scorecardresearch
 

अब बेटियों के नाम से जाने जाएंगे इस गांव के घर

तीरिंग गाँव आदिवासी बहुल इलाका है. इस गांव में शिशु लिंग अनुपात काफी कम है और साक्षरता दर भी 50 प्रतिशत से कम है. गांव को एक नई दिशा देने के लिए और बेटियों को आगे बढ़ाने के लिए ही ये पहल की गई है.

Advertisement
X
बेटियां बनेंगी पहचान (सांकेतिक तस्वीर)
बेटियां बनेंगी पहचान (सांकेतिक तस्वीर)

Advertisement

जमशेदपुर के एक गांव में बेटियों को बढ़ावा देने के लिए एक खास और अनूठी मुहिम चलायी जा रही है. आमतौर पर घरों के बाहर लगी नेम-प्लेट पर घर के मुखिया यानी पिता का नाम होता है. लेकिन इस गांव में अब नेम-प्लेट पर बेटियों के नाम लिखे जा रहे हैं.

झारखण्ड सरकार ने जमशेदपुर के तीरिंग गांव से ये अनोखी पहल की है. सरकार की कोशिश है कि गांव के हर घर की पहचान उसकी बेटी के नाम से हो. मेरी बेटी, मेरी पहचान मुहिम को लेकर गांव के लोगों में भी काफी उत्साह है. तीरिंग गांव, झारखंड का ऐसा पहला गांव है, जहां हर घर के बाहर बेटियों के नाम वाली नीली-पीली नेम-प्लेट लगी हुई है. नेम-प्लेट के इन रंगों के चयन के पीछे एक सोच है. पीला रंग जहां नई सुबह से जुड़ा हुआ है वहीं नीला आसमान की ऊंचाई से.

Advertisement

तीरिंग गाँव आदिवासी बहुल इलाका है. इस गांव में शिशु लिंग अनुपात काफी कम है और साक्षरता दर भी 50 प्रतिशत से कम है. गांव को एक नई दिशा देने के लिए और बेटियों को आगे बढ़ाने के लिए ही ये पहल की गई है. फिलहाल इस गांव के 170 घरों के बाहर बेटी के नाम की नेम पलेट लगा दी गई है.

देश का पिछड़ा राज्य है झारखण्ड
झारखण्ड में आज भी कन्या भ्रूण हत्या जैसी घटनाएं बदस्तूर जारी हैं. लोग बेटों के लालच में अपनी अजन्मी बेटियों को गर्भ में ही मार डालते हैं. इसके लिए जितने जिम्मेदार मां-बाप हैं उतने ही वो डॉक्टर भी जो कुछ पैसों के लिए इस गैर-कानूनी काम को करते हैं.

Advertisement
Advertisement