हमने नोटबंदी का असर एक ऐसी मिडल क्लास फैमिली से जानने की कोशिश की, जहां अवसर तो शादी का था, पर माहौल शादी सा लग नहीं रहा था. न तो बैंड बाजा और न ही शॉपिंग. जाहिर सी बात है, सरकार के नोटबंदी के फैसले से आमजन से लेकर व्यापार जगत तक की आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई है.
पर क्या इस नोटबंदी का असर लोगों की मानसिक सेहत पर भी हो रहा है... क्या लोग नोटबंदी की वजह से मेंटल डिस्ऑर्डर का शिकार हो रहे हैं... यह भारत के साथ-साथ पूरे विश्व के लिए एक बड़ा सवाल बना हुआ है. इस मुद्दे पर दुनियाभर के विशेषज्ञ इस सप्ताह ‘वर्ल्ड कांग्रेस ऑफ सोशल साइकेट्री' में चर्चा भी करने वाले हैं.
नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर (एनडीडीटीसी) और इंडियन एसोसिएशन फॉर सोशल साइकियाट्री की ओर से एम्स में होने वाले इस कार्यक्रम में 130 साइकियाट्रिस्ट हिस्सा लेंगे. नोटबंदी का मानसिक अवस्था पर क्या असर हो सकता है, यह जानने के लिए हमने कई शोधों को खंघाला और विशेषज्ञों से बातचीत की.
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हाल ही में जारी एक शोध की रिपोर्ट में यह बात दावे के साथ कही गई है कि पैसों की तंगी का हमारी मनोदशा पर बहुत प्रभाव पड़ता है. इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि पैसों की कमी होने पर व्यक्ति उदास और हताश महसूस करता है. साथ ही उसका व्यवहार भी नकारात्मक व डिप्रेसिंग हो जाता है.
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हालांकि IHBAS (Institute of human behaviour and allied sciences) के डॉ. ओमप्रकाश ने शोध से इतर यह कहा कि नोटबंदी से होने वाली परेशानी से ऐसे लोगों की मानसिक अवस्था जल्दी प्रभावित हो सकती है, जिन पर पहले से नकारात्मक और तनाव हावी है.
नोटबंदी तनाव का कारण बन सकती है, पर यह तनाव किसी मानसिक बीमारी का रूप ले ले यह कहना मुश्िकल है. इस स्थिति में ऐसे लोगों को तनाव जल्दी हो सकता है, जिन्हें पैसे की जरा सी भी किल्लत परेशान कर देती है या लो फील करने लग जाते हैं. जो लोग डिप्रेसिंग नेचर के हैं या जिनकी फैमिली में डिप्रेशन की हिस्ट्री है, उनके लिए यह संभव है कि वे नोटबंदी के इस दबाव भरे समय में अवसाद के शिकार हो जाएं. यह भी संभव है कि तनाव ज्यादा होने पर पहले ही डिप्रेशन में रह चुके लोग किसी मानसिक रोग से ग्रस्त हो जाएं.
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डॉ. ओम प्रकाश ने कहा कि जो लोग मानसिक रोगी हैं या जिनका इलाज चल रहा है, वह नोटबंदी की वजह से दवाएं नहीं खरीद पा रहे हैं. ऐसे में उनकी स्थिति में सुधार नहीं हो रहा.