भारत को अगर तीर्थों का देश कहा जाए, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. जहां तक उत्तर भारत की बात है, यहां के दो तीर्थस्थल बद्रीनाथ और केदारनाथ देशवासियों की आस्था के प्रमुख केंद्र हैं.
प्रकृति की गोद में बसा देवभूमि उत्तराखंड बहुत ही मनोरम प्रदेश है. यहां बहुसंख्य धार्मिक स्थल हैं, जिनमें बद्रीनाथ और केदारनाथ की बड़ी महिमा है.
देश में धामों की संख्या चार है. ये हैं बद्रीनाथ, द्वारका, रामेश्वरम् और जगन्नाथपुरी.
ये चारों धाम देश के उत्तरी, पश्चिमी, दक्षिणी एवं पूर्वी छोरों पर स्थित हैं.
कैसे पड़ा नाम: बद्रीनाथ क्षेत्र में बदरी(बेर) के जंगल थे, इसलिए इस क्षेत्र में स्थित विष्णु के विग्रह को बद्रीनाथ की संज्ञा प्राप्त हुई.
बद्रीनाथ का वर्तमान मंदिर अधिक प्राचीन नहीं है.
बद्रीनाथ का जो मंदिर आज मौजूद है, उसे रामनुज संप्रदाय के स्वामी वरदराज की प्रेरणा से गढ़वाल नरेश ने पंद्रहवीं शताब्दी में बनवाया था.
मंदिर पर सोने का छत्र और कलश इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने चढ़वाया था.
मंदिर में वरिष्ठ और कनिष्ठ दो पुजारी होते हैं. इन्हें केरल के नम्बूदरीपाद ब्राह्मण परिवार से ही चुना जाता है.
बद्रीनाथ धाम और केदारनाथ में विभिन्नता: बद्रीनाथ धाम और केदारनाथ के कपाट जाड़े में बंद हो जाते हैं और गर्मियों में खुलते हैं. शेष तीन धामों की यात्रा पूरे साल चलती रहती है.
हालांकि बद्रीनाथ और केदारनाथ में कुछ विभिन्नताएं भी हैं.
पहला अंतर यह है कि बद्रीनाथ धाम है और केदारनाथ तीर्थस्थल है.
दूसरा अंतर यह है कि बद्रीनाथ में विष्णु के विग्रह की पूजा होती है और केदारनाथ में शिव के विग्रह की पूजा.
तीसरा अंतर यह है कि शीतकाल में बद्रीनाथ से भगवान विष्णु का विग्रह उठाकर ऊखीमठ में ले जाया जाता है. ऊखीमठ में भगवान की पूजा नहीं होती है.
इसके विपरीत केदारनाथ में शिव का विग्रह अपनी स्थान पर बना रहता है और कपाट बंद हो जाने पर विग्रह की पूजा नहीं होती है.
श्रीबद्रीनाथ महात्म्य: मान्यता है कि जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है, वह मुक्ति को प्राप्त हो जाता है.
कहा जाता है कि जिसने सैंकड़ों जन्मों में भगवान की आराधना की हो, उसी को श्री बद्रीनारायण भगवान के दर्शन होते है.
मान्यता के अनुसार, जो पुरुष महापापी हो और कहीं भी उसके पाप नष्ट न हों, यहां आने मात्र से उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं.
साथ ही जो कोई बद्रीनाथ को पंचगव्य से स्नान कराकर वस्त्र और आभूषण भेंट करता है, वह सदा बैकुण्ठ में वास करता है.
जो भी बद्रीनारायण की परिक्रमा करता है, उसे पृथ्वी दान का फल मिलता है.
जो तप्तकुण्ड में स्नान कर भगवान का ध्यान करते हुए बद्रीनारायण के दर्शन करता है, तो देवता भी उसकी स्तुति करते हैं.
और क्या है देखने लायक: बद्रीनाथ धाम के अतिरिक्त आसपास ऐसे कई तीर्थस्थल हैं.
व्यास गुफा बद्रीनाथ धाम से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर है. ढाई किलोमीटर तक यात्री लोग वाहन से जा सकते हैं. इसके बाद चढा़ई शुरू हो जाती है और पैदल चलना पड़ता है.
मान्यता है कि व्यास गुफा में महर्षि वेदव्यास ने ब्रह्मसूत्र की रचना की थी.
माना जाता है कि आदिशंकराचार्य ने इसी गुफा में ब्रह्मसूत्र पर शरीरिक भाष्य नामक ग्रंथ की रचना की थी.
व्यास गुफाके पास ही गणेश गुफा है. यह महर्षि व्यास के लेखक गणेशजी का वास स्थान था.
बद्रिकाश्रम क्षेत्र में अलकनंदा नदी है.
अलकनंदा का उद्गम-स्थान अलकापुरी हिमनद है. इसे कुबेर की नगरी कहा जाता है.
