दार्जीलिंग के सुंदर और मनोरम प्राकृतिक वातावरण का ही जादू है, जिससे प्रभावित होकर पर्यटक यहां खुद-ब-खुद खिंचे चले आते हैं. पूर्वी भारत के पश्चिम बंगाल में स्थित यह स्थल पयटकों के लिए जन्नत नहीं, तो जन्नत से कुछ कम भी नहीं है.
दार्जीलिंग पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. पहाडों की चोटी पर विराजमान दार्जीलिंग का एहसास सैलानियों को एक ठंडा और सुखद अनुभूति देने के लिए काफी है.
दार्जीलिंग नगर दार्जीलिंग जिले का मुख्यालय है. यह शिवालिक हिल्स में लोवर हिमालय में अवस्थित है. यहां की औसत ऊंचाई 2,134 मीटर (6,982 फुट) है.
'दार्जीलिंग' शब्द तिब्बती भाषा के दो शब्द 'दोर्जे' और 'लिंग' से मिलकर बना है. 'दोर्जे' का अर्थ होता है 'ओला' या 'उपल' और 'लिंग' का अर्थ होता है 'स्थान'. इस तरह दार्जीलिंग का शाब्दिक अर्थ हुआ 'उपलवृष्टि वाली जगह', जो इसके ठंडे वातावरण का चित्र पेश करता है. अंग्रेजी शासनकाल में इसे हिल स्टेशन के तौर पर विकसित किया गया था.
दार्जीलिंग ने केवल भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के मानचित्र पर अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज कराई है. दार्जीलिंग पहाड़ी ढलानों पर उगाई जाने वाली चाय के लिए प्रसिद्ध है.
कैसे पहुंचें दार्जीलिंग
हवाई मार्ग: दार्जीलिंग देश के अनके स्थानों से हवाई मार्ग से जुड़ा हुआ है. बागदोगरा (सिलीगुड़ी) यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है, जो कि यहां से 90 किलोमीटर दूर है. यहां से दार्जिलिंग करीब 2 घण्टे का सफर करके पहुंचा जा सकता है.
यहां से कोलकाता और दिल्ली के लिए प्रतिदिन उड़ानें हैं. इसके अलावा गुवाहाटी तथा पटना से भी यहां के लिए उड़ानें संचालित की जाती हैं.
रेलमार्ग: दार्जीलिंग का सबसे नजदीकी रेल जोन है जलपाइगुड़ी है. कोलकाता से दार्जीलिंग मेल तथा कामरूप एक्सप्रेस सीधे जलपाइगुड़ी जाती है.
दिल्ली से गुवाहाटी राजधानी एक्सप्रेस यहां तक आती है. इसके अलावा ट्वाय ट्रेन से जलपाइगुड़ी से दार्जिलिंग 8-9 घंटे का सफर करके जाया जा सकता है.
सड़क मार्ग: दार्जीलिंग सिलीगुड़ी से सड़क मार्ग से भी बेहतर तरीके से जुड़ा हुआ है. दार्जीलिंग सड़क मार्ग से सिलीगुड़ी से 2 घण्टे की दूरी पर स्थित है.
कोलकाता से सिलीगुड़ी के लिए अनेक सरकारी और निजी बसें चलती है. दार्जीलिंग घूमने का सबसे बेहतर समय है गर्मी. यहां लोगों को गर्मी से राहत तो मिलती ही है, लोग इस मौसम में चाय की पत्तियों को भी टूटते हुए देख सकते हैं.
टाइगर हिल पर चढ़ाई करने का आनंद ही कुछ और है. टाइगर हिल के समीप ही है कंचनजंघा चोटी. पहले इसे ही विश्व की सबसे ऊंची चोटी माना जाता था, लेकिन 1856 ई. में सर्वेक्षण के बाद यह जानकारी मिल सकी कि संसार की सबसे ऊंची चोटी कंचनजंघा नहीं, बल्कि नेपाल स्थित माउंट एवरेस्ट है.
टाइगर हिल से कंजनजंघा तथा माउंट एवरेस्ट, इन दोनों ही चाटियों को देख जा सकता है. इन दोनों चोटियों की ऊंचाई में मात्र 827 फीट का अंतर है. वैसे कंचनजंघा विश्व की तीसरी सबसे ऊंची चोटी है.
कंचनजंघा को सबसे रोमांटिक पर्वत माना जाता है. कंजनजंघा की सुंदरता के कारण ही यह पर्यटकों के मन में रच-बस गया है. इस चोटी की सुंदरता ने कवियों और फिल्मकारों का भी ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है.
हिमालयन जैविक उद्यान माउंटेंनिग संस्थान के पास ही स्थित है, जो बर्फीले प्रदेश में रहने वाले तेंदुओं और लाल पांडा के प्रजनन कार्यक्रम के लिए प्रसिद्ध है.
