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डिप्रेशन की समस्या में बच्चों-युवाओं का चुप रहना खतरनाक, कैसे करें बचाव?

फोर्टिस हेल्थकेयर के जाने-माने डॉक्टर समीर पारीख ने इंडिया टुडे ई-माइंड रॉक्स के माध्यम से लोगों को इस विषय में जानकारी दी. उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर ऐसे हालात बच्चों और युवाओं को डिप्रेशन की ओर धकेल सकते हैं. उन्होंने कहा कि डिप्रेशन की समस्या में किसी का चुप रहना भी बेहद खतरनाक होता है.

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Photo credit: Reuters
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कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन ने लोगों की लाइफस्टाइल को बदलकर रख दिया है. स्कूल और कॉलेज जाने वाले बच्चे और युवाओं पर भी इसकी दोहरी मार पड़ी है. बच्चों के भविष्य को निखारने वाले स्कूल और कॉलेज बंद हो चुके हैं. दोस्तों के साथ उनका खेलना-कूदना बंद हो चुका है. ये दो बातें किसी भी इंसान के डिप्रेशन का कारण बन सकती हैं, जिससे निपटने के लिए उन्हें तैयार रहना होगा.

'फोर्टिस हेल्थकेयर' के जाने-माने डॉक्टर समीर पारीख ने 'इंडिया टुडे ई-माइंड रॉक्स' के माध्यम से लोगों को इस विषय में जानकारी दी. उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर ऐसे हालात बच्चों और युवाओं को डिप्रेशन की ओर धकेल सकते हैं. उन्होंने कहा कि डिप्रेशन की समस्या में किसी का चुप रहना भी बेहद खतरनाक होता है.

पढ़ें: भारत में 46% बच्चों को नहीं मिलती आंखें जांच कराने की सुविधा: सर्वे

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क्या है इससे बचने का इलाज?

ऐसी परिस्थिति में पैरेंट्स बच्चों का सबसे मजबूत सपोर्ट सिस्टम साबित हो सकते हैं. बच्चों के साथ उनके दोस्तों की तरह व्यवहार करिए. बच्चों और युवाओं को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे अपने अंदर छिपी किसी भावना को दबाए ना रखें. माता-पिता या दोस्तों के साथ आप अपनी कोई भी परेशानी शेयर कर सकते हैं, जैसा पहले हुआ करता था.

डॉ. पारीख ने कहा कि मौजूदा समय में सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए अपनी बात कहने के ढेरों विकल्प हैं. जरा सोचिए, अगर यह महामारी आज से 50 साल पहले फैली होती तो क्या होता. लेकिन आज आप वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए लोगों से जुड़ सकते हैं. डिजिटल प्लेटफॉर्म पर ही मनोचिकित्सकों की सलाह ले सकते हैं.

कई बच्चों में करियर की रेस में पीछे छूटने का खौफ भी नजर आ रहा है. रेस में हमेशा नंबर-1 बने रहने की महत्वाकांक्षा उन्हें बेचैन कर रही है. इन हालातों में आपको समझने की जरूरत है कि इस महामारी से पूरी दुनिया प्रभावित हुई है. इसलिए खुद के पीछे छूटने या करियर की चिंता करने की बजाए अपने प्रदर्शन पर ध्यान दें. रोजर फेडरर, सचिन तेंदुलकर या विराट कोहली जैसे दिग्गज खिलाड़ियों ने कभी प्रतिद्वंदियों से खुद की तुलना नहीं की, वे सिर्फ अपनी परफॉर्मेंस पर फोकस करके ही महान बन पाए हैं.

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