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ग्लैमर लाइफ छोड़कर यह लड़की कर रही है एसिड पीड़िताओं की मदद

इंग्लैंड में फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने के बाद इस लड़की की जिंदगी में आखिर ऐसा कौन सा मोड़ आया कि वह अपने सपने छोड़कर दूसरों की जिंदगियां संवारने लगी?

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रिया शर्मा
रिया शर्मा

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यह कहानी है दिल्ली से सटे गुड़गांव में रहने वाली रिया शर्मा की. रिया एसिड हमलों की शिकार लड़कियों व महिलाओं की लड़ाई लड़ रही हैं, उनका इलाज कराती हैं, उन्हें कानूनी लड़ाई लड़ने में मदद करती हैं और साथ ही इन महिलाओं को अपने पैरों पर खड़े होने के लिए काम दिलाने की कोशिश करती हैं.

कैसे शुरू हुआ रिया का ये सफर
रिया शर्मा ने गुड़गांव के ही एक स्कूल से अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी की थी. इसके बाद वह फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने ब्रिटेन चली गईं. कोर्स में 2 साल बीत जाने के बाद भी रिया का मन इसमें नहीं लगा.

तीसरे साल रिय के प्रोफेसर ने उनसे कहा कि अगर वो इसी तरह पढ़ाई करती रहीं तो रिजल्ट अच्छा नहीं होगा. बातों-बातों में प्रोफेसर ने उनसे पूछा कि वो क्या करना चाहती हैं? उन्‍होंने जवाब में कहा कि वो महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करना चाहती हैं, लेकिन उन्हें इससे जुड़े काम के बारे में कुछ नहीं पता. इसके बाद उन्हें प्रोफेसर ने कहा कि घर जाओ और इस पर रिसर्च करो.

फिर क्‍या था? रिया ने घर आकर महिलाओं से जुड़े रेप, एसिड अटैक जैसे कई मुद्दों पर रिसर्च की. इस रिसर्च के दौरान वह इस बात को जानकर बेहद दुखी हुईं कि कैसे मनचले लोग लड़कियों और महिलाओं पर एसिड फेंक देते हैं. उस भयानक तकलीफ को झेलने के बाद कैसे उन लोगों का जीवन सिमट सा जाता है. इसके बाद उन्होंने एसिड अटैक पीड़ितों पर जानकारी जुटानी चाही पर उन्हें ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ.

अगले दिन रिया ने अपने प्रोफेसर को एसिड अटैक पीड़िताओं की कुछ तस्वीरें दिखाईं और कहा कि वह इनके लिए काम करना चाहती हैं. उनके प्रोफेसर बहुत खुश हुए और उनको वीडियो कैमरा देते हुए कहा कि तुम भारत जाकर इस विषय पर डॉक्यूमेंट्री बनाने की कोशिश करो.

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इस तरह बनीं एसिड से जलीं लड़कियों का सहारा
भारत आकर रिया ने अलग-अलग जगहों पर कई लड़कियों के इंटरव्यू लिए. इस दौरान उनकी कई एसिड पीड़ित लड़कियों और महिलाओं से दोस्ती हो गई. वह उन पीड़िताओं की छोटी-छोटी जरूरतों को भी पूरा करने का प्रयास करने लगीं. फिर धीरे-धीरे उनका उन लड़कियों और महिलाओं के साथ भावनात्मक जुड़ाव हो गया. अब रिया अपने अंदर एक सकारात्मक बदलाव महसूस करने लगीं और देखते ही देखते यह काम उनका जुनून बन गया.

एक बार वह डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए बंगलुरु के सरकारी हॉस्पिटल गईं थीं. वहां उन्होंने देखा कि हॉस्पिटल की जमीन, दीवार और बिस्तर सब जगह खून और मांस के टुकड़े पड़े हुए थे. वह यह देखकर चौंक गईं कि वहां पर डॉक्टर भी पर्याप्त संख्या में नहीं थे. जबकि दूसरे स्टाफ को इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था. उन मांस के टुकड़ों के बीच से ही लोग गुजर रहे थे.

इस दर्द भरे मंजर को देखकर रिया ने एक दृढ़ निश्चय लिया और उन्होंने अप्रैल 2014 को दिल्ली में अपने काम की शुरुआत कर दी. उन्‍होंने अपनी संस्था ‘मेक लव नॉट स्केयर’ के जरिए एसिड पीड़ितों की मदद करने का बीड़ा उठाया. वह इसके तहत एसिड का शिकार बनी महिलाओं की हर तरह से मदद करने की कोशिश करती हैं. रिया पीड़ितों की मेडिकल और पढ़ाई की जरूरतों से लेकर उनके कानूनी मामलों को लड़ने और उनको मुआवजा दिलाने के कामों में भी यथासंभव मदद करती हैं.

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किस तरह करती हैं मदद
रिया ने एसिड अटैक पीडितों के विकास के लिए एक सेंटर भी खोला है, जहां पर वह पीड़ितों को वोकेशनल और स्किल ट्रेनिंग देती हैं. इसके अलावा वह उनमें आत्मविश्वास लौटाने के लिए उनकी काउंसिलिंग भी करवाती हैं, जिससे कि पीड़िता समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकें. इस सेंटर में लड़कियों को अंग्रेजी और कंप्यूटर की बेसिक ट्रेनिंग दी जाती है. इसके बाद जो जिस क्षेत्र में जाना चाहती है उस हिसाब से उनकी मदद भी की जाती है.

रिया इन लोगों के लिए डांसिग, सिंगिंग, मेकअप वर्कशाप भी चलाती हैं. मेकअप आर्टिस्टों की मदद से वह एसिड पीड़ितों को सिखाती हैं कि कैसे अपने चेहरे को कवर करना है. देश की करीब 55 एसिड पीड़ित लड़कियां और महिलाएं रिया के साथ जुड़ी हैं, जिनकी उम्र 6 महीने से लेकर 65 साल तक के बीच है.

किस तरह रिया की टीम करती है काम
एसिड पीड़ितों से जुड़े काम को देखने के लिए रिया की 5 सदस्यों की एक कोर टीम है. देश के अलग-अलग हिस्सों में इनके वॉलेंटियर भी हैं, जो उन्हें इस काम में मदद करते हैं. रिया और उनकी टीम ह्यूमन राइट लॉ नेटवर्क के साथ काम करती हैं. इस नेटवर्क के पूरे देश में अपने वकील होते हैं. जहां पर एसिड पीड़ितों के अपने वकील नहीं होते वहां रिया और उनकी टीम उन पीड़ितों को वकील उपलब्ध कराती हैं. इसके अलावा इनके पास 2 से 3 वकील हैं जो इन्हें लीगल मामलों में सलाह देते हैं.

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किस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है
राहत पहुंचाने वाले इस काम में सबसे बड़ी परेशानी कोर्ट के फैसलों में होने वाली देरी होती है. इससे पीड़ित को मुआवजा और उसका हक समय पर नहीं मिल पाता है. इसके चलते पीड़िताओं में निराशा पैदा होती है. रिया का कहना है कि इतनी कामयाबी मिलने के बाद भी कई लोग उनको गंभीरता से नहीं लेते हैं और कहते हैं कि उनका यह काम ज्यादा दिन नहीं चलेगा. इसके बावजूद रिया अपने इस काम को अपना जुनून मानती हैं.

तो यह थीं रिया जो एसिड की जलन का दर्द झेल रही लड़कियों और महिलाओं के लिए एक ठंडी मरहम का काम कर रहीं हैं.

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