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कम उम्र में ही पीरियड्स बंद करने का ट्रीटमेंट ले रही युवतियां, क्या है इसकी वजह?

पीरियड्स महिलाओं के शरीर को कितना स्वस्थ रखते हैं, इसपर अध्ययन चल ही रहे हैं, लेकिन इससे कितनी तकलीफ होती है, ये जानने के लिए किसी साइंटिस्ट की जरूरत नहीं. हर महिला के पास इसे लेकर अपना तजुर्बा है. अब बहुत सी महिलाएं मेन्स्ट्रुअल सप्रेशन के जरिए पीरियड्स रोक रही हैं. सबसे पहले आर्मी में काम करने वाली महिला अफसरों के लिए इसकी जरूरत महसूस की गई.

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पीरियड्स का फ्लो कम करवाने या रुकवाने के कई तरीके चल निकले हैं. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
पीरियड्स का फ्लो कम करवाने या रुकवाने के कई तरीके चल निकले हैं. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

एक स्वस्थ महिला जिंदगी के औसतन 40 साल लगभग हर महीने पीरियड्स में बिताती है. इस दौरान रिप्रोडक्टिव हॉर्मोन्स ऊपर-नीचे होते हैं, जिसका सीधा असर उसकी शारीरिक और मानसिक सेहत पर भी दिखता है. किसी-किसी को पेट-कमर में बहुत तेज दर्द होता है, तो कोई मूड स्विंग्स की समस्या झेलता है. इन हालातों में काम करना आसान नहीं, खासकर जब सोसायटी इस दर्द को हल्के में लेती है. यही वजह है कि अब महिलाएं मेन्स्ट्रुअल सप्रेशन का सहारा ले रही हैं, यानी पीरियड्स को कम या लगभग बंद कराना. 

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क्या है ये मैथड 
मेन्स्ट्रुअल सप्रेशन वो तरीका है, जिसमें गोलियों की मदद से पीरियड्स रोके जा सकते हैं, या फिर उनकी फ्रीक्वेंसी कम हो सकती है. ब्लड फ्लो कम करना भी इसके तहत आता है. ये डॉक्टर की ही निगरानी में होता है और इसके लिए जरूरी है कि महिला या किशोरी का कम से कम एक बार पीरियड आ चुका हो. 

कौन करवा सकता है
पीरियड्स से गुजर रही कोई भी महिला सप्रेशन मैथड अपना सकती है. आमतौर पर डॉक्टर उन्हें ही इसकी सलाह देते हैं, जिन्हें बहुत हैवी ब्लीडिंग की समस्या हो. कई बार इस दौरान होने वाले हॉर्मोनल बदलाव ट्रिगर का काम करते हैं और कई लड़कियों को पेट और सिर में असहनीय दर्द होता है. इन हालातों में भी मेडिकल प्रोफेशनल ये सलाह देते हैं.

menstrual suppression to stop or reduce periods in young women
ज्यादातर महिलाएं पीरियड्स के दौरान किसी न किसी परेशानी से गुजरती हैं. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

सबसे पहले मेन्स्ट्रुअल सप्रेशन की बात उन महिलाओं के लिए हुई, जो मानसिक या शारीरिक तौर पर दिव्यांग हैं, और पीरियड्स के दौरान साफ-सफाई का ध्यान नहीं रख सकतीं. बाद में इसे आर्मी में, खासतौर पर मुश्किल इलाकों में तैनात महिलाओं की जिंदगी आसान करने के तरीके की तरह देखा जाने लगा. हालांकि इन सबके अलावा भी बहुत सी महिलाएं हैं, जो पीरियड्स को हर महीने होने वाले झंझट की तरह देखती हैं और इसे रोक रही हैं. 

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सप्रेशन मैथड पर आने से पहले डॉक्टर पेशेंट की पूरी जांच करते हैं कि कहीं कोई मेडिकल हिस्ट्री तो नहीं. अगर ऑर्गन से संबंधित कोई समस्या, या किसी गंभीर बीमारी का लक्षण दिखे तो इसे टाल दिया जाता है. सामान्य मामलों में जांच के बाद डॉक्टर सलाह देते हैं कि मरीज किस तरीके से सप्रेशन कराए तो ज्यादा बेहतर होगा. 

इन तरीकों का है चलन 
इसमें सबसे पहले बर्थ-कंट्रोल पिल्स होती हैं. इससे पीरियड्स पूरी तरह रुकते नहीं, बल्कि फ्लो हल्का हो जाता है. इसमें दर्द भी काफी हद तक सहने लायक हो जाता है. एक तरीका स्किन पैच है. इससे हर 4 महीने बाद पीरियड्स आते हैं. डेपो-प्रोवरा भी एक नया तरीका है, जिसमें हर 3 महीने में शॉट लेना होता है. आमतौर पर इसे वे महिलाएं अपनाती हैं, जो लंबे समय के लिए या फिर हमेशा के लिए पीरियड्स बंद करना चाहती हैं. प्रोजेस्टिन IUD मैथड के तहत डॉक्टर मरीज में इंट्रायूटेराइन डिवाइस डाल देते हैं. ये पांच साल के लिए होता है. 

इस सारे तरीकों में एक बात कॉमन है कि इनसे प्रोजेस्टिन हॉर्मोन बनता है. ये यूट्रस की लाइनिंग को पतला कर देता है जिससे पीरियड्स में खून का बहाव हल्का होते-होते बंद हो जाता है. IUD में दवा सीधे यूट्रस पर असर करती है, जबकि बाकी तरीकों में ये अप्रत्यक्ष तरीके से असर करती है. 

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बर्थ कंट्रोल पिल्स भी मेन्स्ट्रुअल सप्रेशन के काम आ रही हैं. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

क्या इसके बाद भी मां बना जा सकता है
जब तक दवाएं या ट्रीटमेंट चल रहा है, तब तक नहीं. लेकिन इसे रोकते ही मां बनने में कोई दिक्कत नहीं होती है अगर कपल रिप्रोडक्टिव तौर पर सेहतमंद हो. हालांकि इसपर अभी स्टडीज चल ही रही हैं. कई डॉक्टर ये भी मानते हैं कि टीनएजर्स को इससे बचना चाहिए, और वही महिलाएं सप्रेशन मैथड पर जाएं, जो परिवार बना चुकीं. 

एक तबका इससे अलग मानता है कि अगर महिलाओं के दर्द को नजरअंदाज किया जा रहा है तब पीरियड्स का दर्द झेलने का कोई फायदा नहीं. यूनिवर्सिटी ऑफ मियामी ने साल 2021 में एक स्टडी की, जिसके मुताबिक महिलाओं के ज्यादा दर्द को भी पुरुषों के कम दर्द से कम ही समझा जाता है.

जर्नल ऑफ पेन में छपे इस अध्ययन में बताया गया कि कैसे खुद डॉक्टर तक पेन-गैप को बढ़ावा देते हैं. यहां तक कि एक ही सर्जरी के बाद पुरुषों को दर्द की ज्यादा दवाएं और केयर मिलती है, जबकि उसी सर्जरी के बाद महिला मरीज को आराम करने की सलाह देकर छोड़ दिया जाता है. ये पेन-गैप पीरियड्स के दर्द पर भी लागू होता है, जहां दर्द के बावजूद महिलाएं खुलकर बात तक नहीं कर पातीं. यही वजह है कि कई देशों की महिलाएं कम उम्र में ही मेन्स्ट्रुअल सप्रेशन का सहारा लेने लगीं. आम भाषा में इसे पीरियड्स फिक्सिंग भी कहते हैं. भारत में फिलहाल इसका खास चलन नहीं.

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