दोस्तों के साथ घूमने-फिरने का छोटा सा प्लान बनाना हो या हनीमून का, सबसे पहले नैनीताल का नाम ही जेहन में आता है.
नैनीताल के झील का पानी बेहद साफ है और इसमें तीनों ओर के पहाड़ों और पेड़ों की परछाई साफ दिखती है.
कहा जाता है कि एक समय में नैनीताल जिले में 60 से ज्यादा झीलें हुआ करती थीं. यहां चारों ओर खूबसूरती बिखरी है. सैर-सपाटे के लिए दर्जनों जगहें हैं, जहां जाकर पर्यटक मंत्र-मुग्ध हो जाते हैं.
2528 मीटर की ऊंचाई पर दूसरी सबसे ऊंची पर्वत चोटी है और इसे किलवरी कहते हैं. यह पिकनिक मनाने के लिए शानदार जगह है. किलवरी से ऐसी दिखती है नैनीताल की खूबसूरती.
गर्मियों में नैनीताल की खूबसूरती और ठंडा मौसम सैलानियों को अपनी ओर जैसे
खींच लाते हैं. वहीं सर्दियों में बर्फबारी और विंटर स्पोर्ट्स के दीवानों
के लिए नैनीताल स्वर्ग बन जाता है.
नैनीताल के पास ही खुर्पाताल भी है. यहां की प्राकृतिक खूबसूरती किसी को भी मोहित कर देती है. सुंदर झील और आसपास मकान और होटल इस खूबसूरती को कई गुना बढ़ा देते हैं.
नीम करोली बाबा का यह आश्रम आधुनिक जमाने का धाम है. यहां पर मुख्य तौर पर बजरंगबली की पूजा होती है. इस जगह का नाम कैची यहां सड़क पर दो बड़े जबरदस्त हेयरपिन बैंड (मोड़) के नाम पर पड़ा है. कैची नैनीताल से सिर्फ 17 किमी दूर भुवाली से आगे अल्मोड़ा रोड पर है.
नैनीताल में रेल और हवाई सेवाएं नहीं हैं, लेकिन यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन यहां से सिर्फ 34 किमी दूर काठगोदाम में है. काठगोदाम से नैनीताल के लिए राज्य परिवहन की गाड़ियां दिन में हर समय उपलब्ध रहती हैं. काठगोदाम शहर का एक दृश्य.
रामनगर से करीब 12 किमी दूर कॉर्बेट जंगल में कोसी नदी के बीच उभरे एक पहाड़ की चोटी पर माता गर्जिया (गिरिजा) का मंदिर है. गर्जिया मंदिर में वैसे तो सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर यहां मेला लगता है तो खूब धूम मचती है.
स्कंद पुराण के मानस खंड में इसे 'त्रि-ऋषि-सरोवर' कहा गया है. ये तीन ऋषि अत्री, पुलस्थ्य और पुलाहा ऋषि थे. इस इलाके में जब उन्हें कहीं पानी नहीं मिला तो उन्होंने यहां एक बड़ा सा गड्ढा किया और उसमें मनसरोवर का पवित्र जल भर दिया. उसी सरोवर को आज नैनी ताल के रूप में जाना जाता है.
नैनीताल को 64 शक्ति पीठों में से एक माना जाता है. माना जाता है कि जब भगवान शिव माता सती के शव को लेकर पूरे ब्रह्मांड में भटक रहे थे तो यहां माता की आखें (नैन) गिर गए थे. माता की आखें यहां गिरी थी इसलिए इस जगह का नाम नैनी ताल पड़ा. माता को यहां नैयना देवी के रूप में पूजा जाता है.
नैनीताल की खोज सन 1841 में एक अंग्रेज चीनी (शुगर) व्यापारी ने की. बाद
में अंग्रेजों ने इसे अपनी आरामगाह और स्वास्थ्य लाभ लेने की जगह के रूप
में विकसित किया.
नैनीताल का मल्ला भाग (ऊपरी हिस्सा) मल्लीताल और नीचला भाग तल्लीताल कहलाता है. मल्लीताल में एक फ्लैट खुला मैदान है और यहां पर खेल तमाशे होते रहते हैं.
आसमान में छाए बादलों को भी ताल के पानी में साफ देखा जा सकता है. रात में नैनीताल के पहाड़ों पर बने मकानों की रोशनी ताल को भी ऐसे रोशन कर देती है, जैसे ताल के अंदर हजारों बल्ब जल रहे हों.
नैनीताल तीन ओर से घने पेड़ों की छाया में ऊंचे-ऊंचे पर्वतों के बीच समुद्रतल से 1938 मीटर की ऊंचाई पर बसा है. यहां के ताल की लंबाई करीब 1358 मीटर और चौड़ाई करीब 458 मीटर है. ताल की गहराई 15 से 156 मीटर तक आंकी गई है, हालांकि इसकी सही-सही जानकारी अब तक किसी को नहीं है.
भुवाली से घोड़ाखाल करीब 3 किमी दूर है. घोड़ाखाल में ग्वेल (गोलू) देवता का विशाल मंदिर है. यहां भक्त आकर उनसे अपनी मनोकामना पूरी करने की अर्जी लगाते हैं. इसके अलावा घोड़ाखाल को सैनिक स्कूल के लिए भी जाना जाता है. घोड़ाखाल का सैनिक स्कूल देश के सबसे प्रतिष्ठित स्कूलों में से एक है.
