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जब न किसी से कहते बने, न सहते

सभी संस्कृतियों में माता-पिता तथा बच्चे के बीच और भाई-बहनों के बीच यौनाचार पर प्रतिबंध है. अधिकतर समाज में यह निषेध दूसरे रिश्तेदारों या गोत्र के परिजनों के लिए भी है.

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इतिहास और दुनिया में हर कहीं समाज को कौटुंबिक व्यभिचार के मुद्दे से जूझना पड़ा है. मैं किसी ऐसे समाज को नहीं जानता जिसमें परिवारिक सदस्यों के बीच यौनाचार की मनाही न हो. हालांकि 'करीबी रिश्तेदार' की परिभाषा हर जगह अलग है. जहां तक मैं जानता हूं, सभी संस्कृतियों में माता-पिता तथा बच्चे के बीच और भाई-बहनों के बीच यौनाचार पर प्रतिबंध है. अधिकतर समाज में यह निषेध दूसरे रिश्तेदारों या गोत्र के परिजनों के लिए भी है.

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पाराडाइज लॉस्टः जॉन मिल्टन की 1667 की कविता में शैतान अपनी बेटी सिन के साथ संबंध स्थापित करता है और उनका बच्चा डेथ अपनी मां के साथ बलात्कार करता है.

वन हंड्रेड इयर्स ऑफ सोलीट्यूडः गैब्रिएल गार्शिया मार्खेज के 1967 के उपन्यास में रिश्तेदारों में यौन अंतरंगता के कई प्रकरण दर्शाए गए हैं.

चाइना टाउनः रोमन पोलेंस्की के 1974 के उपन्यास में फेय डनअवे पिता के साथ यौन संबंध के बाद अपनी बहन को जन्म देती है.

सीमेंट गार्डनः इयान मैक्‌इवान के 1978 में लिखे मर्मस्पर्शी उपन्यास में जैक के अपनी बड़ी बहन जूली के साथ संबंध हैं.

द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्सः अरुंधती राय के 1997 के उपन्यास में जुड़वां भाई-बहनों के यौन संबंधों के अनुभव हैं.



कौटुंबिक व्यभिचार की अवधारणा
असल में जिस चीज का वजूद है ही नहीं, उसके निषेध की जरूरत नहीं है. हर संस्कृति में बच्चों को कौटुंबिक व्यभिचार से बचाने की जरूरत महसूस की गई है. यौन शोषण के शिकार  के उपचार के विशेषज्ञ कौटुंबिक व्यभिचार की अवधारणा को करीबी रिश्तेदारों के बीच यौनाचार की परंपरागत परिभाषा के भी परे ले जाते हैं. कौटुंबिक व्यभिचार झेल चुके लोगों के संगठन और पेशेवर भी वृहत्तर परिभाषा से सहमत हैं: कौटुंबिक व्यभिचार विश्वास, ताकत और सुरक्षा पर आघात है. करीबी रक्त संबंध वालों के बीच सेक्स कौटुंबिक व्यभिचार के इस वृहत्तर व्यापक दृष्टिकोण का एक हिस्सा है.

आपसी विश्वास का कत्‍ल
असल में कौटुंबिक व्यभिचार दूसरी तरह के यौन शोषण से अलग है, क्योंकि इसमें कुकर्मी से पीड़ित की रक्षा की अपेक्षा की जाती है. ऐसे यातनादायी अनुभव के लिए जरूरी नहीं कि 'बचाव' करने वाला शख्स परिवार का ही सदस्य हो. इस परिभाषा के अनुसार तो बच्चे की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार बड़े सदस्य द्वारा यौन शोषण कौटुंबिक व्यभिचार है क्योंकि इससे आपसी विश्वास खत्म हो जाता है. यह ठीक है कि कुकर्मी चाहे रक्त संबंधी हो या शादी के बाद रिश्ता बना हो-माता-पिता, सौतेले माता-पिता, बड़ा भाई-बहन, पड़ोसी, परिवार का मित्र, अध्यापक, धर्मगुरु, थेरेपिस्ट, चिकित्सक, बेबी सिटर, कैंप काउंसेलर या किसी और तरह से बच्चे की सुरक्षा में लगा व्यक्ति-बच्चे पर उसका असर एक सा ही होता है. बच्चे का वातावरण असुरक्षित हो जाता है, यह भ्रम पैदा करता है और बच्चा डरा-सहमा रहता है.



