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सेक्‍स में कमी बढ़ा रही है पति-पत्‍नी के बीच खाई

पहली दफा इस तरह का वाकया बीसेक साल पहले हुआ था. शनिवार, 17 मार्च, 1989 को. घड़ी ने रात के दस बजाए ही थे कि अवंती गहरी नींद में होने का नाटक करके लेट गईं. मध्यमवर्गीय गृहिणी अवंती बताती हैं, ''मैं 55 साल की हूं लेकिन सेक्स की उत्तेजना मैंने कभी महसूस ही नहीं की.

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पहली दफा इस तरह का वाकया बीसेक साल पहले हुआ था. शनिवार, 17 मार्च, 1989 को. घड़ी ने रात के दस बजाए ही थे कि अवंती गहरी नींद में होने का नाटक करके लेट गईं. मध्यमवर्गीय गृहिणी अवंती बताती हैं, ''मैं 55 साल की हूं लेकिन सेक्स की उत्तेजना मैंने कभी महसूस ही नहीं की. 20 साल में मैंने, स्वेच्छा से कभी सेक्स नहीं किया.'' वे आगे जोड़ती हैं, ''पति शीशे के सामने सेक्स करना चाहते थे, अश्लील फिल्में दिखानी चाहीं. हमारे बीच जब भी सेक्स होता, निहायत ही बेढंगे अंदाज में.'' नींद में होने का बहाना खोजकर उन्होंने समस्या का हल निकाल लिया. पति भी कहां मानने वाले थे. उन्हें उठाते और घसीटकर बेडरूम में ले जाते. ''शालीनता और सलीका नाम की चीज ही नहीं थी. मैं दर्द से छटपटाती रहती.'' उस वक्त ऐसी पत्रिकाएं भी नहीं हुआ करती थीं, जिनमें सेक्स पर कुछ छपता हो. ऐसे में उनके पास यह जानने का कोई तरीका न था कि वे जो महसूस कर रही हैं, वह ठीक है या नहीं. लेकिन एक दिन उन्होंने फैसला कर लियाः ''मैंने कह दिया कि 'मुझे मेरे हाल पर अकेला छोड़ दो. यह सब मेरे बस का नहीं.' उसके बाद सिलसिला रुक गया. गए महीने उन्होंने फिर मंशा जताई तो मैंने झटक दिया.''

अवंती उन तमाम पत्नियों में से एक हैं, जिन्हें सेक्स में कोई दिलचस्पी नहीं. उनके जैसे तमाम दंपतियों में सेक्स ने एक तरह की जड़ता पैदा कर दी है या फिर पति या पत्नी विवाहेतर संबंध बनाकर वह सुख प्राप्त कर रहे हैं. फिर भी ऐसा बताया जा रहा है कि शहरी हिंदुस्तान सेक्सोन्मुखी माहौल की आगोश में झूल रहा है. अश्लील खिलौने, अटपटे आलिंगन, वस्तुतः झंकते स्तन, वह सारी मीडिया की छवियां उसकी पहुंच में हैं जो भारतीय युगल की सेक्स संबंधी आदतों में दखल दे रही हैं. हिंदुस्तान में जब सेक्स की ऐसी कोई हकीकत से दूर तस्वीरें पतियों या पत्नियों की सेक्स संबंधी आदतों में हस्तक्षेप करती हैं तो फिर वे अपना काफी सारा वक्त इन्हीं के बारे में सोचने पर लगाने लगते हैं. असल जिंदगी और इस नखलिस्तानी सच के बीच की गहरी-चौड़ी खाई विवाह की सफलता के रास्ते की बड़ी बाधा बन जाती है. आखिर हम ऐसी कल्पनाओं में उलझते क्यों हैं, जो हमारे लिए वस्तुतः असंभव हैं? इस तरह के पति-पत्नी उत्तेजना की काल्पनिक उड़ानों में किस हद तक जाते हैं? और हमारी खोपड़ी में गहरे समा गई जेहनी या कहें कि मेंटल मस्ती आखिर आधुनिक विवाह के बारे में हमें क्या बताती है?{mospagebreak}

