scorecardresearch
 

महीने में एक दिन नहाते हैं ये आदिवासी

देश को आजाद हुए 70 साल गुजर चुके हैं, मगर गांव और आदिवासी बस्तियों की हालत अब भी चिंताजनक है. कई इलाके ऐसे हैं जहां पानी, बिजली, रोजगार, आवास जैसी आवश्यक सुविधाएं भी उन्हें अब तक नसीब नहीं हो पाई है.

Advertisement
X
सहरिया आदिवासी
सहरिया आदिवासी

Advertisement

ज्ञाना आदिवासी (70) को पीने को तो रोज पानी मिल जाता है, मगर नहाने के लिए उन्हें कई-कई दिनों तक इंतजार करना होता है. कई बार तो 15 से 30 दिन गुजरने के बाद ही स्नान के लिए पानी मिल पाता है. यह स्थिति सिर्फ ज्ञाना की नहीं है, अधिकांश उन सहरिया आदिवासियों की है, जो मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के खतौरा गांव की सहरिया आदिवासियों की एक बस्ती में रहते हैं.

देश को आजाद हुए 70 साल गुजर चुके हैं, मगर गांव और आदिवासी बस्तियों की हालत अब भी चिंताजनक है. कई इलाके ऐसे हैं जहां पानी, बिजली, रोजगार, आवास जैसी आवश्यक सुविधाएं भी उन्हें अब तक नसीब नहीं हो पाई है.

शिवपुरी जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर स्थित है खतौरा कस्बा. इस कस्बे में है सहरिया आदिवासियों की बस्ती. यहां पहुंचते ही इन आदिवासियों के जीवन-स्तर की तस्वीर नजर आने लगती है. कच्ची दीवारों पर डली खपरैल से बने हैं उनके आवास.

Advertisement

ज्ञाना आदिवासी (65) ने बताया कि उनकी बस्ती में कभी कोई काम नहीं हुआ, पीने को पानी तक मुश्किल से मिल पाता है. नहाने के लिए पानी मिल जाए इसके लिए उन्हें कई बार 15 से 30 दिन तक इंतजार करना होता है. उन्होंने कहा, "सरकार सिर्फ वादे और घोषणाएं करती हैं, ये सरकार शायद हमारे लिए नहीं है."

भागवती (55) ज्ञाना की बात को आगे बढ़ाते हुए कहती हैं कि उनकी बस्ती के करीब छात्रावास स्थित है, उसका हैंडपंप ही उनका एकमात्र सहारा है, दिन में एक डिब्बा (16 लीटर) पानी मिल जाता है, उसी में उनका दिन कटता है. कभी ज्यादा मिल गया तो स्नान कर लेते हैं, नहीं तो सब ऐसे ही चलता है.

बुजुर्ग आदिवासी बिन्नी बाई ने बताया कि सरकार ने 1000 रुपये महीना देने की जो घोषणा की थी, वह राशि कुछ लोगों के खातों में आ गई है, मगर और कोई सुविधा नहीं है.

रेखा (25) सरकार द्वारा एक हजार रुपये माह दिए जाने की योजना पर सवाल उठाती हैं और कहती हैं, "एक हजार रुपये में क्या होता है, बच्चों के कपड़े और जरूरत की बाकी चीजें तक नहीं आतीं इतनी रकम में. पति मजदूरी कर जो कमाते हैं, उसमें जो सामान आ जाता है, उसी से पेट भर लेते हैं सबका. सरकार को स्थायी तौर पर काम देने की योजना बनानी चाहिए."

Advertisement

शादी के दिन खूबसूरत दिखना है तो ऐसे करें मेकअप

दमना आदिवासी (60) अपनी बस्ती में बने कच्चे मकानों को दिखाते कहते हैं कि सरकार आवास देने की बात करती है, मगर यहां किसी को मकान नहीं मिला. किसी के घर में शौचालय नहीं है, पानी का संकट हर समय रहता है, रोजगार का कोई साधन नहीं है. नेता कोई हो या सरकार, किसी ने आदिवासियों के लिए कुछ नहीं किया. एक हजार रुपये दे रहे हैं, वह भी कब तक मिलेगा पता नहीं.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले दिनों सहरिया, बैगा और भारिया आदिवासियों के परिवारों को एक-एक हजार रुपये मासिक भत्ता देने का ऐलान किया था, ताकि महिलाओं और बच्चों को कुपोषण से बचाया जा सके. यह राशि जनवरी माह में आदिवासी महिलाओं के खाते में भी आ गई है.

अपने ब्लड ग्रुप से जानें कैसा है आपका स्वभाव

आदिवासी परिवारों की हकीकत यह बताती है कि देश को आजाद हुए भले ही 70 साल गुजर गए हों, मगर वे अब भी सही तरीके से नहीं जी पा रहे हैं. संविधान ने उन्हें जो अधिकार दिए हैं, उनसे भी वे कोसों दूर हैं. मगर सत्ता में बैठे लोग खुद को राष्ट्रभक्त और आईना दिखाने वालों को राष्ट्रविरोधी कहने में गर्व महसूस कर रहे हैं.

Live TV

Advertisement
Advertisement