कौटुंबिक व्यभिचार पर सवाल

इस तरह के यौन संबंधों पर प्रतिबंध होने की वजह से ऐसे संबंधों के उजागर होने की संभावना कम होती है. चुप्पी और गोपनीयता बनाए रखने की कई वजहें हैं. यौन शोषण पीड़ितों के साथ काम कर रहे एक जाने-माने मनोचिकित्सक को तो कहना पड़ा कि, ''कौटुंबिक व्यभिचार तो वर्जित नहीं है, बल्कि इसके बारे में बात करना वर्जित है.'' इसकी शुरुआत कहां से हुई, कहा नहीं जा सकता, लेकिन यही वर्जना इस हरकत की गोपनीयता, भय और शर्म को छिपाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. यह भी विडंबना ही है कि यह इस तरह के व्यवहार को रोकने की जगह उसे ह्ढोत्साहित ही करता है.{mospagebreak}वर्जना से परे कुछ और कारण भी यौन शोषण के पीड़ित बच्चे या वयस्क को चुप रहने को बाध्य करते हैं. ये हैं:
* कई समाज में परिवार को बहुत पवित्र संस्था समझ जाता है. भारतीय ग्राहकों के साथ काम करने वाले मनोचिकित्सक और सलाहकारों ने गौर किया है कि भारतीय जीवन में परिवार की केंद्रीय भूमिका वृहत्तर पारिवारिक संदर्भ को समझे बिना किसी व्यक्ति के साथ काम करना असंभव ही कर देती है.
* पीड़ित बच्चा अपने शोषक के प्रति ह्ढेम और निष्ठा के द्वंद्व से लड़ता है.
* पीड़ित की उसकी उम्र और परिस्थितियां कुछ भी रही हों, उस अनुभव के बारे में वह व्यक्तिगत शर्म पाले रखता है.
* कुछ समाज में, खासकर लड़कियों के मामले में, इस बात का भय रहता है कि यौन शोषण का खुलासा होने से उसे 'बासी चीज' समझ जाने लगेगा. इससे उसकी शादी में बाधाएं आ सकती हैं और उसका जीवन तबाह हो सकता है.
* यौन शोषण के शिकार लड़कों को भी शर्मिंदा होना पड़ सकता है, क्योंकि उन्हें कमजोर समझ जाने लगता है.
* समलिंगी यौन शोषण के मामले में सांस्कृतिक दृष्टि से अपराधी (समलैंगिक) समझ जाने का भय भी बच्चे या वयस्क को चुप रहने को बाध्य करता है.
* यदि यौन अनुभव आनंददायक अथवा उत्तेजक रहा तो हो सकता है, इसे नुकसानदेह न माना गया हो.
* बचपन में यौन शोषण के बारे में व्यापक अज्ञानता, नकार और इसे कम करके आंकने की प्रवृत्ति है, यहां तक कि बाल शोषण के नुकसानदायक प्रभावों को भी बढ़ा-चढ़ाकार आंकने की प्रवृत्ति है.
* यौन शोषक बच्चे को चुप कराए रखने की व्यवस्था करने के लिए कई तरीके अपनाते हैं-डराना, प्रलोभन और जोर-जबरदस्ती, यहां तक कि झूठ बोलना भी. बच्चे के सीमित अनुभव और समझ को देखते ये तिकड़में प्रायः दशकों तक कारगर रहती हैं, बच्चे की युवावस्था तक.

कहां है लक्ष्‍मण रेखा
तो यौन संबंधों का अनुभव लेने और शोषण में कहां रेखा खींची जाए? यह बेशक टेढ़ा सवाल है, खासकर भाई-बहनों के यौन शोषण के मामले में. हालांकि कुछ लेखक उम्र के तीन साल के अंतर या वयस्क होने को आधार मानते हैं, जवाब इतना आसान नहीं है. यौन शोषण सिर्फ उम्र, आकार या ताकत का मामला नहीं है, सत्ता की असमानता का भी है.{mospagebreak}2008 के इंडिया टुडे-एसी नीलसन-ओआरजी मार्ग सेक्स सर्वेक्षण में भाग लेने वाले जिन लोगों ने करीबी रिश्तेदारों के साथ यौन संबंध की बात मानी, उनमें अधिकतर ने भाई या बहन के साथ ही यौन संबंध स्थापित किए थे. इसकी वजह यह हो सकती है कि यह माता-पिता या बच्चे के साथ यौन संबंधों की तुलना में कम शर्म की बात है, लिहाजा इसका खुलासा किया जा सकता है.

