अगर मौसम खुशगवार हो, आपने लजीज नाश्ता कर रखा हो और खरीदारी के लिए निकले हों, तो आप कुछ ज्यादा ही खरीदारी करके लौटेंगे. कनाडा के एक मार्केटिंग और मनोविज्ञान विशेषज्ञ के अध्ययन में यह बात सामने आई है.
अल्बर्टा विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ रिटेलिंग के निदेशक काइले मुरे का कहना है कि आजकल दुकानदार ग्राहकों को लुभाने के लिए 'न्यूरोसाइंस' यानि 'तंत्रिका विज्ञान' का सहारा ले रहे हैं. इसका ग्राहकों पर मानसिक तौर से भी प्रभाव पड़ता है.
मुरे मिसाल के तौर पर कहते हैं, "हम यह कहा करते थे कि खुदरा व्यापार राकेट विज्ञान नहीं है. लेकिन ब्रिटिश उद्योगपति रिचर्ड ब्रैसन आज अंतरिक्ष यात्रा तक की मार्केटिंग शुरू कर चुके हैं."
उनके मुताबिक ग्राहकों की मन:स्थिति को विज्ञापन और मार्केटिंग के जरिए अभी भी नहीं पढ़ा जा सकता है, लेकिन उनके और कुछ अन्य लोगों के अध्ययन में ग्राहकों को प्रभावित करने वाले कुछ तरीकों के बारे में जरूर जानकारी मिली है.
उनका कहना है कि किसी उत्पाद को लेकर अगर ग्राहक के दिमाग में एक तस्वीर बन जाए, तो उसके साथ वह भावनात्मक रूप से जुड़ जाता है.