एचआईवी संक्रमण से न जाने कितने ही लोगों की जान जा चुकी है. ह्युमन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस एक लेंटिवायरस है, जो अक्वायर्ड इम्युनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम (एड्स) का कारण बनता है. अब से दो दशक पहले तक एचआईवी संक्रमण को कैंसर की तरह जानलेवा ही माना जाता था.
यूं तो संक्रमण फैलने के कई माध्यम हो सकते हैं लेकिन गर्भवती महिला से बच्चे को ये संक्रमण होने की आशंका सबसे अधिक होती है. दरअसल, गर्भ में पल रहा बच्चा अपने पोषण के लिए मां पर ही निर्भर होता है. ऐसे में उसके संक्रमित होने का खतरा काफी बढ़ जाता है. साथ ही मां का दूध भी संक्रमण का कारण बन सकता है. संक्रमण फैलने का ये तीसरा सबसे सामान्य माध्यम है.
खुशी की बात ये है कि चिकित्सा जगत में हुई तरक्की और डॉक्टरों के प्रयास से इस आशंका को अब रोका जा सकता है. महाराष्ट्र के जेजे अस्पताल में कुछ दिन पहले ही एक ऐसे बच्चे ने जन्म लिया, जिसे एचआईवी संक्रमण नहीं था जबकि उसकी मां एचआईवी संक्रमित थी.
जेजे अस्पताल इस संक्रमण को रोकने के लिए पिछले 15 साल से प्रयासरत है और उन्होंने शुरुआत से अब तक ऐसे 100 बच्चों की डिलीवरी कराई है जिनकी मां तो संक्रमित थीं लेकिन पैदा हुए बच्चे संक्रमण मुक्त थे. जेजे अस्पताल की गाइनेकोलॉजी डिपार्टमेंट की प्रमुख डॉक्टर रेखा डावेर के मुताबिक, हम इस संदर्भ में साल 2000 से लगातार काम कर रहे हैं. पर संक्रमण मुक्त 100 बच्चों की डिलीवरी कराना वाकई बड़ी सफलता है. रेखा बताती हैं कि Tenofovir, Lamivudine और Efavirenz का ट्रीटमेंट वाकई फायदेमंद साबित हुआ है.
साल 2000 में जेजे अस्पताल ने मां और बच्चे दोनों को Nevirapine tablet देने के साथ ही इस काम की शुरुआत की थी. इससे संक्रमण का प्रारंभिक खतरा तो कम हो जाता था लेकिन ये उतना सफल नहीं हुआ और उन बच्चों में आगे चलकर संक्रमण के लक्षण नजर आने लगे.
पर तीन दवाइयों का ये ट्रीटमेंट वाकई कारगर साबित हुआ है. जे जे अस्पताल की रेखा डावेर का कहना है कि ये हमारे लिए उत्सव का मौका है.