सबसे ज्‍यादा बनती है लड़कियां शिकार
लोगों की चुप्पी की वजहों को देखते हुए हम कौटुंबिक व्यभिचार के असली स्वरूप को नहीं जान पाते. शोधार्थियों और चिकित्सकों द्वारा आम तौर पर स्वीकार किए जाने वाले आंकड़े दर्शाते हैं कि एक-तिहाई से लेकर 50 फीसदी तक लड़कियां और आठवें से लेकर छठे हिस्से तक लड़कों का 18 साल की उम्र तक यौन शोषण हो चुका होता है. अधिकतर पेशेवरों का मानना है कि ये अनुमान बहुत कम हैं और असल आंकड़ा इनसे कहीं अधिक हो सकता है.

उबरने की कोशिश
क्या इस तरह का यौनाचार हमेशा ही नुकसानदायक होता है? मुझे शक है कि हम इस सवाल का जवाब दे पाएंगे. यह संभव है कि कुछ बच्चे ऐसे यौन शोषणों के अनुभव को आसानी से भुला देते हैं और ये अनुभव उनके भावी जीवन पर दीर्घकालीन असर नहीं छोड़ पाते. यौन शोषण के पीड़ित का किसी से इसका खुलासा करने, मदद या समर्थन लेने से पहले दशकों तक अकेले में घुटते रहना असामान्य बात नहीं है.

पोर्नोग्राफी का सहारा
इससे उबरने की शुरुआत करने से पहले ये पीड़ित बचने, छिपने, अलग-थलग पड़े रहने या अपना दर्द कम करने की रणनीति अपनाते हैं. इसमें शराब या दूसरी मादक दवाओं का जरूरत से ज्‍यादा सेवन; भोजन, सेक्स, काम, व्यायाम, धर्म, पोर्नोग्राफी का सहारा लेते हैं. ये लोग जरूरत से ज्‍यादा दूसरे का ख्याल रखने वाले बन जाते हैं. पहली बार यौन शोषण का पीड़ित बच्चा या वयस्क इन रणनीतियों को अपना दर्द कम करने के लिए अपनाता है तो उसकी पीड़ा कम होने लगती है. लेकिन कालांतर में इसका असर जाता रहता है और पीड़ित ऐसी 'चिकित्सा' का और अधिक सहारा लेने लगता है. अंततः बचे रहने की यह रणनीति आदत या बाध्यता बन जाती है.

उबरने की यंत्रणादायक प्रक्रिया
शोषित या पीड़ित का ऐसी रणनीतियों को अपनाना गलत नहीं है. उस समय ये ही बचाव के बढ़िया रास्ते होते हैं. बाल पीड़ित के पास अपने शारीरिक आकार, ताकत, समझ और संसाधनों के चलते बस एक ही रास्ता बचता है- जहां तक हो सके उस शोषण को झेलना, तब तक जब तक वह पर्याप्त सुरक्षा और संसाधन विकसित कर स्वस्थ होने की शुरुआत नहीं कर लेता. करीबी रिश्तेदारों द्वारा यौन संबंध और यौन शोषण की पीड़ा से उबरने की प्रक्रिया लंबी और यंत्रणादायक होती है. लेकिन परिणाम इन प्रयासों का औचित्य सही ठहरा देते हैं. पीड़ित का जीवन सुधरता जाता है, संबंध स्वस्थ हो जाते हैं और जीवन अधिक व्यवस्थित, यहां तक कि जीवन में खुशियां भी छाने लगती हैं.

उबने के कई रास्‍ते
पीड़ितों को पीड़ा से उबरने के लिए दुनिया भर में बहुत-सी पुस्तकें, मदद के संगठन, ऑनलाइन फोरम, वेबसाइट, ग्रुप, वर्कशॉप, काउंसेलिंग, थेरेपी उपलब्ध है. तो अब चुपचाप और अकेले इस यंत्रणा को झेलते रहने की जरूरत नहीं है.
लेखक अमेरिका के मनोचिकित्सक और विक्टिम नो लौंगरः द क्लासिक गाइड फॉर में रिकवरिंग फ्रॉम सेक्सुअल चाइल्ड एब्यूज पुस्तक के लेखक हैं

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