कान्हा जीव-जंतुओं के संरक्षण के लिए जाना जाता है. जीव-जंतुओं का यह पार्क 1945 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है. रूडयार्ड किपलिंग की प्रसिद्ध किताब और धारावाहिक जंगल बुक की भी प्रेरणा इसी स्थान से ली गई थी. कान्हा एशिया के सबसे सुरम्य और खूबसूरत वन्यजीव रिजर्वों में शुमार है.
टाइगरों का यह देश परभक्षी और शिकार दोनों के लिए आदर्श जगह है. यहां की सबसे बड़ी विशेषता खुले घास के मैदान हैं जहां काला हिरन, बारहसिंहा, सांभर और चीतल को एक साथ देखा जा सकता है. बांस और टीक के वृक्ष इसकी सुन्दरता को और बढ़ा देते हैं. पार्क 1 अक्टूबर से 30 जून तक खुला रहता है.
मॉनसून के दौरान यह पार्क बंद रहता है. यहां का अधिकतम तापमान लगभग 39 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम 2 डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है. सर्दियों में यह इलाका बेहद ठंडा रहता है. सर्दियों में गर्म और ऊनी कपड़ों की आवश्यकता होगी. नवंबर से मार्च की अवधि सबसे सुविधाजनक मानी जाती है. दिसंबर और जनवरी में बारहसिंहा को नजदीक से देखा जा सकता है.
कान्हा में ऐसे अनेक जीव-जंतु मिल जाएंगे जो दुर्लभ हैं. भेड़िया, चिन्कारा, भारतीय पेंगोलिन, समतल मैदानों में रहने वाला भारतीय ऊदबिलाव और भारत में पाई जाने वाली लघु बिल्ली जैसी दुर्लभ पशुओं की प्रजातियों को यहां देखा जा सकता है.
कान्हा राष्ट्रीय पार्क: यह राष्ट्रीय पार्क 1945 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. यह क्षेत्र घोड़े के पैरों के आकार का है और यह हरित क्षेत्र सतपुड़ा की पहाड़ियों से घिरा हुआ है. इन पहाड़ियों की ऊंचाई 450 से 900 मीटर तक है. इसके अंतर्गत बंजर और हेलन की घाटियां आती हैं जिन्हें पहले मध्य भारत का प्रिन्सेस क्षेत्र कहा जाता था. कान्हा को 1933 में अभ्यारण्य के तौर पर स्थापित कर दिया गया और इसे 1955 में राष्ट्रीय पार्क घोषित कर दिया गया. यहां अनेक पशु पक्षियों को संरक्षित किया गया है. लगभग विलुप्त हो चुकी बारहसिंहा की प्रजातियां यहां के वातावरण में देखने को मिल जाती है.
मुख्य आकर्षण-
कान्हा केसली पूरा घूमने के लिए पहले से जीप या हाथी की बुकिंग की जाती है. जीप के साथ गाइड भी जाते हैं जो कि जंगल के रास्तों से परिचित होते हैं. वहीं बाघ को करीब से देखने के लिए हाथी की सवारी की सुविधा है.
जीप सफारी: जीप सफारी सुबह और दोपहर को दी जाती है. जीप मध्य प्रदेश पर्यटन विकास कार्यालय से किराए पर ली जा सकती है. कैम्प में रुकने वालों को अपना वाहन और गाइड ले जाने की अनुमति है. सफारी का समय सुबह 6 से दोपहर 12 बजे और 3 बजे से 5:30 तक निर्धारित किया गया है.
हाथी की सवारी: बाघों को नजदीक से देखने के लिए पर्यटकों को हाथी की सवारी की सुविधा दी गई है. इसके लिए सीट की बुकिंग करनी होती है. इनकी सेवाएं सुबह के समय प्राप्त की जा सकती हैं. इसके लिए भारतीयों से 100 रुपये और विदेशियों से 600 रुपये का शुल्क लिया जाता है.
कान्हा संग्रहालय: इस संग्रहालय में कान्हा का प्राकृतिक इतिहास संचित है. यह संग्रहालय यहां के शानदार टाइगर रिजर्व का दृश्य प्रस्तुत करता है. इसके अलावा यह संग्रहालय कान्हा की रूपरेखा, क्षेत्र का वर्णन और यहां के वन्यजीवों में पाई जाने वाली विविधताओं के विषय में जानकारी प्रदान करता है.
बामनी दादर: यह पार्क का सबसे खूबसूरत स्थान है. यहां का मनमोहक सूर्यास्त पर्यटकों को बरबस अपनी ओर खींच लेता है. घने और चारों तरफ फैले कान्हा के जंगल का विहंगम नजारा यहां से देखा जा सकता है. इस स्थान के चारों ओर हिरण, गौर, सांभर और चौसिंहा को देखा जा सकता है.
कैसे पहुंचा जाए यहां...
वायुमार्ग- कान्हा से 266 किलोमीटर दूर स्थित नागपुर नजदीकी एयरपोर्ट है. यह इंडियन एयरलाइन्स की नियमित उड़ानों से जुड़ा हुआ है. यहां से बस या टैक्सी के माध्यम से कान्हा पहुंचा जा सकता है.
रेलमार्ग- जबलपुर रेलवे स्टेशन कान्हा पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी स्टेशन है. जबलपुर कान्हा से 175 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यहां से राज्य परिवहन निगम की बसों या टैक्सी से कान्हा पहुंचा जा सकता है.
सड़क मार्ग- कान्हा राष्ट्रीय पार्क जबलपुर, खजुराहो, नागपुर, मुक्की और रायपुर से सड़क के माध्यम से सीधा जुड़ा हुआ है. दिल्ली से राष्ट्रीय राजमार्ग 2 से आगरा, राष्ट्रीय राजमार्ग 3 से बियवरा, राष्ट्रीय राजमार्ग 12 से भोपाल के रास्ते जबलपुर पहुंचा जा सकता है. राष्ट्रीय राजमार्ग 12A से मांडला जिला रोड़ से कान्हा पहुंचा जा सकता है.