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ऐतिहासिक है वसई के किले का महत्व

मुंबई से लगभग 48 किलोमीटर दूर उत्तर की ओर वसई गांव के निकट है ऐतिहासिक वसई का किला.

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वसई का किला
वसई का किला

मुंबई से लगभग 48 किलोमीटर दूर उत्तर की ओर वसई गांव के निकट है ऐतिहासिक वसई का किला. वसई एक खूबसूरत गांव है जो उल्लास नदी के तट पर बसा है. पहले इसे बसीन और बसाई के नाम से जाना जाता था.

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वसई के किले का ऐतिहासिक महत्व है. इस किले पर पहले गुजरात के सुल्तान का राज था. बाद में पुर्तगालियों, मराठाओं और अंग्रेजों ने इस किले से अपनी हुकूमत चलाई. इस किले का विशेष महत्व यह है कि यहां से पूरे पश्चिमी समुद्र तट पर नजर रखी जा सकती थी. इसका उपयोग बंदरगाह के रूप में भी होता था. आजादी के बाद भारतीय पुरात्तव विभाग ने इस किले को अपने अधिकार में ले लिया और इसे राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा दिया.

वसई का तटवर्ती इलाका तीनों छोरों से समुद्र से घिरा हुआ था. एक बार अचानक भूस्खलन होने से इसमें समुद्र का पानी भर गया. करीब साढ़े चार किलोमीटर पत्थरों की दीवार के अंदर 11 दुर्ग बने हुए हैं. इस किले के दो गेट हैं.

इसके अलावा किले के अंदर एक छोटा सा दुर्ग भी है जो सुव्यवस्थित ढ़ंग से पानी के टैंकों और शस्त्रागार आदि से सुसज्जित है. इसके अलावा इस किले में साग-सब्जियों और फसल को भी उगाया जाता था.

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वसई तब महत्वपूर्ण हो गया जब सोपारा के पुराने सोपारा बंदरगाह (वसई से 10 किलोमीटर दूर आज का नालासोपारा गांव) प्रयोग करने के लिए सुरक्षित नहीं रहा. इसके बावजूद भी वसई के लोगों के लिए यह व्यापार का केंद्र बना रहा.

कब किसके कब्जे में रहा वसई का किला
गुजरात के सुल्तान और बहादुर शाह के कमांडर मलिक टुघन ने 1533 ईस्वी में एक दुर्ग की तरह की संगरचना खड़ी की थी. 1534 ईस्वी में पुर्तगालियों ने बहादुर शाह को वसई छोड़ने को मजबूर कर दिया. और किले पर पुर्तगालियों ने कब्जा जमा लिया.

इसके बाद पुर्तगालियों ने पूरे दुर्ग की संरचना की. सबसे पहले बलेकिला बनाया गया और फिर 1590 में वर्तमान किले का परकोटे का निर्माण कराया गया. पुर्तगालियों ने चारों ओर से मजबूत दीवारें और एक मुख्य द्वार बनाया. उन्होंने आसपास कुछ अन्य छोटे किले का निर्माण भी कराया.

वसई इसके बाद लगभग 150 सालों तक समृद्धि का प्रतीक बना रहा. इस दौरान पुर्तगालियों ने यहां महत्वपूर्ण घर, मठ, चर्च और अनाथालय बनाए. किले के अंदर सिर्फ पुर्तगाली नोबल ले जाने की इजाजत थी. पुर्तगालियों के अधीन वसई नौसेना के प्रमुख केंद्र और जहाज निर्माण का प्रमुख केंद्र भी था.

1739 में मराठा शासक पेशवा बाजीराव के भाई चीमाजी अप्पा ने किले पर चढ़ाई कर विजय पा ली. हालांकि इसमें उन्हें बहुत से लोगों को खोना पड़ा. 1802 की बात है जब पेशवा बाजीराव द्वितीय ने वसई की संधि कर ली. इसके बाद वसई का किला और शहर पूरी तरह अंग्रेजों के प्रभुत्व में आ गया.

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आज किले की रौनक थोड़ी बहुत दीपावली के दौरान ही होती है जब यहां विदेशी और अन्य पर्यटक पहुंचते हैं. यही वो समय है जब किले की सफाई कराई जाती है. लेकिन आज पुराने हो चुके इस किले के अंदर की अधिकांश संरचनाएं खंडहर हो चुकी हैं और जीर्णोद्धार की बाट जोह रही हैं.

वसई किले तक कैसे पहुंचें
वसई रेलवे स्टेशन से 10 से 12 किलोमीटर की दूरी पर वसई किला है. रेलवे स्टेशन पहुंचने के बाद रिक्शा और ऑटो से जाया जा सकता है. इसके अलावा राज्य सरकार की बसों द्वारा भी यहां पहुंचा जा सकता है जो वसई किले से स्टेशन तक ले जाते हैं.

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