पीतलखोड़ा में अजंता के समय की गुफाएं हैं. सह्याद्रि पहाड़ी के सतमाला में पीतलखोड़ा की गुफाएं हैं. यहां 13 गुफाएं हैं जो कि एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित हैं. यहां से घाटी के मनोहर नजारा देखने को मिलता है.
यहां कई गुफाओं में नक्काशी और चित्रकला दिखाई गई है जो कि ईसा पूर्व पहली सदी से ईस्वी के पांचवीं सदी तक की हैं. ये सभी अजंता के बाद ही खोजी गई. इनके बारे में सबसे पहले 1853 में लिखा गया और इसमें गुफा तीन और गुफा चार के बारे में उल्लेख किया गया. कई सारी गुफाओं की चित्रकला खराब हो चुकी हैं और कुछ चित्रकारी को लोगों ने तोड़ दिया है.
अधिकतर गुफाएं और पेंटिंग्स या तो मौसम खराब हो गई हैं या फिर लोगों ने इन्हें तोड़ दिया है. बौद्ध धर्म के हीनयान के समय में ये गुफाएं देखने को मिली. जो कि पश्चिमी भारत के बौद्ध मंदिरों में आज भी देखने को मिलती है.
ऐसा माना जाता है कि सतवाहन राजवंश के शासन काल में ये गुफाएं खोदी गई होंगी. ऐसा भी प्रतीत होता है कि 5वीं ईस्वी में वकाटका शासन के काफी समय बाद ये दिखाई दी होंगी. हीनयान बौध धर्म के समय इनके पू्जा स्थलों पर बौध और बौधिसत्व की कोई मूर्ति नहीं थी और ना ही पीतलखोड़ा के गुफा नंबर 3 में चित्रकारी के अलावा और कुछ भी नहीं दिखाई देता था.
इन गुफाओं को दो भागों में बांटा गया है. 1 से 9 गुफाएं उत्तर-पूर्व दिशा की ओर हैं जो एक दूसरे से सटे हुए हैं. इन्हें पहले समूह में रखा गया है. पहाड़ी के दूसरी तरफ 10 से 14 गुफाएं हैं इन गुफाओं का मुख दक्षिण की ओर है इन्हें दूसरे समूह में रखा गया है. कई गुफाएं या तो जीर्ण-क्षीण हो गयी हैं या फिर क्षतिग्रस्त कर दी गई है. गुफा 1 बहुत बड़ा विहार नजर आता है.
गुफा 2, 3 और 4 में इसी तरह के प्रांगण है जिसे ऐसा माना जाता है कि ये भी इसी काल के समय के रहे होंगे. गुफा 2 और 3 के बीच स्थिति दीवार अब नष्ट हो गयी है. गुफा 2 एक विहार है जिसमें पहाड़ी को काटकर नालियां बनाई गयी हैं जो पानी के बहाब को गुफा 3 में जाने से रोकती है. गुफा 3 में पूजा होती थी.
गुफा 3 में बेहतरीन चित्रकारी है जो कि दीवारों और पिलरों पर बनी हुई हैं. हॉल के अलावा गलियारा बनाने के लिए 37 पिलरों की सहायता ली गई है. प्रत्येक गलियारे के 10वें और 11वें पिलर को अभिलेख के लिए समर्पित किया गया है. जिन्होंने इन दोनों पिलरों को भेंट किया वो पैठाण के ही रहने वाले थे. नीचे बेसमेंट में चलें तो यहां नक्काशी की कई कलाएं देखने को मिल जाती हैं.
गुफा 4 में कई सारी छोटी गुफाएं हैं जिनमें हाथी और घोड़ों की नक्काशी है साथ ही दान-दाताओं के अभिलेख भी यहां देखने को मिल जाते हैं. इनके अलावा एक अन्य पहाड़ी पर राजकुमार के तौर पर बुद्ध को दर्शाया गया है जो अपना राजमहल त्याग रहे हैं. बुद्ध के जीवन का यह एकमात्र दृश्य है जो पीतलखोड़ा में पाया गया है.
क्षतिग्रस्त गुफा संख्या 5 एक विहार है जिसकी चट्टानों पर व्यापारियों की दान दी हुई चीजों के नाम उकेरित हैं. गुफा 6, 7 और 8 भी विहार है. गुफा 6 में दीवारों पर पेटिंग के कुछ निशान देखे जा सकते हैं. 7 और 8 में पत्थरों को काटकर बनाया जा रहा एक अधूरा हौज है. गुफा 9 विहार का विस्तार है और इसमें पेंटिंग और प्लास्टर के अवशेष हैं.
पहाड़ी के दूसरी ओर गुफा संख्या 10 से 14 मौजूद हैं जिनमें पूजास्थल बनाये गए हैं और इनमें स्तूप रखे गए हैं. गुफा 11 में कई स्पूत हैं जो अलग-अलग समय पर खुदाई के दौरान मिली थी. गुफा 13 और 14 का प्रांगण एक ही है और यहां बेहद खूबसूरत नक्काशीयुक्त मूर्तियां है लेकिन ये टूट चुके हैं. शहर से बहुत दूर होने के कारण पीतलखोड़ा में बहुत कम लोग इन गुफाओं को देखने आते हैं.
पीतलखोड़ा के आसपास क्या देखें
अजंता-एलोरा
घृष्णेश्वर मंदिर
बीबी का मकबरा
औरंगाबाद गुफाएं
कैसे पहुंचेः-
अजंता से 78 किलोमीटर दूर पीतलखोड़ा बसा है. यहां टैक्सी के जरिए पहुंचा जा सकता है. पहाड़ी पर पैदल ही चढ़ा जा सकता है. ट्रेन से यहां पहुंचने के लिए मुंबई-चालीसगांव के लिए रात को चलने वाली ट्रेन है. इसके बाद बस से प्राचीन पाटन देवी मंदिर पहुंचा जा सकता है. थोड़ी दूर जाने के बाद पहाड़ी रास्ता शुरू हो जाता है. इसके अलावा आप चालीसगांव से भामरवादी से लिए बस ले सकते हैं इसके बाद गुफा सिर्फ नौ किलोमीटर दूर रह जाती है.