पिछले दिनों EPF निकालने पर टैक्स लगाने की बात पर खासा हंगामा हुआ था. हालांकि नौकरीपेशा क्लास का रोष देखते हुए सरकार ने अपने इस फैसले को वापस ले लिया.
हमारे देश में सोशल सिक्युरिटी के बारे में ज्यादा बात नहीं होती. यह वह सुरक्षा है जो हर इंसान ताउम्र कमाने के बाद बुढ़ापे की लाठी के तौर पर हाथ में चाहता है. दूसरे शब्दों में यह बचत और इन्वेस्टमेंट से मिलने वाली रकम है. यही वजह है कि सरकार जो फैसला लेने जा रही थी, उससे जनता में बढ़ी बेचैनी और फिर उसे वापस लेने के पीछे सरकार के तर्क ने इस मुद्दे को उठाना जरूरी बना दिया है.
रिटायरमेंट के दौरान हमें क्या बेनेफिट्स मिलेंगे और जो बातें हमें बताई जाती हैं, उनमें कितनी सचाई है आदि भ्रांतियों को भी दूर किया जाना आवश्यक है.
तो जानें इन बातों को और परखें अपनी सोशल सिक्योरिटी:
कितना कॉन्ट्रिब्यूशन है EPF
में
फाइनेंस मिनिस्ट्री की ओर से कहा
गया है कि ईपीएफ को मुख्य तौर पर
उन लोगों के लिए लाया गया था
जिनकी वैधानिक वेतन सीमा 15
हजार रुपये है. इसके अलावा करीब
60 लाख लोगों ने स्वेच्छा से इसके
लिए आवेदन किया और ये सभी
प्राइवेट सेक्टर में अच्छी-खासी
तनख्वाह पर काम कर रहे हैं.
7वें पे कमीशन की ओर से सरकारी
नौकरी वालों के लिए EPF की
वैधानिक वेतन सीमा न्यूनतम 18
हजार रुपये प्रति माह है.
मौजूद स्कीम 1995 में लाई गई
थी और यह लेने वाले व्यक्ति के
अलावा उसके जीवन साथी और दो
बच्चों को 25 साल की उम्र तक
पेंशन के फायदे देती है. इसके लिए
कोई और चार्ज भी नहीं देना पड़ेगा.
इसमें सुधार के लिए वेज सीलिंग को
हटाने और हर आय वर्ग के हिसाब से
इसमें बदलाव लाने जैसे कदम उठाए
जाने की जरूरत है.
EPF, PPF, NPS और
ELSS में इंवेस्टमेंट
EPF और NPS एक दूसरे की
प्रतियोगी स्कीम हैं लेकिन इनको
टैक्स बचाने के दायरे में रखने का
मतलब इन दोनों को ही नुकसान
पहुंचाना है. खासतौर पर EPF को.
15 हजार से ज्यादा कमाने वाले
EPF सदस्यों के पास ज्यादा स्कोप
न होने की वजह से उनके लिए
PPF में पैसा डालना ज्यादा सही
रहेगा. इसमें टैक्स में छूट के साथ
अपने मुताबिक पैसा निकालने की
सुविधा भी रहेगी.
वहीं ELSS (इक्विटी लिंक्ड सेविंग
स्कीम) पर टैक्स में छूट मिलती है.
लेकिन इसे भी अभी लोगों के लिहाज
से आसान किए जाने की जरूरत है.
EPF पर ज्यादा ब्याज दर
मार्केट में बराबरी के लिए EPFO
की दो वजहों से आलोचना की जाती
है. एक तो इसमें बराबरी के स्तर को
लाने जितने प्रयास नहीं किए गए हैं.
दूसरा यह है कि EPF पर मिलने
वाली ब्याज दर की बराबरी करने के
लिए बैंकों को भी सेविंग्स पर ज्यादा
ब्याज देना पड़ता है.
इस
वजह से इक्विटी मार्केट में बराबरी
नहीं आ पाती है.
EPFO के साथ क्या हो रहा है
पिछले कुछ वर्षों की रिपोर्ट्स देखने
पर समझ में आता है कि प्राइवेट
सेक्टर के लिए सामाजिक सुरक्षा का
भाव कहीं न कहीं उपेक्षित किया जा
रहा है. लेकिन जिन कंपनियों में
EPF से जुड़े मुद्दे जानने के लिए
लोग रखे गए हैं, वे इसमें अच्छा
प्रदर्शन कर रही हैं. इस प्रयासों की
सराहना भी हुई है.
वहीं आधार जैसी स्कीम आने से भी
इस योजना में सुधार हुआ है. लेकिन
इसकी अपनी कुछ कमियां हैं. एक तो
इसके साथ जुड़ने वाली कंपनियों की
संख्या में काफी इजाफा हुआ है
लेकिन उस हिसाब से काम करने
वालों की संख्या नहीं बढ़ाई गई. दूसरी
दिक्कत इसकी लिंकिंग से जुड़ी है.
तीसरी दिक्कत महज एक ही चीफ
एग्जिक्यूटिव ऑफिसर का होना है.
इन तमाम दिक्कतों के बावजूद
भारतीयों के लिए अच्छी बात यह है
कि स्वाधीनता के बाद से सोशल
सिक्योरिटी को लेकर कुछ काम तो
हुआ है. इसलिए EPF स्कीम लेने
वालों और तमाम कर्मचारियों को इस
दिशा में होने वाली नई बातों पर
ध्यान देना चाहिए. इसमें अच्छी बातों
की सराहना होनी चाहिए और खराब
पॉइंट्स की आलोचना. लेकिन आवाज
जरूर उठनी चाहिए क्योंकि अगर
सदस्य खुद अपनी परेशानी नहीं
बताएंगे तो उनके लिए आगे आने
वाला और कोई है ही नहीं.