अगर मिथकों पर यकीन करें तो वास्तव में मध्यप्रदेश के महेश्वर में ही था भगवान शिव का वास. रामायण और महाभारत में महिस्मती के रूप में इस जगह का उल्लेख मिलता है. खरगौन में नर्मदा नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित महेश्वर को पुराने दिनों में अवंति की राजधानी कहा जाता था. मान्यता है कि कि महाकाव्यों में वर्णित राजा सहस्त्रार्जुन और रावण के बीच प्रसिद्ध युद्ध महेश्वर में ही हुआ था, जिसमें रावण की हार हुई थी.
विजयी राजा सहस्त्रार्जुन ने रावण के दसों सिरों पर बत्ती जलाई और एक बत्ती उसके हाथ में प्रकाशित की थी. तब से यहां के सहस्त्रार्जुन मंदिर में रोज 11 बत्तियां जलाकर राजा सहस्त्रार्जुन की जीत को याद किया जाता है.
महान इतिहास के बावजूद, महेश्वर के बारे में लंबे समय तक किसी कोई कोई जानकारी नहीं थी. मराठा रानी अहिल्याबाई होल्कर ने इस शहर को अपनी राजधानी बनाकर इसके पुराने वैभव को लौटाया. आज यह सौ से ज्यादा मंदिरों, ऐतिहासिक इमारतों और किलों का शहर है. यहां अहिल्या किला, बानेश्वर मंदिर, अहिल्या स्मारक और रॉयल पैलेस कॉम्प्लेक्स देखने लायक जगह है.
यहां की परंपरागत विशेषता 15 नवंबर से 15 दिसंबर के बीच नर्मदा जयंती के बीच सामने आती है जब महेश्वर 1,000 मीटर लंबी सूती साड़ी नर्मदा नदी को अर्पित करता है.
महेश्वर कैसे पहुंचें
हवाई मार्गः करीबी हवाई अड्डा इंदौर (91 किमी)
रेल मार्गः करीबी रेलवे स्टेशन बड़वाह (39 किमी), खंडवा (110 किमी) और इंदौर (91 किमी).
सड़क मार्गः बड़वाह, इंदौर, खंडवा, धार और धामनोद से नियमित तौर पर बस सेवा.