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नींद क्यों शहर में आती नहीं

यह केवल नींद की कमी का मामला नहीं है. देश के शहरी इलाकों के शयनकह्नों में स्वास्थ्य के लिए खतरनाक नया लक्षण उभर रहा है जिसका नाम है-ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया

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यह केवल नींद की कमी का मामला नहीं है. देश के शहरी इलाकों के शयनकह्नों में स्वास्थ्य के लिए खतरनाक नया लक्षण उभर रहा है जिसका नाम है-ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया

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रात होते ही अस्पताल में चहल-पहल कम हो जाती है और लोग फुसफुसाकर बातें करने लगते हैं. सर्जन अपने नश्तर रख देते हैं, रात में ड्यूटी करने वाली नर्सें बैठ जाती हैं, जूनियर डॉक्टर मरीजों के चार्ट देखने लगते हैं. लेकिन एक कमरा जीवंत हो उठता है. यहां एक विशेषज्ञ एक मरीज पर विशेष ध्यान दे रहा है. मरीज के शरीर के विभिन्न हिस्सों को मॉनिटरों के सेंसर से जोड़ा जाता है. विशेषज्ञ मरीज के सीने को बेल्टों में लपेट देता है, उसकी उंगलियों पर बैंड-एड जैसी क्लिप लगाता है और गरदन पर एक छोटा माइक्रोफोन रखता है. रोशनी कम की जाती है और कुछ घंटे बीतने के साथ ही कमरे में खर्राटे की आवाज गूंजने लगती है-बीच-बीच में मरीज को सांस लेने में परेशानी होती है और थोड़ी देर के लिए खामोशी छा जाती है. मॉनिटर से पीं की आवाज निकलती है, एलईडी स्क्रीन पर संकेत तेजी से उछलते हैं, और एक प्रोसेसर कागज की पट्टी पर लहरनुमा रेखा तैयार करने लगता है. विशेषज्ञ उन लहरों को ध्यान से देखते हैं: उसने कितनी बार अपने चेहरे को हिलाया? क्या वह अपने दांत पीस रहा था? क्या उसके पैरों और आंखों से बेचैनी झलक रही थी? उसके दिल की धड़कन और दिमाग की लहरें कैसी थीं? वह जम्हाई लेता है. लेकिन उसे इसी तरह एक लंबी रात काटनी है. {mospagebreak}यह स्लीप लैब (निद्रा प्रयोगशाला) है. जो व्यक्ति पॉलीसोम्नोग्राम कर रहा है वह 'निद्रा विशेषज्ञ' है और वह यह पता लगाने का प्रयास कर रहा है कि मरीज कहीं 'ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया' (ओएसए) नामक मर्ज का शिकार तो नहीं है. ओएसए सांस लेने में परेशानी की वजह से होने वाली अनिद्रा का एक रूप है. यह मर्ज काम के बोझ तले दबे लोगों, मोटे और तनावग्रस्त शहरियों में देखा जा रहा है. एक दशक पहले तक नींद पर अनुसंधान अज्ञानता और अटकलबाजी का क्षेत्र था. लेकिन सप्ताह में सातों दिन 24 घंटे काम करने वाले हमारे समाज में नींद की कमी होने के साथ ही अधिकाधिक लोग यह जांच करवा रहे हैं कि वे रात को अच्छी नींद क्यों नहीं ले पाते. विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय लोग न केवल अनिद्रा के शिकार हो रहे हैं बल्कि यह अनिद्रा सेहत के लिए एक नई चेतावनी ओएसए के रूप में उभर रही है. ओएसए के साथ एक चौंकाने वाली बात यह है कि यह अकेले नहीं आती. दिल्ली के अपोलो अस्पताल में रेस्पिरेटरी मेडिसीन, क्रिटिकल केयर और स्लीप डि.जॉडर्स के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. एम.एस. कंवर का कहना है, ''ओएसए कई तरह की बीमारियां पैदा करता है, जिन्हें सिंड्रोम जेड कहते हैं. {mospagebreak}इनके लक्षण हैं इंसुलिन का काम न करना, मोटापा, अत्यधिक तनाव और अधिक कोलेस्ट्रॉल. वे सब मिलकर स्वास्थ्य पर बहुत खराब असर डालते हैं.''

