अतिआधुनिक मोबाइल और तेज नेटवर्क ने जहां लोगों को एक दूसरे से जोड़ने का काम किया है, वहीं इसके कई खतरे भी उभरकर सामने आए हैं. इसमें से एक है किशोरों में बढ़ती पोर्न देखने की लत.
बाल मस्तिष्क और ह्यूमन साइकोलॉजी पर अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय किशोरों में पोर्न देखने की लत तेजी से बढ़ रही है. इसका सबसे बड़ा कारण है उनके हाथों में इंटरनेट की उपलब्धता.
दुनिया के सबसे अमीर शख्स के बच्चों को थी मोबाइल यूज करने की मनाही
माता-पिता अपने बच्चों से कनेक्टेड रहने के लिए मोबाइल दे देते हैं. पर मोबाइल में इंटरनेट की मौजूदगी उन्हें कई लाभ देने के साथ-साथ पोर्न की दुनिया में भी खींच रहा है.
IHBAS के असिस्टेंट प्रोफेसर साइकेट्रिस्ट डॉ. अमित खन्ना ने बताया कि किशोरावस्था में बच्चों का मस्तिष्क बहुत क्यूरियस होता है. ऐसे में इंटरनेट पाते ही वो कई चीजों को पढ़ना, देखना और समझना चाहते हैं. किशोरावस्था में ही यदि बच्चा पोर्न साइट्स देखने लगा है तो उसे कई तरीकों से आप संभाल सकते हैं.
स्मार्ट बच्चे के लिए गर्भवती महिलाएं ये जरूर खाएं...
1. इंटरनेट कट करें: सुरक्षा की दृष्टि से अगर आप बच्चे को मोबाइल दे रहे हैं तो उसमें इंटरनेट न दें. घर में वाईफाई है तो बेहतर होगा कि आप इंटरनेट को पासवर्ड प्रोटेक्टेड रखें और बच्चे को पासवर्ड न बताएं.
पिल्स से लाख गुना बेहतर हैं ये प्राकृतिक गर्भनिरोधक
2. उसका फोकस बदल दें: किशोर अगर पोर्न साइट्स देखता है तो आप उसका फोकस चेंज कर दें. यानी उसको दूसरे कामों में बीजी कर दें. उसके साथ खेलें, बातें करें, रिसर्च और नई तकनीकों के बारे में बात करें. खाली दिमाग शैतान का होता है. बच्चा ना खाली होगा और ना वो पोर्न देख पाएगा.
3. सकूल में इस पर शिक्षा जरूरी: बच्चों के टीचर और स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन से बात करें और स्कूल में सेक्स एजुकेशन दिए जाने पर जोर दें.
4. आप भी बात करें: माता-पिता आमतौर पर बच्चों के सामने ये सारी बातें करते हुए शर्मिंदगी महसूस करते हैं. पर आप जब तक बात करेंगे नहीं आपको वास्तविक स्थिति का पता नहीं चलेगा. बच्चे को आपसे छुपने की जरूरत नहीं पड़ेगी. बातचीत के जरिये आप उसकी इस आदत को खत्म कर सकते हैं.
प्रेग्नेंसी में महिलाएं इस बात से सबसे ज्यादा डरती हैं...
5. कहीं कोई साइकेट्रिक डिस्ऑर्डर तो नहीं : कई बार साइकेट्रिक डिस्ऑर्डर यानी किसी तरह की मानसिक बीमारी की वजह से भी बच्चों में ये आदत विकसित हो जाती है. यदि ऐसा है तो बच्चे को किसी मनोचिकित्सक के पास ले जाएं. कैसे पहचाने साइकेट्रिक डिस्ऑर्डर है या नहीं...
- साइकेट्रिक डिस्ऑर्डर से जूझ रहे बच्चे हाइपर एक्टिव होते हैं. वो एक जगह स्थिर नहीं बैठ सकते.
- ऐसे बच्चों को ध्यान एकाग्र करने में भी दिक्कत होती है. वो बहुत मुश्किल से एक जगह ध्यान रख पाते हैं.
- जिद्दी होते हैं और जल्दी उत्तेजित भी हो जाते हैं.
अगर आप अपने बच्चे में ये लक्षण देख रहे हैं तो उसे किसी मनोचिकित्सक के पास ले जाने में देर न करें. क्योंकि उम्र के साथ समस्याएं भी बड़ी हो सकती हैं.