाइयों की एक ही पत्नी होती है. इसकी वजह लड़कियों की कमी है.
पोर्नोग्राफी का मसला नैतिक से ज्यादा किसी की वैयक्तिक पसंद से जुड़ा है. आपकी कौन-सी इंद्रीय आपके लिए काम करती है और संभवतः चित्र देखना आपकी पसंद न हो. भारत के सबसे प्राचीन यौन विज्ञानी वात्स्यायन ने युगलों से कहा है कि ऐसे कई काम हैं जो किसी को स्वीकार्य हैं, दूसरे को नहीं, ऐसे में महत्व इस बात का है कि वे किस परिवार या समुदाय से हैं. जोड़ों को खुद ही पहचानना चाहिए कि उन्हें क्या पसंद है, क्या नहीं, किसमें सहज महसूस करते हैं, किसमें नहीं, इसके बाद ही काम क्रीड़ा (फॉरप्ले) में संलग्न हों, और वह भी एक-दूसरे की निजी सीमाओं का सम्मान करते हुए.
लेखिका ने ‘सेक्स ऐंड पॉवरः डिफाइनिंग हिस्ट्री, शेपिंग सोसायटीज’ लिखी है. वे ‘द 50 मिलीयन मिसिंगः ए कैंपेन अगेंस्ट इंडियाज फीमेल जीनोसाइड’ की संस्थापक भी हैं.