बजरंग बली का आशीर्वाद लेने और नीम करोली बाबा के बारे में जानने के लिए पर्यटक यहां आते हैं. इसके अलावा यहां मन की शांति भी खूब मिलती है. पास से गुजरती जलधारा इस जगह पर एक अलग ही आनंद और सौन्दर्य देती है.
नंदाअष्टमी मेले का आयोजन वैसे तो पूरे कुमाऊं क्षेत्र में होता है, लेकिन नैनीताल में नंदादेवी मंदिर और भुवाली का मेला खास है. सितंबर-अक्टूबर में शुक्ल पक्ष अष्टमी के मौके पर नंदाअष्टमी मनाई जाती है. पर्यटक खासतौर पर नंदाअष्टमी मेला देखने के लिए नैनीताल आते हैं.
मल्लीताल से स्नोव्यू तक रोपवे का आनंद लिया जा सकता है. यहां सैलानी दो ट्रॉली से आसमानी सैर करके नैनीताल के खूबसूरत नजारों का लुत्फ लेते हैं. ट्रॉली एक तरफ का सफर तय करने में करीब 152 सेकेंड का समय लेती है. एक ट्रॉली में 10 सवारियों के अलावा 1 ऑपरेटर के खड़े होने की जगह होती है.
इस फ्लैट पर शाम होते ही सैलानी इकट्ठे हो जाते है. भोटिया मार्केट में गर्म कपड़े, कैंडल और बेहतरीन गिफ्ट आइटम मिलते हैं. यहीं पर नैयना देवी मंदिर भी है.
हर साल नैनीताल में शरदोत्सव या हेमंतोत्सव का आयोजन होता है. यहां मुंबई से कलाकारों, गायकों आदि को बुलाया जाता है. इसके अलावा कुमाऊं के सांस्कृतिक आयोजन भी इस उत्सव के दौरान कौतूहल पैदा करते हैं.
यह इंस्टीट्यूट मनोरा पीक पर हनुमान गढ़ी से करीब 1 किमी की दूरी पर बसाया गया है. सड़क मार्ग से यह नैनीताल से करीब 9 किमी दूर है. यह केंद्र खगोलीय अध्यन और कृत्रिम उपग्रहों पर निगरानी रखने के लिए बनाया गया है. 1955 में इस वेधशाला को नैनीताल में स्थापित किया गया और मनोरा पीक की मौजूदा जगह पर इसे 1961 में स्थापित किया गया.
भीमताल की झील नैनीताल की झील से भी बड़ी है. यह समुद्रतल से 1380 मीटर की ऊंचाई पर है. नैनीताल से मात्र 22 किमी दूर है भीमताल. भीमताल में सैलानी बोटिंग का भरपूर लुत्फ उठाते हैं. भीमताल की झील के बीच एक टापू है, जहां बेहद सुंदर एक्वेरियम है और यह किनारे से 91 मीटर दूर है. इसके अलावा यहां 17वीं सदी का भीमेश्वर मंदिर है और 40 फिट ऊंचा बांध भी देखने लायक है.
नैनीताल की भोटिया मार्केट गर्म कपड़ों और रंग बिरंगी मोमबत्तियों के लिए मशहूर है. यहां से पर्यटक डिजाइनर मोमबत्तियां ले जाना नहीं भूलते.
नैनीताल की सात चोटियों में 2611 मीटर ऊंची चाइना पीक सबसे ऊंची चोटी है. चाइना पीक की दूरी नैनीताल से लगभग 6 किलोमीटर है. इस चोटी से हिमालय की ऊंची-ऊंची चोटियों के दर्शन होते हैं. यहां से नैनीताल झील और शहर के भी भव्य दर्शन होते हैं. यहां एक रेस्तरां भी है.
नैनीताल से करीब 51 किमी दूर बसा मुक्तेश्वर समुद्र तल से 2286 मीटर की ऊंचाई पर है. मुक्तेश्वर में खूबसूरत फलों के बगीचे हैं. 1893 में अंग्रेजों ने मुक्तेश्वर में अनुसंधान और शिक्षा संस्थान (IVRI) की स्थापना की थी.
नैनीताल से करीब 65 किमी की दूरी पर बसा रानीखेत शहर अल्मोड़ा जिले में है और यह भारतीय सेना की कुमाऊं रेजीमेंट का हेडक्वार्टर भी है. यह शहर अपनी स्वास्थ्यवर्धक जलवायु, सुहावनी व शुद्ध हवा और दिलकश नजारों के लिए जाना जाता है. चीड़ और बांज के पेड़ों के बीच बसे रानीखेत में कुमाऊं रेजीमेंट का म्यूजियम और खूबसूरत गोल्फ कोर्स भी दर्शनीय स्थान हैं.
नैनीताल से केवल ढाई किलोमीटर दूर और 2270 मीटर की ऊंचाई पर हवाई पर्वत चोटी स्नोव्यू है. मल्लीताल से रोपवे पर सवार होकर यहां आसानी से जाया जा सकता है. स्नोव्यू से लगी हुई दूसरी चोटी हनी-बनी है, जिसकी ऊंचाई 2179 मीटर है.
एक अंग्रेज ने अपनी पत्नी डेरोथी की याद में इस पहाड़ की चोटी पर उसकी कब्र बनाई और उसका नाम डेरोथीसीट रख दिया. तभी से यह डेरोथीसीट के नाम से जाना जाता है. नैनीताल से चार किलोमीटर की दूरी पर 2290 मीटर की ऊंचाई पर यह चोटी है.