जैसा कि अवंती की दास्तान से भी जाहिर है, सेक्स के बारे में एक देश की कल्पना उसके सच से, यथार्थ से भिन्न है. 1997 से 2009 के बीच मैंने 400 भारतीय पतियों और पत्नियों के इंटरव्यू किए. उस पर आधारित मेरे शोध का नतीजा कहता है कि ज्‍यादातर पतियों-पत्नियों (64 फीसदी) के वैवाहिक कामयाबी के लिए सेक्स आनंद को जरूरी मानने के बावजूद उनके अपने जीवन में यह नदारद था. दांपत्य में सेक्स संबंधी असंतुष्टि के और भी कई सूचक हैं: इंटरव्यू के लिए चुने गए युगलों में से एक तिहाई की सेक्स में कोई दिलचस्पी ही नहीं थी; सिर्फ 16 फीसदी पत्नियों ने माना कि उन्हें, ज्‍यादातर मौकों पर, आनंदातिरेक प्राप्त होता है, जो कि सेक्स में स्त्री की संतुष्टि का जैविक सूचक है; 4 फीसदी ने खुद को सेक्स से दूर ही रखा, हफ्तों, महीनों और कई बार तो दशकों तक. 24-44 फीसदी सेक्स में अपने जीवनसाथी की भागीदारी से संतुष्ट नहीं थे. इसमें पत्नियों का स्वास्थ्य सेक्स के अनुकूल न होना एक बड़ी वजह थी. कइयों की इसमें दिलचस्पी ही नहीं थी, वहीं पूरे एक तिहाई सेक्स के लिहाज से असंतुष्ट थे.

सेक्स में असंतोष की इस तरह की स्थितियों के मद्देनजर क्या होता है, जब हम व्यक्तिशः लोगों के फंतासी जीवन का इससे संबंधित आंकड़ा जुटाने निकलते हैं? हम बातों को बढ़ाकर उसी में नमक-तेल लगाने लगते हैं. लोगों के जवाब की हम अतिरिक्त साज-संवार करने लगते हैं. इंडिया टुडे-एसी नीलसन ओआरजी मार्ग सेक्स सर्वे 2009 की ही मिसाल देकर संक्षेप में समझते हैं कि जवाब देने वालों पर किस तरह से इसका प्रभाव पड़ा होगा? इंटरव्यू करने वाला पूछता है, ''आप किसके साथ सेक्स करने की सोचते/सोचती हैं?'' ज्‍यादातर लोगों ने जीवनसाथी के साथ सेक्स करने के बारे में कल्पना करने की बात बताई तो भी सवाल करने वाले पर जैसे इसका कोई फर्क ही नहीं पड़ता. वह तुरंत पूछेगा, ''आप किसी अजनबी के साथ सेक्स की कल्पना करते/करती हैं?'' फिर जोर देकर कहता है कि ''नीचे दी हुई सूची में देखिए और बताइए कि इनमें से किसके साथ सेक्स करने के बारे में आप सोचते/सोचती हैं?'' जवाब देने वाले को भी एहसास हो जाता है कि सवालकर्ता क्या सुनना चाहता है. फिर ज्‍यादा से ज्‍यादा लोग किसी अजनबी के साथ सेक्स और चर्चित लोगों/फिल्मी सितारों के साथ पींगें लड़ाने की बात कहने लगते हैं. सेक्स के बारे में महिलाओं के मुकाबले पुरुष ज्‍यादा सोचते पाए गए; विवाह पूर्व सेक्स के मामले में महिलाओं के मुकाबले पुरुषों की संख्या कहीं ज्‍यादा थी; इसी तरह विवाहेतर संबंधों के मामले में भी पुरुष आगे पाए गए.{mospagebreak}

