वो कहते हैं माएं नौ महीने बच्चे को गर्भ में रखती हैं, लेबर पेन से गुजरती हैं और फिर बच्चे को जन्म देती हैं लेकिन इस बच्चे को अपनाने के लिए मैंने डेढ़ साल तक लेबर पेन सहा है!
ये कहानी है सॉफ्टवेयर इंजीनियर आदित्य तिवारी और उनके बेटे बिन्नी की. जिस उम्र में ज्यादातर लड़के अपनी चीजों को ही नहीं संभाल पाते उस उम्र में आदित्य एक बच्चे के डायपर बदलते हैं, उसे कहानी सुनाकर सुलाते हैं, उसके साथ खेलते हैं और हर वो काम करते हैं जो एक मां अपने बच्चे के लिए करती है.
आदित्य एक सिंगल पेरेंट हैं...कुंवारे पिता. इसी के साथ वो भारत के यंगेस्ट सिंगल पेरेंट हैं. उन्होंने एक ऐसे बच्चे को अपनाने की हिम्मत दिखाई जिसे खुद उसकी मां ने मरा हुआ मान लिया था. जिस मां ने बिन्नी को नौ महीने पेट में पाला, उसे जन्म देने के लिए लेबर पेन सहा उसे जब ये पता चला कि बिन्नी एक स्पेशल चाइल्ड है तो उसने उसे अनाथ आश्रम में छोड़ दिया. बिन्नी को Down Syndrome की शिकायत है और उसके दिल में छेद भी है. मां-बाप को डर था कि बच्चे को घर ले गए तो उनकी समाजिक प्रतिष्ठा धूल-धूल हो जाएगी.
16 मार्च 2014 को जन्मा ये कुछ ही दिनों का बच्चा अनाथ आश्रम में फेंक दिया गया...मरने के लिए...जिंदगी से अकेले लड़ने के लिए...
उस दिन आदित्य के पापा का जन्मदिन था. वो अपने पापा के साथ Missionaries of Charity’s orphanage, Jyoti Niwas गए हुए थे. जहां बहुत से बच्चे थे. सभी कुछ न कुछ कर रहे लेकिन एक बच्चा एक कोने में चुपचाप बैठा हुआ था. न तो चेहरे पर कोई भाव था, न ही हाथ-पैरों में कोई हरकत. आदित्य उस बच्चे के पास गए, उसे गोद में उठाया. ये बिन्नी और आदित्य की पहली मुलाकात थी.
बिन्नी को गोद में उठाने के साथ ही आदित्य ने उसे बेटा मान लिया. आदित्य को बताया गया कि बिन्नी एक स्पेशल चाइल्ड है और इसी वजह से उसे कोई नहीं ले जाना चाहता. लोगों को खूबसूरत, हंसमुख और एक्टिव बच्चे चाहिए होते हैं. आदित्य ने जब इस बच्चे को गोद लेने की बात कही तो उसे कानूनी नियम-कायदे बताकर दरकिनार कर दिया गया. उनसे कहा गया कि बच्चा गोद लेने के लिए 30 की उम्र के साथ-साथ शादीशुदा होना भी जरूरी है. यहीं से शुरू हुई आदित्य की डेढ़ साल की लेबर पेन...
आदित्य बताते हैं कि जब उन्होंने बच्चे को गोद लेने की बात सबको बताई तो लोगों ने उन्हें तरह-तरह की बातें सुनाईं. लोगों ने उन्हें नपुंसक तक कह डाला. ये भी कह दिया कि इसका ही बच्चा होगा, नाटक कर रहा है लेकिन आदित्य के पेरेंट्स ने उनका पूरा साथ दिया. शुरू में तो उन्हें भी लगा था कि आदित्य गलत कर रहा है. बच्चा संभालना इतना आसान तो नहीं...लेकिन बाद में वे मान गए.
डेढ़ साल तक आदित्य सिस्टम और लोगों से लड़ते रहे. पर शायद उस बच्चे की किस्मत में अनाथ कहलाना नहीं था. किस्मत और आदित्य की कोशिश रंग ले आई. 1 जनवरी 2016 को बिन्नी एक घर का चिराग बन गया.
कैसी है इस सिंगल पेरेंट की जिंदगी
आदित्य बताते हैं कि मेरा बेटा मुझसे अभी बात नहीं करता लेकिन वो मुझे समझता है. मैं उसके लिए उसकी दुनिया हूं. जब मैं ऑफिस जाता हूं तो वो सोता रहता है लेकिन मैं लंच टाइम में उससे मिलने आता हूं. हम शाम को साथ घूमने जाते हैं, साथ खेलते हैं, खाते हैं. उसकी एक मुस्कान मेरी दिनभर की थकान को दूर कर देती है. शादी के सवाल पर आदित्य कहते हैं कि वो सिर्फ उसी लड़की से शादी करेंगे जो उनके बेटे को अपना सकेगी. उसकी मां बन सकेगी.
आदित्य फिलहाल बिन्नी को हर बेहतर इलाज देने की कोशिश कर रहे हैं. बिन्नी पहले से बहुत बेहतर है. आदित्य स्पेशल चिल्ड्रन के लिए बहुत कुछ करना चाहते हैं और अपनी इस कोशिश को पहला प्रयास बताते हैं. वो बहुत जल्दी ही एक आश्रम भी खोलने वाले हैं.
आदित्य मानते हैं कि बच्चा संभालना बहुत आसान है. अगर इसे काम समझेंगे तो ये मुश्किल ही लगेगा लेकिन उसे जिम्मेदारी मानिए, उसे इंज्वॉय कीजिए. कुछ भी मुश्किल नहीं लगेगा और अगर बच्चा पालना इतना ही मुश्किल होता तो भारत की आबादी इतनी अधिक नहीं होती.
आदित्य मानते हैं कि इस स्पेशल चाइल्ड ने उन्हें भी स्पेशल बना दिया है...