दार्जीलिंग से गंगटोक जाते हुए घाटियों के बीच बहते तिस्ता नदी की खूबसूरती को निहारा जा सकता है.
मौज-मस्ती और सुकून की खोज में आए सैलानी तिस्ता नदी के दृश्य को अपने कैमरे में कैद किए बिना नहीं रह पाते.
तिस्ता नदी समीपवर्ती लोगों के लिए हर प्रकार से उपयोगी है. यह नदी अपनी धार के साथ-साथ पर्यटन व्यवसाय को भी भरपूर गति देती है.
ट्वॉय ट्रेन का निर्माण 19वीं शताब्दी के उतरार्द्ध में हुआ था. यह दार्जीलिंग हिमालयन रेलमार्ग और इंजीनियरिंग का एक बेजोड़ नमूना है. यह रेलमार्ग 70 किलोमीटर लंबा है. पूरा रेलखण्ड समुद्र तल से 7546 फीट ऊंचाई पर स्थित है.
ट्वॉय ट्रेन से चारों ओर के प्राकृतिक वातावरण का नजारा लेना मुमकिन है, लेकिन पिछले करीब 3 साल से ट्वॉय ट्रेन की सेवा बंद है. हिमालयन रेलवे को यूनेस्को ने विश्व सम्पदा स्थल के रूप में दर्ज किया है.
समझा जाता है कि दार्जीलिंग में चाय खेती 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध से शुरू हुई. जानकारों का मानना है कि डॉ. कैम्पबेल दार्जीलिंग में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा नियुक्त पहले निरीक्षक थे. डॉ. कैम्पबेल ने ही पहली बार लगभग 1830 या 40 के दशक में अपने बाग में
चाय के बीज रोपे थे.
इनके अलावा ईसाई धर्मप्रचारक बारेनस बंधुओं ने 1880 के दशक में औसत आकार के चाय के पौधों को रोपा था.
दार्जीलिंग में चाय की खेती के लिए उपयुक्त वातावरण मौजूद है. स्थानीय उपजाऊ मिट्टी और हिमालयी हवा के कारण यहां चाय की उन्नत किस्में पाई जाती हैं.
वर्तमान में दार्जीलिंग में तथा इसके आसपास छोटे-बड़े लगभग 100 चाय उद्यान हैं. इन चाय उद्यानों में लगभग 50 हजार लोगों को राजगार मिला हुआ है.
दार्जीलिंग एक जमाने में पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में मसालों के लिए प्रसिद्ध था. अब इस शहर की प्रसिद्धि चाय बागानों से है.
दार्जीलिंग में क्या खरीदें
दार्जीलिंग में खरीदारी के लिए चाय से अच्छी वस्तु शायद ही कुछ हो सकती है. खास बात यह है कि उत्तम किस्म की चाय का आमतौर पर निर्यात कर दिया जाता है. अगर उत्तम किस्म की चाय मिलती भी है, तो इसकी कीमत 700 से लेकर 2000 रु. प्रति किलो तक होती है.
वाजिब दाम पर अच्छी किस्म की चाय खरीदने के लिए लोग नाथमुलाज मॉल जा सकते हैं.
दार्जीलिंग में हस्तशिल्प से जुड़े बेहतर सामान भी मिल जाते हैं.
निप्पोजन मायोजी बौद्ध मंदिर से पूरे दार्जीलिंग और कंचनजंघा श्रेणी का मनोरम दृश्य नजर आता है.
दार्जीलिंग में सूर्योदय और सूर्यास्त का दृश्य पर्यटकों को खूब भाता है. सैलानी इसे अपलक निहारने का लोभ नहीं नहीं छोड़ पाते हैं.
भारत में कुल 6 शांति स्तूप हैं, जिनमें दार्जीलिंग स्थित निप्पोजन मायोजी बौद्ध मंदिर एक है. इस मंदिर का निर्माण कार्य 1972 ई. में शुरू हुआ था. यह मंदिर 1 नवंबर, 1992 ई. को आम लोगों के लिए खोला गया.
हस्तशिल्प की वस्तुओं की ज्यादातर दुकानें चौरास्ता या नेहरू रोड के निकट स्थित हैं. यहां अच्छी किस्म की पेंटिग्स भी मिल जाती हैं.
दार्जिलिंग से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है शाक्या मठ, जो शाक्य सम्प्रदाय का बहुत मठ है. इसकी स्थापना 1915 ई. में हुई थी.
गोरखा जनमुक्ति के विमल गुरुंग ने दार्जीलिंग को बंगाल से अलगकर गोरखालैंड में स्थापित करने का आदांलेन चलाया. इस आंदोलन का ही असर है कि कुछ साल पहले तक पर्यटकों से खचाखच भरे रहने वाले दार्जीलिंग में पर्यटकों की आवाजाही कम हो गई है.