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अंधियारों को लिख दे क़ैदी, सूरज पर जुर्माना कर दे: राकेश तूफ़ान की चार ग़ज़लें

भूखा है घर का मुस्तक़बिल, मुझको आबो-दाना कर दे...वैसे तो उत्तर प्रदेश एसटीएफ़ में डिप्टी एसपी के पद पर तैनात डॉ राकेश मिश्र खांटी पुलिस वाले हैं. वर्दी ही उनका मान और ईमान है, पर उनका मन साहित्य की गलियों में, शब्दों और कविताओं में, ग़ज़लों और नज़्मों में भी रमता है.

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प्रतीकात्मक इमेज [ Gettyimages]
प्रतीकात्मक इमेज [ Gettyimages]

वैसे तो उत्तर प्रदेश एसटीएफ़ में डिप्टी एसपी के पद पर तैनात डॉ राकेश मिश्र खांटी पुलिस वाले हैं. वर्दी ही उनका मान और ईमान है, पर उनका मन साहित्य की गलियों में, शब्दों और कविताओं में, ग़ज़लों और नज़्मों में भी रमता है. मिश्र का लेखकीय नाम राकेश तूफ़ान है. पढ़िए उनकी चार ग़ज़लें:

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1.
सबके दुःख में शामिल होकर सबका होना पड़ता है,
अपनी हस्ती को पाने में ख़ुद को खोना पड़ता है.

उलझन के संग बैठे-बैठे पहरों रोना पड़ता है,
इसकी चाहत दिल में रखके उसका होना पड़ता है.

साहिल पर ही बैठे-बैठे सोचो चाहे जो लेकिन,
सागर से मिलने की ख़ातिर दरिया होना पड़ता है.

शोहरत की बहकी राहों से तुम भी घर आ जाओगे,
दिन ढलते ही सूरज को भी जाकर सोना पड़ता है.

हम फूलों से चेहरे वाले, मरहम जैसी तबियत है,
ज़ख़्मों की ख़ातिर तो भाई नश्तर होना पड़ता है.

2.
इतना तो शुकराना कर दे,
मुझको तू दीवाना कर दे.

क़ातिल हैं तो जा फिर उसकी,
आंखों पर.....जुर्माना कर दे.

बातों से...बनती हैं बातें,
बातों को अफ़साना कर दे.

वो जो नहीं तो कैसा गुलशन,
गुलशन को....वीराना कर दे.

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भूखा है घर का मुस्तक़बिल,
मुझको आबो-दाना कर दे.

झूमे धरती... अम्बर गाये,
हर शय को रिन्दाना कर दे.

अंधियारों को लिख दे क़ैदी,
सूरज पर जुर्माना कर दे.
 
3.
सब चराग़ों पे हवा भारी है,
अब सितारों पे ज़िम्मेदारी है.

नफ़रतों का हुजूम फैला है,
सल्तनत ये कहां हमारी है.

टूट के थक गया हूं मैं लेकिन,
हौसलों की उड़ान जारी है.

हमने कांधों पे दिन उठाया है,
रात आंखों में ही गुज़ारी है.

सब पे कुदरत ने क़हर ढाया है,
सबने फिर आरती उतारी है.


4.
कभी ईमान की बातें, कभी किरदार की बातें,
चलो, छोड़ो, हटो, करने लगे बेकार की बातें.

बताने लग गयी हैं अस्ल क़ातिल को मसीहा ये,
भरोसे के कहां क़ाबिल रहीं अख़बार की बातें.

न जाने कितने ही रिश्तों को बेघर कर चुकी हैं ये,
हमारे घर की चौखट पे खड़ी बाज़ार की बातें.

सियासी हो गए हो तुम, लगे करने सलीक़े से,
इधर आवाम की बातें, उधर सरकार की बातें.

तमामी नफ़रतों पर गुफ़्तगू की उम्र भर अब तो,
चलो, आओ, करें, थोड़ी वफ़ा-ओ-प्यार की बातें.

 

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