IIM बेंगलुरु से पढ़ाई करने के बाद समीना बानो नौकरी करने के लिए अमेरिका चली गईं. एयर फोर्स अधिकारी की बेटी समीना के पास अमेरिका में अच्छी सैलरी वाली नौकरी थी.
कुछ दिनों तक नौकरी करने के बाद समीना को यह लगने लगा कि जिस मेहनत के साथ वो दूसरे देश के लिए काम कर रही हैं, क्यों न अपने देश के लिए करें. वहां की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने में करें.
साल 2012 में समीना अमेरिका छोड़ भारत लौट गईं. हालांकि उनके अभिभावक इस बात से हैरान थे कि इतनी अच्छी जिंदगी छोड़कर समीना भारत वापस क्यों आ गई.
तीन तलाक पर बहस के बीच बरेली में महिला ने दिया पति को तलाक
लेकिन समीना ठान लिया था. वो देश के लिए कुछ करना चाहती थीं. शिक्षा के क्षेत्र में कुछ करना चाहती थीं. इसके लिए उन्होंने बेंगलुरु और पुणे शहर को चुना. लेकिन दोस्तों ने जब सलाह दिया तो वो उत्तर प्रदेश आ गईं. यहां लखनऊ में किराए पर घर लेकर उन्होंने काम की शुरुआत की.
उत्तर प्रदेश में समीना की मुलाकात विनोद यादव से हुई, जिन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि की अच्छी जानकारी थी. समीना को विनोद यादव से बहुत मदद मिली.
समीना ने विनोद के साथ मिलकर 'भारत अभ्युदय फाउंडेशन' की स्थापना की और गरीब बस्ती में रहने वाले 50 बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया.
शादी के बाद सरनेम नहीं बदलना चाहतीं महिलाएं
समीना की कोशिशों का ही नतीजा था कि 18 महीने के भीतर ही उत्तर प्रदेश के 50 जिलों के 20 हजार गरीब बच्चों को 3 हजार प्राइवेट स्कूलों में दाखिला मिल गया.
लेकिन यह इतना आसान नहीं था. बड़े स्कूलों ने इसका विरोध किया. हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में 2 साल की लड़ाई के बाद आखिरकार समीना की जीत हुई और जिन सीटों पर सिर्फ 108 बच्चों को ही एडमिशन मिला था, साल 2015 तक उन पर समीना के प्रयासों के कारण 4400 गरीब बच्चों को एडमिशन मिला. साल 2016 तक यह आंकड़ा बढ़कर 15,646 तक चला गया.
ज्यादा सैलरी चाहती हैं तो छोड़ दें ये 5 आदतें