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अगर बापू है 'हानिकारक' तो काम आएंगे ये टिप्स

फिल्म 'दंगल' में आमिर खान की तरह अगर आपके पापा भी स्ट्र‍िक्ट हैं, तो उन्हें कुछ इस तरह आप हैंडल कर सकते हैं...

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फिल्म 'दंगल' में आमिर खान
फिल्म 'दंगल' में आमिर खान

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दंगल का एक गाना आज के बच्चे खूब मन से गाते हैं 'बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है.' स्ट्र‍िक्ट माता-पिता के बच्चे अक्सर ऐसा ही सोचते हैं. खासतौर से अगर बच्चे टीन एज में है तो उन्हें मां-बाप की रोक-टोक अच्छी नहीं लगती. इस उम्र में वो दोस्तों के साथ बाहर निकलना चाहते हैं.

मां-बाप के कंट्रोल से निकल कर लूज-कंट्रोल में आना चाहते हैं. यह कितना सही और कितना गलत है, यह समझना होगा. क्योंकि यही वो उम्र है, जिसमें फोकस रहकर किशोर अपनी जिंदगी संवार सकते हैं.

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शायद ये बात टीन एज में बच्चों को समझ नहीं आती, इसलिए कुछ मां-बाप ही उन्हें सपने दिखाने और फोकस करने का बीड़ा उठा लेते हैं. फिल्म 'दंगल' में आमिर खान एक ऐसे ही पिता बने हैं.

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हालांकि, फिल्म 'दंगल' में बहुत पुराना जमाना दिखाया गया है. जब लड़कियां रेसलिंग नहीं करती थीं. आमिर खान यानी कि महावीर सिंह फोगाट अपनी बेटियों गीता और बबीता को रेसलर बनाना चाहते थे. हालांकि, इसमें उनका एक स्वार्थ ये था कि अपने सपनों को अपनी बेटियों के जरिये पूरा कराना चाहते थे. अपनी बेटियों के आंखों में वो अपने सपने को देखना चाहते थे. पर उनकी बेटियों को भी रेसलर ही बनना है, यह बात तब तय हुई, जब गीता और बबीता ने कुछ लड़कों की पिटाई की और इसकी शिकायत आमिर खान यानी कि महावीर सिंह फोगाट तक पहुंची.

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सीनियर साइकोलोजिस्ट डॉ. रोमा कुमार के मुताबिक बच्चे अक्सर स्ट्र‍िक्ट मां-बाप को 'हानिकारक' ही समझते हैं, पर यह समझना जरूरी है कि उनके पेरेंट्स उनसे क्या चाहते हैं. फिल्म 'दंगल' में महावीर सिंह ने अपनी बच्च‍ियों के उस हुनर को देख लिया था, जिसे उनकी बेटियां समझ नहीं पा रही थीं. गीता और बबीता अपनी दोस्त की शादी में जाती हैं और वहां उनकी दोस्त यह समझाती है कि तुम्हारे पिता कम से कम तुम्हें कुछ बनाना चाहते हैं, मेरे पिता तो बस मेरी शादी कर छुटकारा चाहते हैं. ये बात तब उन्हें समझ में आती है.

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डॉ रोमा कुमार हालांकि समाज में कुछ ऐसे एम्बीशियस मां-बाप भी हैं, जो अपने बच्चों की आंखों में सिर्फ अपने ही सपनों को पलता देखना चाहते हैं. पर बच्चों को इन दोनों स्थ‍ितियों के अंतर को समझना होगा. माता-पिता को भी ये बात समझनी होगी कि फोकस बनाने के लिए स्ट्र‍िक्सनेस जरूरी नहीं है, बल्क‍ि डिटरमाइन्ड होना जरूरी है. इसलिए बच्चों को डिसिप्लीन में रखें पर यह दम घुटने जैसा न हो. अगर आपको लगता है कि आपके पिता दंगल के आमिर खान की तरह ही सख्त हैं तो आपको कुछ ऐसा करना चाहिए...

  • हर बात के दो पहलू होते हैं, इस बात को समझें. खुले दिमाग से सोचें कि कहीं आपके पिता सही तो नहीं कह रहे हैं. किसी काउंसलर के पास बैठें. अपनी पॉजिटिव और निगेटिव चीजों को नोट डाउन करें. किसी दोस्त या शुभचिंतक से सलाह लें.
  • अगर आपके सपने अपने पिता के सपनों से अलग हैं तो खुलकर उनसे बात करें. आप किस क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहते हैं, उसके लिए आप कितने दक्ष हैं आदि सारी बातें खुलकर उनके सामने रखें. वो समझेंगे.
  • अगर वो फिर भी ना समझें तो दोनों किसी एक्सपर्ट या काउंसलर के पास जाएं और बेहतर राय मांगे.
  • ओवर कॉन्फ‍िडेंस ना रखें. कई बार आप जो नहीं समझ पाते या जो नहीं देख पाते, माता-पिता वो समझ लेते हैं. फिल्म 'दंगल' में महावीर सिंह की बड़ी बेटी जब गांव लौटती है, जब महावीर से रेसलिंग करती है. इससे उसका ओवर कॉन्फ‍िडेंस झलकता है. उनके अनुभवों का मान रखें और कोई ऐसा कदम ना उठाएं जिस पर आपको पछतावा हो.
  • बाल बढ़ाना, सजना-संवरना गलत नहीं है और ना ही गोलगप्पे खाना गलत है. पर इसमें समय ज़ाया होता है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता. अगर आपके टीन एज में आपके माता-पिता नहीं चाहते कि आप ज्यादा अपनी सुंदरता या लुक्स के ऊपर ध्यान दें तो इसका मतलब ये है कि वो चाहते हैं कि आप अपनी पढ़ाई या एम्बीशन के प्रति फोकस्ड रहें.
  • अपने माता-पिता को ये समझाने की कोशिश करें कि फोकस के लिए स्ट्र‍िक्टनेस जरूरी नहीं है, बल्कि डिसिप्लीन की जरूरत होती है. जिंदगी में कुछ बनने के लिए डिटरमाइंड होना जरूरी है.

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