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इंडियन स्लीप डि.जॉडर्स एसोसिएशन के संस्थापकों में से एक, डॉ. जे.सी. सूरी का कहना है, ''ओएसए के साथ समस्या यह है कि इसकी वजह से नींद के दौरान कई बार सांसें अटक जाती हैं. परिणामस्वरूप टुकड़ों-टुकड़ों में नींद आती है जिससे आप अगले दिन थके और उनींदे महसूस करते हैं. माना जाता है कि भारत में चार करोड़ से ज्‍यादा लोग ओएसए से पीड़ित हैं.'' इस समस्या की गंभीरता पर नजर डालें- नवंबर, 2009 में एसी नीलसन ने 25 शहरों में 35 से 65 वर्ष के 5,595 लोगों का फिलिप्स स्लीप सर्वेक्षण किया. इस सर्वेक्षण से पता चलता है कि भारत के 93 फीसदी शहरी लोग पर्याप्त नींद नहीं ले रहे हैं, 28 फीसदी रात में केवल पांच घंटे सोते हैं और 71 फीसदी रात में तीन बार जगते हैं. खर्राटे लेने वाले 38 फीसदी से ज्‍यादा भारतीय मोटे हैं, 45 फीसदी धूम्रपान करते हैं, 44 फीसदी मधुमेह के रोगी हैं, 46 फीसदी अत्यधिक तनाव के शिकार हैं और 40 फीसदी हृदय रोगों से ग्रस्त हैं. ऐसे में आश्चर्य नहीं कि सर्वेक्षण में शामिल 62 फीसदी लोगों को ओएसए का खतरा है. मुंबई के पी.डी. हिंदुजा हॉस्पिटल के डॉ. अशोक महाशुर का कहना है, ''अगर इस मर्ज का इलाज न कराया जाए तो इसके घातक, दीर्घकालिक परिणाम निकल सकते हैं.'' कंसल्टेंट चेस्ट फिजिशियन और पल्मोनॉलॉजी के प्रमुख की हैसियत से डॉ. महाशुर ने पिछले 10 वर्षों में ओएसए के मामलों में दोगुनी बढ़ोतरी होते देखा है.{mospagebreak}पचास वर्षीय विनय कुमार तुरलापति वेंकट को ही लें. हैदराबाद में एक सुरक्षा फर्म के मालिक वेंकट वर्षों से रोज सुबह उठते और उनकी इच्छा होती है कि वे कुछ और घंटे सो पाते. रात में वे जोर-जोर से खर्राटे लेते हैं, उन्हें खांसी के दौरे आते, रात में बार-बार जाग उठते हैं. नतीजा यह होता है कि सारे दिन झपकियां लेते रहते हैं. वे बताते हैं, ''चिड़चिड़ा, मूडी और थका होने से मैं कहीं भी झपकी लेने लगता हूं. कई बार तो कार चलाते-चलाते नींद में आ जाता हूं.'' महाराष्ट्र में नांदेड़ के रहने वाली 65 वर्षीया कुसुमबाई रमाकांत का अनुभव तो और भी डरावना है. हालांकि वर्षों तक वे एक बार में चार घंटे से ज्‍यादा कभी नहीं सोती थीं, लेकिन लोगों को तब पता चला कि वे ओएसए की शिकार हैं, जब एक दिन वे निढाल होकर गिर पड़ीं. उनके बेटे 'नमंत  कहते हैं, ''नींद की एक प्रयोगशाला में रात भर के टेस्ट के बाद पता चला कि वे ओएसए से पीड़ित थीं.'' उनके गुर्दे सूज गए थे, उनका रक्तचाप कम हो गया है और उनके रक्त में ऑक्सीजन का स्तर सामान्य से बहुत नीचे चला गया था. वे कहते हैं, ''हालांकि हम जानते थे कि वे थकान महसूस करती थीं और पर्याप्त नींद नहीं लेती थीं लेकिन हमने कभी नहीं सोचा था कि वे खतरनाक बीमारी की शिकार थीं.'' {mospagebreak}अध्ययन से पता चला है कि ओएसए हालांकि कुछ मामलों में जन्म के समय से कुछ गड़बड़ियों के कारण होता है लेकिन अस्वस्थ जीवन शैली-जंक फूड, तंबाकू और व्यायाम का अभाव-इसके मुख्य कारण हैं. कंवर कहते हैं, ''यह पूरी तरह से जीवन शैली से संबंधित नींद की गड़बड़ी है और मोटापे से जुड़ी है.'' लगता है पुरुष इसके ज्‍यादा शिकार होते हैं. महाशुर कहते हैं, ''उनके पेट के ऊपरी हिस्से का वजन बढ़ जाता है.'' पेट और पसलियों के आसपास स्थूल कोशिकाओं के जमा हो जाने से सांस लेने में व्यक्ति को ज्‍यादा प्रयास करना पड़ता है. 