दूध में मौजूद प्रोटीन और कैल्शियम समेत अन्य पोषक तत्व इंसान के शारीरिक विकास में मददगार हैं. शायद इसी वजह से आज पूरी दुनिया 'वर्ल्ड मिल्क डे' सेलिब्रेट कर रही है. जबकि कांग्रेसी नेता मिलिंद देवड़ा ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर डेयरी फार्म्स में पशुओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार का एक वीडियो अपलोड किया है. इस वीडियो के साथ देवड़ा ने यूनाइटेड नेशंस को टैग करते हुए लिखा, 'यह न भूलें कि दूध के लिए गाय का बर्बरता से गर्भाधान होता है और बाद में उन्हें मरने के लिए कसाईखाने भेज दिया जाता है।'
इस वीडियो में दूध उत्पादन के लिए चलाई जा रही डेयरी फार्म्स की असलियत दिखाई गई है. क्या कभी आपने सोचा है कि इतने सारे लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए इतने बड़े पैमाने पर दूध का उत्पादन कैसे होता है. अधिक उत्पादन के लिए कई बार इन पशुओं के साथ क्रूरता भी होती है.
वीडियो में दिखाया गया है कि गाय सिर्फ एक ही कारण से दूध देती हैं, अपने बच्चे का पेट भरने के लिए. इंसानों की तरह गाय भी अपने बच्चे को 9 महीने गर्भ में रखती है. वह बच्चों को ठीक हमारी ही तरह दूध पिलाकर बड़ा करती है. स्तनपान की अवधि खत्म होने के बाद वह दूध देना बंद कर देती है, जैसा कि ठीक इंसान करते हैं. लेकिन डेयरी फार्म में जबरन पैदा किए जाने वाला दूध न सिर्फ बेजुबान पशुओं के लिए खतरनाक है बल्कि इंसानों की सेहत के लिए भी हानिकारक है.
मुनाफे की भेंट चढ़ रहे पशु
दूध प्राप्त करने की इस प्राकृतिक प्रक्रिया के बाद शुरू होता है डेयरी फार्म का व्यापार. यहां पशुओं को कृत्रिम गर्भाधान भी कराया जाता है. दूध का कारोबार हमेशा मुनाफे में रहे इसके लिए ये तरीके अपनाए जाते हैं. इस दौरान गाय के बछड़ों को भी मां से अलग कर दिया जाता है.
मुनाफाखोरों की पसंद फीमेल गाय-
डेयरी उद्योग में इन बछड़ों के साथ काफी दर्दनाक सुलूक होता है. कई बार तो डेयरी उद्योग के कर्मचारी उनकी बेरहमी से पिटाई भी करते हैं. मां से दूर कर उन्हें एक कैदखाने में डाल दिया जाता है, ताकि वे उसके आस-पास भी न भटक सकें. अगर बछड़ा फीमेल है तो उसे सिर्फ इस वजह से पाला जाता है कि आगे चलकर वह भी इस लाभ की भेंट चढ़ेगा और मेल बछड़े के लिए केवल पशुवध ही एकमात्र उपलब्ध विकल्प है.
कई बार हो चुकी शिकायतें-
आपकी आइसक्रीम का एक-एक बाइट और दूध का हर एक गिलास उन मासूम बछड़ों का अधिकार है जो उन्हें कभी मिला ही नहीं. उधर बच्चे से बिछड़ने के बाद शेल्टर में ये गाए पूरे दिन रो-रो कर चिल्लाती रहती हैं. डेयरी फार्म के नजदीकी इलाकों में रहने वाले लोगों ने कई बार इसे लेकर पुलिस में शिकायत भी दर्ज करवाई हैं, लेकिन कोई रास्ता नहीं निकला.
4 से 5 साल में गाय की मौत-
मुनाफाखोरों के फायदों के लिए बच्चे से अलग होने वाली गाय अमूमन 4 से 5 साल में जिंदगी से जंग हार जाती हैं. जबकि इसकी औसत आयु 20 वर्ष से ज्यादा होती है. मृत्यु होने के बाद इन्हें मीट के सौदागरों को सौंप दिया जाता है. आंकड़े बताते हैं कि 10 से 70 प्रतिशत गाय प्रेग्नेंसी के दौरान डेयर फार्म में लाई जाती है. जाहिर सी बात है कि इस वक्त उनका सबसे ज्यादा फायदा उठाया जा सकता है.