केंद्रीय महिला व बाल विकास मंत्री मेनका गांधी का कहना है कि उनके मंत्रालय की ओर से एेसा कानून
बनाने पर विचार हो रहा है जिससे हर शादी में एग्रीमेंट को जरूरी बना दिया
जाए. इसमें दोनों पार्टनर्स के बीच पहले से ही रजामंदी होगी कि कौन क्या जिम्मेदारी उठाएगा. अगर शादी टूटती है तो महिलाओं को गुजारे भत्ते के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा.
मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है कि यह करार लागू हो जाए तो देश में तलाक
के मामले अदालतों तक कम पहुंचेंगे और महिलाओं को पूरे हक मिलने से वे भी
घुट-घुट कर किसी रिश्ते को निभाने को मजबूर नहीं होंगी.
सरकार चाहती है कि यह भी पहले से तय हो जाए कि शादी टूटने पर कितना गुजारा भत्ता देना होगा और उस स्थिति में बच्चों की जिम्मेदारी किसकी होगी. महिला और बाल विकास मंत्रालय इस दिशा में काम शुरू कर चुका है. इस बाबत विमर्श पत्र तैयार हो चुका है और अब इस पर संबंधित पक्षों की राय ली जाएगी.
लेकिन समस्याएं हैं
महिला व बाल विकास मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि इस कानून को लागू करने में कई तरह की समस्याएं व दुविधाएं भी हैं. दरअसल हमारे देश में शादियां धार्मिक दायरे में आती हैं व अलग-अलग धर्मों के अलग कानून होने के चलते शादी को कॉन्ट्रैक्ट नहीं माना जाएगा. अभी भारतीय कॉन्ट्रैक्ट एक्ट में शादी के कॉन्ट्रैक्ट के कोई मायने भी नहीं हैं, इसलिए तमाम कानूनों में बदलाव करना होगा.