2003-04 में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के एक अध्ययन के मुताबिक, ओएसए से पीड़ित रोगियों का वजन बहुत ज्‍यादा होता है और वे उच्च रक्तचाप तथा मधुमेह से भी पीड़ित होते हैं. इसलिए डॉक्टरों की सलाह है कि ओएसए से बचने के लिए सबसे पहले वजन कम करना जरूरी है. {mospagebreak}भारतीय निद्रा रोग संघ के एक शोध से पता चलता है कि गर्भवती महिलाएं अकसर ओएसए की शिकार हो जाती हैं. हैदराबाद के यशोदा अस्पताल में फेफड़े की बीमारियों के विभाग के निदेशक डॉ. विजय कुमार रत्नवेलु कहते हैं, ''गर्भवती महिला का वजन तीसरे महीने में बढ़ने लगता है क्योंकि उसका शरीर काफी पानी इकट्ठा करना शुरू कर देता है.'' वे कहते हैं, ''आम तौर पर यह गलत धारणा है कि गर्भवती महिलाओं को ज्‍यादा भोजन करना चाहिए और व्यायाम नहीं करना चाहिए. इससे समस्या बढ़ जाती है.'' शारीरिक मेहनत न करने और ज्‍यादा कैलोरी युक्त भोजन करने से शहरी बच्चे ओएसए के आसान शिकार बन जाते हैं. रत्नवेलु कहते हैं, ''बच्चों में टौंसिल भी ओएसए का एक कारण हो सकता है, क्योंकि यह हवा के मार्ग में अवरोध पैदा करता है.''

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ओएसए और सिंड्रोम जेड इसलिए खतरनाक हैं, क्योंकि वे हृदय और मस्तिष्क जैसे महत्वपूर्ण अंगों को प्रभावित करते हैं. महाशुर के मुताबिक, ''ये वे अंग हैं जो पर्याप्त ऑक्सीजन न मिलने पर सबसे ज्‍यादा प्रभावित होते हैं.'' जो मरीज ओएसए की अनदेखी करते हैं उनमें मधुमेह और उच्च रक्तचाप का होना आम बात है. और कुछ मामलों में ओएसए के कारण दिल का दौरा भी पड़ सकता है या लकवा भी मार सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि ओएसए के नतीजे ऐसी बीमारियों को जन्म दे सकते हैं जिनसे दिल की बीमारी हो सकती है. ओएसए के कारण मधुमेह और उच्च रक्तचाप हो जाता है. हैदराबाद स्थित मेडिसर्व स्लीप इंस्टीट्यूट, जो दुनिया भर से आने वाली नींद की टेस्ट रिपोर्टों का विश्लेषण करता है, के मुख्य चिकित्सा अधिकारी और मुख्य टेक्नोलॉजिस्ट डॉ. यर्रा रामकृष्णम राजू कहते हैं, ''नींद की कमी से आपके शरीर का प्रतिरोधक तंत्र और आपकी प्रतिक्रियाएं प्रभावित होती हैं.'' वे आगे बताते हैं, ''हम ऐसे ढेरों मरीज देखते हैं जिनमें ओएसए के कारण एकाग्रता का अभाव होता है. कोई मरीज घर पहुंचने के लिए एक किमी पैदल चला जाएगा और फिर पूरी तरह भूल जाएगा कि वह कहां जा रहा है और वहां क्यों व कैसे पहुंच गया है.'' ताज्‍जुब नहीं, ओएसए सड़क दुर्घटनाओं का एक बड़ा कारण बन