अपनी लेखनी से समाज के चेहरे को तार-तार कर देने वाले सआदत हसन 'मंटो' को पहले लोगों ने साहित्यकार मानने से इनकार कर दिया था. लेकिन पिछले 2 दशकों में मंटो पर खूब चर्चा हुई. आइए नज़र डालते हैं मंटो की कुछ 'बदनाम कहानियों' पर...
कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना ने मंटो को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ कहानीकार बताया था. मंटो ने भी रूसी कथाकार आंतोन चेखव की तरह अपनी कहानियों के दम पर अपनी पहचान बनाई.
भीड़, रेप और लूट की आंधी में कपड़े की तरह जिस्म भी फाड़े जाते हैं. हवस और वहश का ऐसा नज़ारा जिसे देखने के बाद खुद दरिंदे का सनकी हो जाने की कहानी है 'ठंडा गोश्त'.
कहते हैं नींद से बड़ा कोई नशा नहीं लेकिन भूख को इस बात से ऐतराज़ है. नींद के रास्ते में भूख पड़ती है. भूख चाहे जिस्म की हो या रोटी की जब तक बुझ ना जाए नींद तक पहुंचना मुश्किल होता है. रोटी पर जिस्मानी मशक्कत की कहानी है 'काली सलवार'.
उनके चाहने वाले कहते हैं कि भारत पाकिस्तान के बंटवारे के बाद मंटो पागल हो गए थे. उसी पागल दिमाग से निकली कहानी 'खोल दो' जो यथार्थ से दो-दो हाथ करती है.
जब ज़मीन पर खिंची लकीरें आपकी अक्ल और तन्कीद को अलग कर दें तो वो या तो पागल कहा जाता है या फिर 'टोबा टेक सिंह'.
रणधीर के पास सबकुछ था एक सुंदर बीवी, पैसा और शोहरत लेकिन उस कच्ची उमर की लड़की की शरीर की बू ने उसे असली सुख का एहसास दिलाया. मंटो की कहानी 'बू' भौतिकता की ज़मीन में छेद कर आपके खोखलेपन पर हंसती है...