घर में जुड़वा बच्चे होने पर उनकी देखभाल में खासी परेशानी होती है. लेकिन अफ्रीका के एक देश में समस्या उनको जीवित रखने की होती है.
अंग्रेजी वेबसाइट डेली मेल में प्रकाशित खबर के अनुसार, अफ्रीका के तटीय भाग में स्थित एक बेहद गरीब देश बेनिन में परेशानी बच्चों को संभालने की नहीं उन्हें जिंदा रखने की है. यहां के लोग बच्चों को जीवित न रख पाने की विकट समस्या से जूझ रहे हैं. यहां के ज्यादातर बच्चे पैदा होने या बहुत कम वक्त में ही मर जाते हैं.
अपने इस दुख को कम करने के लिए यहां के समाज में एक बेहद अजीबोगरीब रिवाज है. यहां के लोग मरे हुए बच्चों के पुतले बना लेते हैं और उन पुतलों के साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं जैसे वो उनके बच्चे हों, जिंदा बच्चे. इस पूरी प्रक्रिया में वो जादू-टोने का भी इस्तेमाल करते हैं.
फ्रेंच फोटोग्राफर एरिक लाफोर्ग ने यहां के लोगों की कुछ ऐसी ही तस्वीरें अपने कैमरे में उतारी हैं. जिन्हें देखकर आपको अजीब लग सकता है, पर इसी बात से आप इन मां-बाप के दुख का अंदाजा भी लगा सकते हैं.
यहां के लोगों का का मानना है कि इन पुतलों में बच्चों की आत्मा निवास करती है और इसमें उस परिवार के सौभाग्य को बनाए रखने की ताकत होती है. हालांकि ये इस बात पर निर्भर करता है कि परिवार के लोग पुतले का किस तरह से ख्याल रख रहे हैं.
जिंदा बच्चों की तरह की जाती है देखभाल
हर रोज इन पुतले रूपी बच्चों का दुलार किया जाता है, उन्हें खाना खिलाया जाता है, नहलाया जाता है, बिस्तर पर थपकी देकर सुलाया जाता है. यहां के लोग वो सबकुछ करते हैं जिसकी वजह से उनका दुख थोड़ा कम हो और परिवार बुरी बलाओं से दूर रहे.
बेनिन में फॉन जनजाति के लोग अपने मरे हुए बच्चों को इस तरह से जिंदा रखते हैं. हालांकि मरने वाले हर बच्चे का पुतला नहीं बनाया जाता है. ये कस्टम मल्टीपल बर्थ के लिए ही है. यहां पैदा होने वाले हर 20 में से एक बच्चा मर जाता है.
जन्म के तीन महीने बाद भी अगर जुड़वा बच्चे जिंदा है तो यहां के लोग पूरे समुदाय में घूम-घूमकर उपहार एकत्र करते हैं. अगर वे मर जाते हैं तो परिवार वाले उन बच्चों के पुतले बना लेते हैं. ये पुतले छोटे होते हैं और मां इन्हें हमेशा अपने कपड़े में टांगे रखती है जिससे वो उसकी आंखों से ओझल न हो जाएं.
शुभ माने जाते हैं ये पुतले
हॉनयोगा नाम की एक महिला, जोकि बोपा गांव में रहती है, उसने हाल ही में अपने जुड़वा बच्चों को खो दिया. उनके पति जब भी कहीं बाहर जाते हैं अपने जुड़वा बच्चों के पुतले अपने साथ लेकर जाते हैं. उनका मानना है कि ये पुतले उनकी सुरक्षा करते हैं.
हॉनयोगा के जुड़वा बच्चों की मौत हो चुकी है लेकिन वो उनके बारे में ऐसे बात करती हैं जैसे वो जिंदा हों. उनके दूसरे बच्चे भी हैं जो जीवित हैं और उनके साथ रहते हैं.
वो इन पुतलों को सप्ताह में एक बार झील भी ले जाती हैं. यहां के लोगों की मान्यता है कि झील में नहाने से पुतले रूपी बच्चे से जुड़ी सभी बुराइयां दूर हो जाएंगी लेकिन जिस स्पंज से बच्चे को नहलाया गया है उसे वापस लाना गलत माना जाता है.
कुछ पुतले साफ होते हैं तो कुछ गंदे. पर ये पुतले बाहरी लोगों को बहुत आकर्षित करते हैं और वो इन्हें खरीदना चाहते हैं लेकिन पुतला बेचना, बच्चा बेचने के बराबर माना जाता है.
इन पुतलों के खाने-पीने का समय तय है. इनकी अपनी कुर्सियां है जिस पर इन्हें बिठाकर खाना खिलाया जाता है. यहां के लोगों का मानना है कि अगर पुतलों की सही से देखरेख नहीं की गई तो घर में दुख आ जाएगा और पुतले नाराज होकर खुद ही गायब हो जाएंगे.
बंटी हुई है जिम्मेदारी
इन पुतलों को संभालने वाली मांएं जब पुतलों की देखभाल नहीं कर पाती हैं तो ये जिम्मेदारी पिता पूरी करता है. इन पुतलों को सबसे बेहतर चीजें ही दी जाती हैं.
जब वो लोग कहीं बाहर जाते हैं तो पुतलों को नर्सरी में छोड़कर जाते हैं. परिवार के जीवित बच्चे भी उन्हें भाई-बहन के जैसे ही देखते हैं. सफर के दौरान फोटोग्राफर की मुलाकात एक ऐसी महिला से हुई जिसने अपने जुड़वा और थ्रिपलेट्स बच्चों को खो दिया था. उनकी मौत के बाद से यहां के लोग उसे सौभाग्यशाली मानते हैं और वो ट्राइब की रानी है.
चलते-चलते फोटोग्राफर ने एक स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र का भी दौरा किया. जब उन्होंने वहां के डाॅक्टर से बच्चों की मौत के बारे में पूछा तो उनका कहना था कि मलेरिया इसकी सबसे बड़ी वजह है जोकि पीने के साफ पानी की कमी की वजह से बढ़ती ही जा रही है.