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‘पॉलिटिक्स ऑफ द वूंब’: मां की कोख अब बन चुकी है एक व्यापार

आईवीएफ बहुत ही पावरफुल है लेकिन उसके नकारात्मक पहलुओं को छिपा दिया जाता है. ये बताया ही नहीं जाता है कि इसके असफल होने का प्रतिशत कितना अधिक है. किसी औरत के लिए आईवीएफ आसान नहीं है. ये बेहद तकलीफदेह है.

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पॉलिटिक्स ऑफ द वूंब
पॉलिटिक्स ऑफ द वूंब

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आज के दौर में जब किराये की कोख पर बिल के चलते नए सिरे से बहस हो रही है, ‘पॉलिटिक्स ऑफ द वूंब’ (गर्भाशय की राजनीति) एक जरूरी किताब लगती है. मशहूर वकील, सोशल वर्कर और वुमन्स राइट्स एक्टिविस्ट पिंकी वीरानी की इस किताब में किराये की कोख और उससे जुड़े दूसरे अहम पहलुओं को गंभीरता से उठाया गया है.

पेंगुइन वाइकिंग पब्लिकेशन से छपी ये किताब अंग्रेजी में है. हालांकि हिंदी में वीडियो उपलब्ध हैं, जिसमें पिंकी ने अपने तर्क रखे हैं.

‘पॉलिटिक्स ऑफ द वूंब’ पिंकी की पांचवीं किताब है और ये कोख की राजनीति पर है. वो मानती हैं कि आईवीएफ के नाम पर कोख की राजनीति की जा रही है. जिसमें कोख को तो पूजनीय, वंदनीय दिखाया जाता है लेकिन औरत को ऐसे झटक दिया जाता है, जैसे उसका कोई अस्त‍ित्व ही न हो. ये बेहद अमानवीय है.

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पिंकी मानती हैं कि आईवीएफ बहुत ही पावरफुल है लेकिन उसके नकारात्मक पहलुओं को छिपा दिया जाता है. ये बताया ही नहीं जाता है कि इसके असफल होने का प्रतिशत कितना अधिक है. किसी औरत के लिए आईवीएफ आसान नहीं है. ये बेहद तकलीफदेह है. न सिर्फ बच्चे के पैदा होने तक बल्क‍ि उसके बाद भी. लेकिन इस ओर किसी का ध्यान ही नहीं जाता...इसी सोच को ध्यान में रखकर इस किताब का नाम रखा गया है.

पिंकी कहती हैं कि बहुत से लोगों के लिए सरोगेसी एक शो-ऑफ यानी दिखावा है. सरोगेसी का बॉलीवुडाइजेशन कुछ और नहीं बल्क‍ि एक बच्चे के जन्म का कमर्शियलाइजेशन है. लोगों के सामने इन बातों को बहुत नॉर्मल तरीके से दिखाने की कोशिश की जा रही है लेकिन ये सबकुछ इतना आसान है नहीं. इस किताब में IVF की उन्हीं बातों को लिखा गया है जिन्हें छिपाने की कोशिश की जा रही है.

किताब में कई औरतों की कहानियां हैं. उन पर गुजरने वाली मानसिक और शारीरिक तकलीफों को इस किताब में लिखा गया है. पिंकी साफ शब्दों में इसे ह्यूमन ट्रैफि‍किंग मानती है. सरोगेसी कुछ और नहीं बच्चा खरीदना है.

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