लगातार जुकाम, कफ, कंपकंपी, बुखार और सांस लेने में दिक्कत अगर समय रहते दूर न हो तो इसे केवल ठंड की बीमारी नहीं समझना चाहिए क्योंकि यह न्यूमोनिया की शुरुआत भी हो सकती है.
यूनिसेफ का कहना है कि फेफड़ों में संक्रमण की बीमारी न्यूमोनिया दुनिया भर में बच्चों की मौत का मुख्य कारण है और हर साल विश्व के करीब 18 फीसदी बच्चे इसकी वजह से अपनी जान गंवाते हैं.
सर गंगाराम अस्पताल के शिशु स्वास्थ्य संस्थान में नियोनैटोलॉजी विभाग के कन्सल्टैंट नियोनैटोलॉजिस्ट डॉ पंकज गर्ग ने कहा ‘दुनिया भर में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत के करीब 20 फीसदी मामलों का कारण न्यूमोनिया होता है और भारत भी इससे अछूता नहीं है. ठंड तो एक कारण है ही. समय से पूर्व प्रसव और नवजात शिशुओं का सामान्य से कम वजन न्यूमोनिया के खतरे को बढ़ाते हैं.’
उन्होंने कहा ‘न्यूमोकॉकल कॉन्जूगेट टीका (पीसीवी) और एचआईबी टीका नवजात शिशुओं और बच्चों में न्यूमोकॉकल बीमारियों और एच इन्फ्लुएंजा बीमारी से बचाव के लिए कारगर होता है. लेकिन जानकारी के अभाव में कई बच्चे इन टीकों से वंचित रह जाते हैं. ऐहतियात के तौर पर इन टीकों का लगना जरूरी होता है.’
इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (आईएपी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ रोहित सी अग्रवाल ने कहा कि दुनिया भर में हर साल पांच साल से कम उम्र के करीब 14 लाख बच्चे न्यूमोनिया की वजह से अपनी जान गंवा देते हैं. यह आंकड़ा एड्स, मलेरिया और टीबी से बच्चों की मौत के कुल आंकड़े से कहीं ज्यादा है. यह समस्या ठंड में बढ़ जाती है.
डॉ अग्रवाल ने कहा, ‘भारत के लिये यह अधिक चिंता की बात है. न्यूमोनिया पर इंटरनेशनल वैक्सीन एक्सेस सेंटर की 2012 की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में हर दिन पांच साल से कम उम्र के 1,000 से अधिक बच्चों की मौत इस बीमारी से होती है. इससे बचाव के लिए स्वच्छ पर्यावरण, कुपोषण की समस्या का हल, शुरुआती छह माह तक स्तनपान, समय पर टीकाकरण और स्वास्थ्य संबंधी समुचित देखभाल जरूरी है. ऐसा होने पर ही न्यूमोनिया से होने वाली शिशु मृत्युदर पर लगाम कसी जा सकती है. टीके की मदद से न्यूमोनिया को रोका जा सकता है.’
न्यूमोनिया वास्तव में श्वांस संबंधी समस्या है जिसमें फेफड़ों में बैक्टीरिया, वायरस, फफूंद या परजीवी का संक्रमण हो जाता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, न्यूमोनिया से होने वाली मौत का मुख्य कारण स्ट्रैप्टोकॉकस न्यूमोनिया है.
फेफड़ों में संक्रमण (न्यूमोनिया), मेनिन्जाइटिस (मस्तिष्क में संक्रमण), बैक्टेरेमिया (रक्त में संक्रमण), ओटाइटिस मेडिया (कानों में संक्रमण) और साइनोसाइटिस (साइनस संक्रमण) आदि को न्यूमोकॉकल बीमारियां कहा जाता है.
डॉ पंकज के अनुसार, 24 माह से 59 माह के ऐसे बच्चों को न्यूमोकॉकल बीमारियां होने की आशंका अधिक होती है जिनका जन्म समय से पहले हुआ हो, जिनका वजन सामान्य से कम हो, जिनके फेफड़ों का पूर्ण विकास न हुआ हो, फेफड़ों में हवाओं की गुहा संकरी हों, जिन्हें कुपोषण हो या जिनका प्रतिरोधक तंत्र कमजोर हो.
न्यूमोनिया से बचाव के लिए टीकाकरण अभियान के बारे में जागरूकता का प्रसार कर रही गेरियाट्रिक सोसायटी ऑफ इंडिया के सचिव डॉ ओ पी शर्मा ने कहा ‘न्यूमोकॉकल बीमारी से बुजुर्गों के प्रभावित होने की आशंका अधिक होती है क्योंकि उम्र के साथ साथ उनकी प्रतिरोधक क्षमता क्षीण हो जाती है.’
उन्होंने कहा ‘वृद्धावस्था में मधुमेह, उच्च रक्तचाप, दिल की बीमारी, ब्रोंकाइटिस, गुर्दे की बीमारी, कैंसर आदि की वजह से प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. ऐसे में बुजुर्गों को न्यूमोकॉकल बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती है. इसीलिए शिशुओं के साथ साथ 50 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए भी टीकाकरण बहुत जरूरी है.’