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दो महिलाओं ने बदली गांव की किस्मत, अब कोई भूखा नहीं सोता...

काम करने की कोई उम्र नहीं होती और अगर इच्छाशक्ति हो तो कठिन राह पर चलकर भी मंजिल पाई जा सकती है. तेलंगाना के एक छोटे से गांव की इन बुजुर्ग महिलाओं ने ऐसा ही एक कारनामा कर दिखाया है....

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इन महिलाओं ने साबित किया, मेहनत का कोई तोड़ नहीं है...
इन महिलाओं ने साबित किया, मेहनत का कोई तोड़ नहीं है...

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देश के कई ऐसे हिस्से हैं जहां पर लोग सूखे और बेहाली का जीवन जीने के लिए मजबूर हैं. इन्हीं में से एक तेलंगाना का हसनाबाद गांव भी है. यहां बहुत मुश्किल से पैदावार होती है और उसका भी एक हिस्सा बिचौलिए ले जाते हैं. पैसों की किल्लत के चलते यहां के लोग मजदूरी करके अपना काम चलाते थे लेकिन अब यहां पर सबकुछ बदल रहा है.

अनाज बिक्री सीधी होने लगी है और लोगों को अपनी फसल के अच्छे दाम मिल रहे हैं. इस सफलता और मेहनत का श्रेय गांव की दो बुजुर्ग महिलाओं को जाता है.

2013 रखी गई इस कंपनी की नींव
इस गांव की दो बुजुर्ग महिलाओं 63 साल की नागम्मा और 35 साल की लक्ष्मी ने एक कंपनी बनाई हैं. तीन साल पहले कंपनी बनाई गई इस कंपनी का सालाना टर्नओवर दो करोड़ रुपये है. इस कंपनी की शुरुआत 2013 में की गई थी. नागम्मा और लक्ष्मी के साथ इस कंपनी को 800 और महिलाएं मिल कर चलता हैं. कंपनी की फाउंडिंग कमेटी में 15 महिलाएं हैं जिनमें से कुछ पढ़ी-लिखी हैं तो कुछ अनपढ़.

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कैसे आया इतना बड़ा बदलाव
पति की मौत के बाद से लगभग पिछले 20 साल से कंपनी की डायरेक्टर नागम्मा खेती करके अपना घर संभाल रही थीं. सूखे के कारण महीनों तक खेतों में जूझते रहने के बाद फसल तैयार होती है. ऐसे में बिचौलियों की वजह से ठीक दाम नहीं मिलते थे. इसके बाद जो पैसा आता था उससे घर चलाना, बच्चों की पढ़ाई और नई फसल के लिए बीज और खाद खरीदना सब बहुत मुश्किल हो जाता था.
दूसरी तरफ नागम्मा जैसी ही गांव की दूसरी महिला लक्ष्मी दूध बेचने का काम करती थी. पति की मजदूरी से घर नहीं चलता था. फिर साल 2012 में एक संगठन ने गांव से आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए कंपनी खोलने को कहा. बस उसी पल नागम्मा ने कंपनी खोलने का मना बना लिया. इस पहल में उनका साथ दिया लक्ष्मी ने, लेकिन इस बात के लिए उन्हें अपने पति से मार भी खानी पड़ी.

ऐसे तैयार किया गांव की महिलाओं को
लक्ष्मी को नागम्मा पर विश्वास था और इसलिए दोनों ने साथ काम करना शुरू किया और अपनी जैसी महिलाओं को कंपनी खोलने को तैयार करने लगीं. दोनों ने एक साल में 15 किमी दायरे के हर गांव में जाकर 15 महिलाएं को इकट्ठा किया और रजिस्ट्रेशन होने तक पूरी 60 महिलाएं उनसे जुड़ चुकी थीं.

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जब चिटफंड वाला समझकर लोग भगा देते थे
कंपनी के शुरुआत के दिनों में जब नागम्मा महिलाओं से कहती थीं कि हम कंपनी सरकार से लोन लेकर खोल रहे हैं और आप भी 100 रुपये देकर कंपनी मालिक बन सकती हैं, तो हमें चिटफंड वाला समझ कर भगा दिया जाता था. इस सबके बाद भी कंपनी में प्रोडक्शन से लेकर बिक्री तक का काम शुरू हुआ.
पहले साल दाल को खरीदने-बेचने का काम हुआ. कंपनी ने ना सिर्फ अपने मेंबर्स, बल्कि दूसरे किसानों से भी दाल खरीदी और बेची. ऐसा करने से बिचौलिए की जेब में जाने वाला कमीशन बचने लगा. पहले ही साल कंपनी को चार करोड़ रुपये सालाना का टर्नओवर मिला.

कंपनी से जुड़ी हर महिला की इनकम में हुई आठ फीसदी की बढ़ोत्तरी
कंपनी की सफलता को देखते हुए दूसरे ही साल 800 महिलाएं इस काम में जुड़ गईं. इनकी इनकम में औसत 8000 रुपये की बढ़ोत्तरी हुई है. हसनाबाद फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी में वह अपने सामान की पैकेजिंग से लेकर मार्केटिंग तक की खुद मालिक हैं. कंपनी के नाम पर ही बीज, पेस्टीसाइड्स, खाद और दूसरी दवाओं की डीलरशिप ली जाती है. इन महिलाओं की मेहनत और लगन से अब गांव में न सूखा है न ही कोई भूखा सोता है.

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