शहरी भारत में किसी की सेक्स संबंधी कल्पनाएं न सिर्फ बहुत ऊंची होती हैं बल्कि उनका साधारणीकरण करके उसी को सब पर लागू कर दिया जाता है. असल में, इंडिया टुडे-एसी नीलसन ओआरजी मार्ग सेक्स सर्वे 2009 में जिसे ''शहरी'' नमूना बताया गया है वह एक मामूली-सा हिस्सा है और वह शहरी भारत के मध्यमवर्ग का सच्चा प्रतिनिधित्व नहीं करता. यह अपनी सलियत से तैयार किया गया नमूना है, जिसमें 57 फीसदी दुकानदार और क्लर्क तबके के लोग हैं, जिनकी आय 5,000-15,000 रु. महीना है. इससे ज्‍यादा कमाने वाले सिर्फ 18 फीसदी हैं. हालांकि सर्वे के नतीजे समाज के दूसरे वर्गों पर भले न लागू किए जा सकें और भले ही हमारे सेक्स जीवन के कई दिलचस्प पहलुओं की अनदेखी कर दी गई हो, पर इसने फंतासी और विवाह के पूरे ताने-बाने पर जो रोशनी डाली है वह मजेदार है. सर्वे के मुताबिक, 57 फीसदी पति दिन में तीन-चार बार या एक से ज्‍यादा बार सेक्स के बारे में सोचते हैं.

फंतासियां दांपत्य में तनाव बढ़ा देती हैं. ये फंतासियां भला होती किसके बारे में हैं? 89 फीसदी पतियों की फंतासी में फिल्म अभिनेत्रियां, चर्चित हस्तियां और फिल्मों की आइटम गर्ल आईं जबकि 76 फीसदी पत्नियों ने ऐसी कल्पना की. 35 फीसदी पतियों ने दूसरी जाति की स्त्रियों को सेक्स की दृष्टि से ज्‍यादा आकर्षक बताया, 48 फीसदी का कहना था कि उनके खयालों में गांव की स्त्रियां आती हैं. 14 फीसदी ने तो अवयस्क लड़कियों से सेक्स की इच्छा जताई. इसके ठीक विपरीत अविवाहित और विवाहित महिलाओं की राय भिन्न थी. 93 फीसदी अविवाहित और 95 फीसदी विवाहित महिलाओं ने सेक्स के खिलौनों का इस्तेमाल नहीं किया था. दोनों ही वर्ग की 87 फीसदी महिलाओं ने तो इसके बारे में सोचने को ही गुनाह बताया. 62 फीसदी विवाहित महिलाएं अश्लील फिल्में भी नहीं देखतीं. जो (36 फीसदी) देखती भी हैं वे किसी पुरुष और स्त्री के साथ.{mospagebreak}

इन झलकियों के आधार पर तीन बातें तो कही जा सकती हैं: एक, स्त्रियों-पुरुषों की सेक्स संबंधी पसंद-नापसंद में इतना फर्क बताता है कि स्त्रियों के लिए रिश्तों में शारीरिक सुख और भावनात्मक संतुष्टि पहला और जरूरी कदम है. दूसरे, सर्वे के प्रतिभागी महंगे क्लबों और समुद्र तट पर किसी हस्ती के साथ रोमांटिक भेंट के बारे में सोच सकते थे. पर 77 फीसदी पतियों और 78 फीसदी पत्नियों ने खुद के दो बेडरूम फ्लैट में ही ऐसा करने की सोची. शायद इसलिए क्योंकि वे उसी आयवर्ग में आते थे. तीसरे, बड़ी संख्या में पतियों ने विवाहेतर मेलजोल की बात स्वीकारी जबकि 4 फीसदी पत्नियों ने ही ब्वायफ्रेंड होना कबूला.

उक्त तमाम चीजें बताती हैं कि भूमंडलीकरण के साथ सेक्स से जुड़े खतरे की मात्रा ही नहीं, आयाम भी बड़ा है. इसने सार्वजनिक रूप से सेहत को लेकर भी बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है. इंटरनेट के बढ़ते इस्तेमाल और कई संस्कृतियों वाले लोगों के साथ उठक-बैठक के बाद पुरुषों की दगाबाजी बढ़ने वाली है. भारत के शहरी मध्यमवर्ग में सेक्स को लेकर घोर असंतोष को देखते हुए यही वक्त है कि हम शादी के बारे में युगल के रूप में सोचें, अकेले नहीं. ऐसा न होने तक, अवंती की तरह, तमाम महिलाएं खुद ही यह कहती नजर आएंगीः ''किसी महिला में जब तक सेक्स का आवेग न पैदा हो, तब तक वह उसका आनंद नहीं ले सकती.''

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लेखिका चिकित्सा मनोविज्ञानी और 'लव विल फॉलोः ह्वाइ द इंडियन मैरिज इज बर्निंग' पुस्तक की लेखिका हैं.

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