गया है. एम्स के एक अध्ययन के अनुसार, अध्ययन में लिए गए कम-से-कम 20 फीसदी लोगों का सड़क पर लड़ाई और दुर्घटनाओं का इतिहास था. {mospagebreak}चिंताजनक बात यह है कि ओएसए के मरीजों को अपनी बीमारी का तब तक पता नहीं चलता जब तक कोई उन्हें इस बारे में नहीं बताता. हिंदुजा अस्पताल में काम करने वाले प्रेमनाथ तेमकर छाती रोग के डॉक्टर के पास तब गए जब उनकी पत्नी और बेटी ने देखा कि रात में उनकी धड़कन असामान्य रूप से बढ़ जाती थी और वे जोर-जोर से खर्राटे लेते थे. वे कहते हैं, ''मेरी बेटी ने सोचा कि शायद यह दमा था और उसने जोर डाला कि मैं डॉक्टर के पास जाऊं.'' तेमकर किस्मत वाले हैं, क्योंकि ओएसए से पीड़ित मरीजों में कोई लक्षण नहीं दिखाई देते और जब तक यह गंभीर रूप नहीं ले लेता तब तक वे इलाज नहीं ले पाते. मुंबई में लीलावती अस्पताल में निद्रा संबंधी सांस की बीमारियों के विशेषज्ञ डॉ. प्रक्षाद प्रभुदेसाई कहते हैं, ''न तो मरीज के घरवाले खर्राटों की शिकायत करते हैं, न ही मरीजों को किसी तरह की थकान का एहसास होता है.'' आश्चर्य नहीं कि 2009 में नींद के सर्वेक्षण में 63 प्रतिशत उत्तरदाता नहीं समझ्ते थे कि खर्राटे लेना गंभीर मामला हो सकता है. 85 प्रतिशत को इस बात की जरूरत नहीं महसूस होती थी कि वे नींद की गड़बड़ी के बारे में कोई जानकारी मांगते, 67 प्रतिशत लोग नींद की समस्या को लेकर किसी से चर्चा नहीं करते थे. सिर्फ 2 प्रतिशत लोग ही नींद की समस्या को लेकर डॉक्टर के पास गए थे. यह चिंताजनक बात है. प्रभुदेसाई कहते हैं, ''अगर ढेर सारे लोगों को इसका पता ही नहीं चलता है, तो ऐसे लोगों की भी बड़ी संख्या है जो अकसर खर्राटे तो लेते हैं लेकिन परीक्षण में उन्हें अकसर ओएसए से मुक्त बता दिया जाता है.'' {mospagebreak}बड़ी बीमारियों के पीछे ओएसए की भूमिका के बारे में कोई अखिल भारतीय अध्ययन न होने से यह समस्या छिपी रह जाती है. लेकिन अब डॉक्टर मरीजों को पौष्टिक भोजन करने और शारीरिक मेहनत करने की सलाह देते हैं अस्पतालों में बड़ी संख्या में नींद की प्रयोगशालाएं बनने लगी हैं और नींद विशेषज्ञों की भर्ती की जाने लगी है. देश भर में करीब 120 ऐसी प्रयोगशालाएं हैं, जहां हर साल 1500-2000 नए मरीजों का इलाज होता है. ऐसी तमाम और प्रयोगशालाएं खुल रही हैं. पूरी नींद लेने के लिए मरीज नए-नए ढंग से गद्दों, तकियों और दूसरी वस्तुओं का इस्तेमाल करने लगे हैं. फिलिप्स हेल्थकेयर इंडिया के व्यापार प्रबंधक सत्यकाम शर्मा कहते हैं, ''हमारा सर्वेक्षण आंखें खोल देने वाला था. हम यह देखकर हैरत में थे कि कितने प्रतिशत लोग अनिद्रा और उसके दुष्परिणामों के शिकार थे.'' तो अब शरीर की जरूरत को समझें और समय पर बिस्तर पर चले जाएं. रात में आठ घंटे की नींद आपको स्वस्थ बनाए रखेगी. कई दिन उससे कम नींद होने पर अनिद्रा की समस्या आ जाएगी और आपका मस्तिष्क कमजोर पड़ जाएगा. इसलिए नींद पूरी लें.

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