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बाघों के लिए प्रसिद्ध है मध्य प्रदेश का बांधवगढ़ अभयारण्य

मध्यप्रदेश के उमड़िया जिले में स्थित बांधवगढ़ अभयारण्य बाघों के लिए प्रसिद्ध है. बंगाल टाइगरों की जनसंख्या घनत्व के मामले में बांधवगढ़ का स्थान दुनिया में पहला है.

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बांधवगढ़ अभयारण्य में आराम करता एक बाघ
बांधवगढ़ अभयारण्य में आराम करता एक बाघ

बांधवगढ़ अभयारण्य मध्य प्रदेश का सबसे प्रसिद्ध राष्ट्रीय उद्यानों में से एक है. इसे 1968 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था. तब 105 वर्ग किलोमीटर फैले इस उद्यान का दायरा अब 437 वर्ग किलोमीटर का हो चुका है.

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मध्यप्रदेश के उमड़िया जिले में स्थित बांधवगढ़ अभयारण्य बाघों के लिए प्रसिद्ध है. बंगाल टाइगरों की जनसंख्या घनत्व के मामले में बांधवगढ़ का स्थान दुनिया में पहला है. इसके अलावा यहां बड़ी संख्या में चीता और हिरण भी पाये जाते हैं. अभयारण्य के बीचोंबीच बांधवगढ़ पहाड़ी है. जो इस अभयारण्य को वस्तुतः चार भाग में विभाजित करते हैं. बांधवगढ़ में बांस के पेड़ बहुतायत में पाये जाते हैं. चरणगंगा यहां की प्रमुख नदी है जो अभयारण्य से होकर गुजरती है.

इस क्षेत्र में पहला बाघ महाराज मार्तंड सिंह ने 1951 में पकड़ा था. मोहन नाम के इस सफेद बाघ को अब महाराजा ऑफ रीवा के महल में सजाया गया है. राष्ट्रीय उद्यान बनाए जाने से पहले बांधवगढ़ के आसपास के जंगल को महाराजाओं और उनके मेहमानों के शिकारगाह के रूप में कायम रखा गया था. यहीं की एक बाघिन सीता के नाम सबसे ज्यादा बार फोटो खींची जाने वाली बाधिन का रिकार्ड भी है. जबकि चार्जर नाम का एक नर को टूरिस्ट गाड़ियों को समीप जाकर हरकतें करने की वजह से 1990 के दौर में बहुत प्रसिद्धि मिली. सीता को शिकारियों ने मार डाला जबकि चार्जर बूढ़ा होकर 2000 में मरा. उसके शव को जहां दफनाया गया उस जगह को आज चार्जर प्वाइंट के नाम से जाना जाता है.

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माना जाता है कि आज इस अभयारण्य में जितने भी बाघ मौजूद हैं वो चार्जर और सीता के ही वंशज हैं. इनके ही बच्चे मोहिनी, लंगरु और बिट्टू भी टूरिस्ट गाड़ियों के पास जाने के शौकीन थे. बाद में इन्हीं में से एक गाड़ी से मिले जख्म की वजह से मोहिनी की मौत हो गई. चार्जर के बाद बिट्टू का इस अभयारण्य पर राज था और वो इस अभयारण्य ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया का सबसे ताकतवार बाघ बना. बिट्टू की मौत 2011 में हो गई. आज उसी का बेटा बामेड़ा इस अभयारण्य का सबसे ताकतवर नर है.

बांधवगढ़ अभयारण्य खजुराहो से लगभग 237 किलोमीटर और जबलपुर से 195 किलोमीटर की दूरी पर है. पहले बांधवगढ़ के चारों ओर फैले जंगल का रखरखाव रीवा के महाराजा के शिकारगाह के रूप में किया जाता था.

यहां बाघ के अलावा कई स्तनधारी जीव भी पाये जाते हैं. चीतल, सांभर, हिरण, जंगली कुत्ते, तेंदुएं, भेड़िए, सियार, लोथ बियर, जंगली सुअर, लंगूर और बंदर यहां बड़ी ही आसानी से देखे जा सकते हैं. सरीसृपों में किंग कोबरा, क्रेट, वाइपर जैसे सांपों की यहां भरमार है. यहां पक्षियों की लगभग 250 प्रजातियां पायी जाती हैं. इनमें तोता, मोर, बगुला, कौआ, हॉर्नबिल, बटेर, उल्लू आदि शामिल हैं.

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आप यहां जब भी जाएंगे आपको स्तनधारी जीव, सरीसृप और विभिन्न पक्षी बड़ी ही आसानी से दिख जाएंगे क्योंकि यहां पानी और आहार प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं.

कब जाएं बांधवगढ़?
अगर आप बांधवगढ़ में बाघ देखने जा रहे हैं तो अक्टूबर से जून के मध्य जाएं. अगर आप स्लोथ बियर देखने जा रहे हैं तो मार्च-मई का महीना उपयुक्त है क्योंकि इस दौरान ही ये महुआ नाम के उस फूल को खाने के लिए बाहर निकलते हैं जिसका यहां के निवासी देसी शराब बनाने में उपयोग करते हैं. पक्षियों को देखने के शौकीन हैं तो नवंबर से मार्च का महीना सबसे सही है.

कैसे पहुंचे?
हवाई मार्ग के जरिए यहां पहुचने के लिए पहले खजुराहो (दूरीः 237 किमी) या जबलपुर (दूरीः 195 किमी) पहुंचे.

रेल मार्ग के जरिए यहां पहुंचने के लिए जबलपुर (195 किलोमीटर), कटनी (100 किलोमीटर), सतना (120 किलोमीटर) और साउथ इस्टर्न रेल रूट पर उमरिया (33 किमी) समीप के रेलवे स्टेशन हैं.

जबलपुर, कटनी और उमरिया से आप टैक्सी के जरिए बांधवगढ़ पहुंच सकते हैं.

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