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नए साल पर एक कविता, आपके लिए...

साल 2014 बीत गया, उम्मीदों का नया साल 2015 के दहलीज पर हम खड़े हैं. साल बदला है, लेकिन हाल नहीं बदला... बहरहाल, नया साल मुबारक

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साल बदला है तो आपको हो साल मुबारक,
हाल बदला नहीं वैसे तो, बहरहाल मुबारक।

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बीता जो साल आपको सालेगा सालों तक,
आया जो साल उसकी नई चाल मुबारक।

घर वापसी पे इतना क्यूं हंगामा है बरपा,
हम सब हैं भागवत के ही तो माल मुबारक।

हमें मालूम है अच्छे दिन की हकीकत लेकिन
दिल के खुश रखने को गालिब ये खयाल मुबारक।

मोदी जी को मिल गई बागडोर मुल्क की,
अपने ही बन गए जी का जंजाल मुबारक।

छह महीने में ही छक्के छूटे हैं आप के,
छक्का ना लगा दे ये केजरीवाल मुबारक।

वादों की लड़ी बन रही है पार्टी दफ्तर में,
दिल्ली के गंजे पाएंगे अब बाल मुबारक।

सत्ता के गलियारों में सफेदी की चमक है,
स्थाई तो नहीं है पर फिलहाल, मुबारक।

स्वच्छ भारत मिशन ब्रॉट टू यू बाय शिखर,
गुटखे की पीक से होगा सब लाल मुबारक।

पीके के पोस्टरों पर पिल बड़े हैं यूथिए,
आमिर को नए साल में बवाल मुबारक।

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शिकारी आएगा जाल बिछाएगा दाना डालेगा,
रट-रट के जो फंसते हैं उन्हें जाल मुबारक।

हौसले पहले हिनहिनाए फिर चुपचाप चल दिए,
जब गधों के हाथ लग गया घुड़साल, मुबारक।

समानता उपलब्धता पर इस हद तक है निर्भर,
है घर की मुर्गियों को भी अब दाल मुबारक।

रूपए और डॉलर में क्यों बनती नहीं कभी,
हमको भी हो करेंसी में उछाल मुबारक।

जो सिंगल हैं उन्हें डबल का खयाल मुबारक
जो डबल हैं उन्हें शब-ए-विसाल मुबारक।

रहने को तो हम साथ ही रहते थे, रहेंगे,
दरकार है हर पंछी को इक डाल मुबारक।

 

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