पंजाब में कहावत है. जिने लाहौर नी वेख्या ओह्ने कुज नी वेख्या. बंटवारे के बाद पंजाब के दो हिस्से हो गए और लाहौर देखने की हसरतें कंटीली तारों में उलझ कर रह गईं. वाघा-अटारी बॉर्डर पर ये माइलस्टोन उन्हीं हसरतों की मजार है.
(फोटो: रजत सैन)
पर्वत सा खड़ा अटारी बॉर्डर का ये मुख्य द्वार उन तमाम शूरवीरों के जज्बे की पराकाष्ठा है, जिस के आगे दुश्मन ध्वस्त हो जाता है. बरसों से सरहद पर सिपाहियों के साथ ही तैनात है ये मुख्य द्वार भी (फोटो: रजत सैन)
देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों की गिनती साल दर साल बढ़ती रही. हाल ये होने लगा था कि कई बार तो लोग रीट्रीट सेरेमनी देखने के लिए अंदर दाखिल भी नहीं हो पाते थे. ऐसे में साल 2019 में राजनाथ सिंह के गृह मंत्री रहते हुए इस बॉर्डर ने इतना विशाल रूप लिया. जहां दो साल पहले कुछ ही हज़ार लोग इस जुनून के साक्षी बनते थे अब वहां करीब 14000 लोग सेना और देश के जज्बे को करीब से महसूस कर पाते हैं.
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देश के हर हिस्से से आया शख्स वाघा अटारी बॉर्डर आकर तिरंगे में ऐसा रंग जाता है कि उसकी पहचान सिर्फ एक भारतीय की रह जाती है.
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मनोज कुमार का गाना बजता है ये देश है वीर जवानों का लेकिन जवान हो या बूढ़ा, औरत हो या आदमी सबकी आंखें चमक उठती हैं और हाथ में तिरंगा लिए भारत मां की जय-जयकार से पूरा स्टेडियम गूंज उठता है.
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जोश में उठते कदम और समर्थन में उठे हाथ वहां के माहौल में मंत्रमुग्ध होकर एक ही बात कहते हैं, ऐसा देस है मेरा…
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BSF यानि बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स ही इस बॉर्डर पर रीट्रीट सेरेमनी में हिस्सा लेती है.
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और फिर कमर से कमर, कंधे से कंधा मिलाए आगे बढ़ते हैं देश के शूरवीर. जैसे-जैसे बॉर्डर नजदीक आता जाता है, आंखों और तेवर में आक्रमकता बढ़ती जाती है.
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पीछे खड़ा BSF जवान लोगों से अपना समर्थन देने की अपील करता है और एक स्वर में हर भारतीय बोल उठता है ‘वंदे मातरम’.
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6 फुट से भी ऊंचे ये जवान उस वक्त इतनी ऊर्जा से भर जाते हैं कि पाकिस्तानी रेंजर्स को जवाब देने के लिए उनके कद से भी ऊपर पांव उठा देते हैं.
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BSF जवान no mens land में दाखिल होते हैं, बॉर्डर के द्वार खुल जाते हैं. सामने की तरफ खड़े पाकिस्तानी रेंजर्स की आंख में आंख डाल भारत अपनी शक्ति का एहसास करवाता है.
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पीछे खड़ा जवान पाकिस्तान की तरफ इशारा कर दर्शकों से जवाब देने की अपील करता है. उस एक इशारे से भारतीयों का कोलाहल पाकिस्तान में दाखिल हो जाता है.
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बॉर्डर के उस पार नज़र पड़ती है तो उनमें और हममें कोई फर्क नहीं आता. याद आता है 1947 का विभाजन और ये सोचते-सोचते ही दोनों तरफ के लोग राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान में खड़े हो जाते हैं. क्योंकि झंडा हर मुल्क का अपना गर्व होता है.
(फोटो: रजत सैन)
कुछ ही पलों में दोनों ध्वज आमने-सामने होते हैं. और मुझे एका एक याद आती है सर साइरिल रेडक्लिफ की. जिनकी कलम नक्शे पर जहां-जहां से गुजरी, वहां-वहां से कंटीली तारों ने एक जमीन को दो मुल्कों में बांट दिया. (फोटो: रजत सैन)
पूरे सम्मान से ध्वज को अपना हाथों में लिए जवान वापस भारत की और लौटते हैं, स्टेडियम में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठती है.
(फोटो: रजत सैन)