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शहीदों के सम्मान पर 1916 में लिखी यह कविता आज भी मौजूं है

पुलवामा हमले के बाद देश आक्रोश और दुख से घिरा हुआ है. हर नागरिक के अंदर राष्ट्रवाद की भावना का उफान जोरों पर है. देश की आंखें अपने शहीदों को याद कर नम है. ऐसे समय में जगदंबा प्रसाद मिश्र 'हितैषी' की कविता 'शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले' की याद लाजिमी है

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अमर जवान (  Getty Images )
अमर जवान ( Getty Images )

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पुलवामा हमले के बाद देश आक्रोश और दुख से घिरा हुआ है. हर नागरिक के अंदर राष्ट्रवाद की भावना का उफान जोरों पर है. देश की आंखें अपने शहीदों को याद कर नम है. लोग आतंकवादियों को किसी भी हालत में बख्शने के मूड में नहीं हैं. ऐसे समय में जगदंबा प्रसाद मिश्र 'हितैषी' की देशभक्ति में पगी यह रचना मौजूं है. हालांकि उन्होंने यह रचना 1916 में लिखी थी, पर समय भी सैनिकों को लेकर व्यक्त की गई इन भावनाओं को धुंधला नहीं पाया.

शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले

उरूजे कामयाबी पर कभी हिन्दोस्ताँ होगा

रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियाँ होगा

चखाएँगे मज़ा बर्बादिए गुलशन का गुलचीं को

बहार आ जाएगी उस दम जब अपना बाग़बाँ होगा

ये आए दिन की छेड़ अच्छी नहीं ऐ ख़ंजरे क़ातिल

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पता कब फ़ैसला उनके हमारे दरमियाँ होगा

जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे वतन हरगिज़

न जाने बाद मुर्दन मैं कहाँ औ तू कहाँ होगा

वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है

सुना है आज मक़तल में हमारा इम्तिहाँ होगा

शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले

वतन पर मरनेवालों का यही बाक़ी निशाँ होगा

कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे

जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमाँ होगा

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