अलकापुरी हिमनद से निकलने के कारण इस नदी को अलकनंदा कहा जाता है.
बद्रीनाथ की अवस्थिति: बद्रीनाथ मंदिर, जिसे बद्रीनारायण मंदिर भी कहते हैं, अलकनंदा नदी के किनारे उत्तराखंड राज्य में स्थित है.
यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप बद्रीनाथ को समर्पित है.
बद्रीनाथ हिन्दुओं के चार धामों में से एक है. यह ऋषिकेष से 294 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.
हिमालय के शिखर पर विराजमान बद्रीनाथ धाम श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र है.
बद्रीनाथ धाम में देश के कोने-कोने से आस्थावान तीर्थ-यात्रियों का आना-जाना लगा ही रहता है.
भगवान बद्रीनाथ को बद्री विशाल नाम से पुकारते हैं.
इतिहास की नजर से बद्रीनाथ धाम: भारतीय सेना के कुमाऊं व गढ़वाल रेजीमेंट के सैनिकों का विजय उद्घोष 'जय बद्री विशाल' है.
बद्रीनाथ मंदिर को अनादिकाल से स्थापित माना जाता है, जिसकी पुनर्स्थापना जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने करवाई थी.
इसका जीर्णोद्धार रामानुज संप्रदाय के स्वामी वरदराजाचार्य के आदेश पर गढ़वाल नरेश ने करवाया.
जीर्णोद्धार में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने भी योगदान दिया.
बद्रीनाथ की महिमा का वर्णन स्कंद पुराण, केदारखंड, श्रीमद्भागवत आदि में अनेक जगहों पर आता है.
बद्रीनाथ की महिमा का वर्णन स्कंद पुराण, केदारखंड, श्रीमद्भागवत आदि में अनेक जगहों पर आता है.
जगद्गुरु शंकराचार्य ने ही मंदिर की प्रशासन व्यवस्था बनाई. उन्होंने ज्योतिर्मठ के मठाधीश को बद्रीनाथ मंदिर की पूजा व्यवस्था देखने का दायित्व सौंपा.
1776 से पूजा व्यवस्था नंबूदरीपाद ब्राह्मणों ने संभाली. बाद में अंग्रेज सरकार ने गढ़वाल के जिलाधीश को अध्यक्ष नामित कर मंदिर प्रबंधन के लिए एक समिति बना दी.
1939 में तत्कालीन संयुक्त प्रांत में एक नया कानून बद्रीनाथ मंदिर अधिनियम बना.
1948 में केदारनाथ मंदिर को भी इस अधिनियम में शामिल कर लिया गया. इसे बद्री-केदार मंदिर अधिनियम के रूप में जाना जाता है.
जहां तक बद्रीनाथ और केदारनाथ की बात है, इसके रास्ते में पहाड़, नदी, झरने, हरियाली व सुहावना मौसम, सभी यहां एक साथ उपलब्ध हैं.
केदारनाथजी की महिमा: उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित तीर्थ केदारनाथजी के कपाट खुलने का इंतजार हर किसी को रहता है.
मान्यता के अनुसार ही बद्रीनाथ दर्शन से पूर्व केदारनाथ के दर्शन किए जाते हैं.
केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है. यह बड़ी शिला के रूप में विद्यमान है.
गर्भगृह के बाघ जगमोहन में पार्वती की मूर्ति है. मुख्य द्वार पर ही गणेश और नन्दीजी की मूर्ति विराजमान है.
केदारनाथ समुद्र तल से 11 हजार सात सौ पचास फुट ऊंचाई पर स्थित है.
केदारनाथ धाम के कपाट खुलते ही बम भोले के जयकारों से पूरा मंदिर परिसर गूंज उठता है.
खास बात यह है कि शीतकाल में बर्फ गिरने के कारण केदारनाथ की पूजा और दर्शन उनके शीतकालीन प्रवास ओंकारेश्वर मंदिर (ऊखीमठ) में होते हैं, जबकि गर्मियों में केदारनाथ धाम मंदिर में.
मान्यताओं के दर्पण में केदारनाथ: लिंग पुराण के मतानुसार जो मनुष्य संन्यास लेकर केदारकुण्ड में निवास करता है, वह शिव समान हो जाता है.
कर्मपुराण में कहा गया है कि महालय तीर्थ में स्नान करने और केदारनाथ का तीर्थ करने से समस्त पापों का नाश हो जाता है.
पह्म पुराण में कहा गया है कि जब कुंभ राशि पर सूर्य तथा गुरु ग्रह स्थित हो, तब केदारनाथ का दर्शन तथा स्पर्श मोक्ष प्रदान करता है.
हमारे सनातन धर्म में एक विशेष महापुराण है स्कंद पुराण, इसमें भी केदारनाथ का महात्म्य बताया गया है.
रास्ते में छोटे-बड़े मंदिर, धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व के कई अन्य दर्शनीय स्थान मिलते हैं.