माहवारी की बात होते ही लड़कियों और महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव की तस्वीर उभरने लगती है. खासकर ग्रामीण और कामकाजी महिलाओं को इस भेदभाव से दो-चार होना पड़ता है.
विश्व माहवारी स्वच्छता दिवस (28 मई) के मौके पर, दिल्ली स्थित एक एनजीओ 'जागो गांव' ने गांधी शांति प्रतिष्ठान में माहवारी स्वच्छता प्रबन्धन पर एक कार्यशाला का आयोजन किया. माहवारी के दौरान स्वच्छता से जुड़े मुद्दों पर जागरुकता उत्पन्न करना इसका मुख्य उद्देश्य है.
हैरत की बात है कि आज के समय में भी इसके साथ सामाजिक कलंक और अज्ञानता जुड़ी है. इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर चुप्पी तोड़ना तथा इनकी ओर समाज का ध्यान आकर्षित करना इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य था.
डोर्लिंग किंडर्सले इण्डिया प्रा. लिमिटेड में कार्यरत अल्का रंजन ने कहा, 'आज के दौर में शिक्षा के मुख्य पाठ्यक्रम में यौन शिक्षा को शामिल करना जरूरी है.'
इस कार्यशाला में उदय सहाय (चेयरमैन सॉव कम्युनिकेशन), तारा शंकर (शोधकर्ता), किरण साहिन (सामाजिक कार्यकर्ता) और शांति जागोरी (दिल्ली राज्य की प्रमुख) भी शामिल हुए. चर्चा के बाद एक लघु फिल्म 'माहवारी या महामारी' की स्क्रीनिंग भी की गई.
'माहवारी स्वच्छता प्रबन्धन’ 'जागो गांव' स्वास्थ्य शिक्षा श्रृंखला की पहली कार्यशाला थी. 'जागो गांव' हरियाणा, राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश के विभिन्न गांवों में इस तरह की कार्यशालाओं के आयोजन की योजना बना रहा है. शहरी झुग्गियों एवं दिल्ली के संवेदनशील हिस्सों में भी इस दिशा में जागरुकता पैदा करने के लिए 'जागो गांव' ने दिल्ली की एनजीओ 'स्ट्रगल फॉर जस्टिस' एवं 'परमार्थ चिंतन' के साथ भी हाथ मिलाए हैं.
इस मौके पर जागो गांव के अध्यक्ष सोमेश कुमार चैधरी ने बताया, 'यह कार्यशाला लड़कों और लड़कियों के बीच शिक्षा के क्षेत्र में समानता लाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है. हमें शिक्षकों, नीति निर्माताओं, मीडिया, गैर सरकारी संगठनों एवं निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करना होगा. उन्हें यह संदेश देना होगा कि वो शिक्षा की दृष्टि से लैंगिक समानता लाने के लिए प्रयास करें तथा लड़कियों को यौन शिक्षा एवं माहवारी स्वच्छता प्रबन्धन के बारे में शिक्षित करने की कोशिश करें.'