दुनियाभर में भारत को अपनी संस्कृति, बदलते मौसम और प्रकृति के अद्भुत नजारों के लिए जाना जाता है. यहां अलग-अलग ऋतुओं के स्वागत में तीज-त्योहार मनाए जाते हैं. हमारे यहां जब सावन का महीना आता है तो बारिश में सराबोर यहां के लोग अपनी खुशी को पर्व के रूप में जाहिर करते हैं.
पानी से जुड़े सबसे ज्यादा फेस्टिवल मानसून में आयोजित होते हैं. केरल की फेमस बोट रेस भी बारिश के मौसम में ही होती हैं. इस रेस को यहां 'वल्लमकली' कहते हैं जिसे देखने दुनियाभर से टूरिस्ट जुटते हैं. आइए जानें केरल के बैकवॉटर में होने वाले इस जश्न के बारे में...
नेहरू ट्रॉफी बोट रेस:
केरल में अल्लपुझा के बैकवॉटर की पुन्नमड झील में होने वाली यह बोट रेस सबसे प्रसिद्ध है. ये रेस हर साल अगस्त के दूसरे शनिवार को होती है. इस आयोजन में चुंदन वेलोम (स्नेक बोट) की पारंपरिक दौड़ के अलावा पानी पर झांकियां भी होती हैं. इस कॉम्पिटीशन के नजारे वाकई अद्भुत होते हैं. इस साल यह रेस 13 अगस्त 2016 को होगी.
पय्यपड़ बोट रेस:
अलप्पुझा में ही पय्यपड़ नदी में एक अन्य बोट रेस होती है. केरल में नेहरू ट्रॉफी बोट रेस के बाद स्नेक बोट की सबसे बड़ी रेस यही है इस रेस की शुरुआत हरीपाद मंदिर और सुब्रह्मण्य स्वामी मंदिर में मूर्ति की स्थापना से हुई. कहते इस मूर्ति स्थापना के दौरान वहां ग्रामीणों को एक सपना आया, जिसके बाद वे कायमकुलम झील में एक चक्रवात तक पहुंचे, जहां उन्हें मूर्ति प्राप्त हुई. उसी समय से यहां बोट रेस की परंपरा चली आ रही है. इस साल यह रेस 16 सितंबर को रखी गई है.
अरण्मुला वल्लमकली:
केरल में यह बोट रेस अपनी प्राचीन परंपरा और भव्यता के लिए जानी जाती है. यह रेस कम और पारंपरिक रस्म ज्यादा है. अर्णामुला में पंबा नदी में होने वाला यह आयोजन दरअसल ओणम का हिस्सा है. इसके पीछे बताया जाता है कि एक बार एक ब्राह्मण ने अर्णामुला पार्थसारथी मंदिर में थिरुवोणम पर होने वाले पारंपरिक भोज के लिए अपनी सारी संपत्ति समर्पित करने की घोषणा की.
जिस नाव में भेंट जा रही थी उस पर कुछ लोगों ने हमला बोल दिया. आसपास के गांववालों को इसका पता चला तो उन्होंने बचाव में अपनी सर्प नौकाएं भेजीं. तभी से भागवान पार्थसारथी को सर्प नौकाओं की दौड़ के रूप में भेंट भेजने की रस्म शुरू हुई. इस साल यह समारोह 17 सितंबर को होगा.
कुमारकोम बोट रेस:
जिस दिन पय्यपड़ में बोट रेस होती है, उसी दिन प्रसिद्ध रिजॉर्ट कुमारकोम में भी श्री नारायण जयंती बोट रेस होती है. यह रेस केरल में होने वाली बाकी रेसों से अलग है. यह रेस महान समाज सुधारक श्री नारायण गुरु के गांव में आने की याद में आयोजित की जाती है. बताया जाता है कि नारायण गुरु 1903 में नाव में बैठकर अल्लपुझा से कुमारकोम आए थे. उनके साथ कई नावों में लोग थे. इसलिए हर साल श्री नारायण गुरु की जयंती पर उनकी याद में यह बोट रेस होती है.
अगर आप भी इस सावन में कहीं घूमने का प्लान कर कहें हैं तो एंजॉय करें केरल का यह बैकवॉटर कल्चर...