कवि-पत्रकार चेतन आनंद का दस्तावेजी नाम राजेश कुमार सेठी है. डॉ कुंअर बेचैन के अनन्य शिष्य रहे आनंद मंच के सम्मानित नाम हैं. उनका एक गीत संग्रह, ग़ाज़ियाबाद की ऐतिहासिक धरोहर और 'तुम्हारी याद' के नाम से एक ऑडियो-वीडियो सीडी जल्द ही आने को तैयार है.
'काव्य-गंगा' नाम से नवोदित कवियों व शायरों को सार्थक मंच देने का प्रयास करने वाले चेतन आनंद काव्य कुमार सम्मान, काव्य-गौरव सम्मान, प्रतिष्ठा पुरस्कार, साहित्यश्री, हिन्दी साहित्य साधना, ओएनजीसी द्वारा हिन्दी साहित्य सेवा पुरस्कार, आगमन संस्था के दुष्यंत कुमार सम्मान आदि से नवाजे जा चुके हैं.
उन्होंने कश्मीर से धारा 370 के हटाए जाने और उन्नाव कांड के बाद ये दो गीत लिखेः
1.
दुश्मन जितना ज़ोर लगा ले
दुश्मन जितना ज़ोर लगाले,
बेमतलब के प्रश्न उछाले,
भारत के सूरज का मस्तक, कभी नहीं झुकने देंगे,
यह विकास का रथ है, इसको कभी नहीं रुकने देंगे.
केसरिया पगड़ी मत छेड़ो,
शीशमुकुट है भारत की,
कुदरत में भगवान बसे हैं,
ये है जगह इबादत की,
आँख उठाई अगर कहीं तो
आँख फोड़ दी जाएगी,
उँगली मत दिखलाना, वरना
यहीं तोड़ दी जाएगी,
लेकर चले तिरंगा सैनिक, इन्हें नहीं थकने देंगे,
भारत के सूरज का मस्तक, कभी नहीं झुकने देंगे.
प्रेम-शाँति के वाहक हम हैं,
लोकतंत्र के रक्षक हम,
लाख कोशिशें करो, मगर ये-
नहीं रुकेंगे कभी क़दम,
हम मर्यादा राम के वंशज,
कृष्ण हमारे पालक हैं,
हम ही विवेकानंद के जाये,
परमहंस संचालक हैं,
नफ़रत की हंडिया में खिचड़ी, और नहीं पकने देंगे,
भारत के सूरज का मस्तक, कभी नहीं झुकने देंगे.
ग़लत इरादों से क्या धरती-
ज़हरीली हो जाएगी,
तुम जो चाहोगे, नफ़रत के-
गीत धरा ये गाएगी,
इसके कण-कण वीर बसे हैं,
पग-पग पर हुँकार यहाँ,
होंठों पर मुस्कान बसी है,
दिल में सबके प्यार यहाँ,
अपने देश को हम दुश्मन की नज़र नहीं लगने देंगे,
भारत के सूरज का मस्तक, कभी नहीं झुकने देंगे.
2.
धरा पूछती है, गगन पूछता है
धरा पूछती है, गगन पूछता है,
कली पूछती है, सुमन पूछता है,
बताओ-बताओ दरिन्दों यूँ कबतक-
नई कोंपलों को मसलते रहोगे,
नयन मूँदकर तुम तिमिर की डगर पर-
भटकते-भटकते यूँ चलते रहोगे.
अभी निर्भया की कहानी सुनी थी,
कलेजों को उन्नाव ने चीर डाला,
नई रोशनी को अँधेरों ने छीना,
अकेले में सिर धुन रहा है उजाला,
बताओ हवस के हथौड़ों से कबतक-
नई तितलियों को कुचलते रहोगे,
बताओ-बताओ दरिन्दों यूँ कबतक-
नई कोंपलों को मसलते रहोगे।1।
हिमा दास, ऊषा, बबीता, सरीखी,
सिया, राधिका, सानिया भी न दीखी,
प्रियंका, सुमेधा, सुनयना गँवा दीं,
जो प्रतिभाएँ भावी थीं, तुमने जला दीं,
अरे संकुचित सोच के कायरों तुम,
यूँ कबतक जलाते या जलते रहोगे,
बताओ-बताओ दरिन्दों यूँ कबतक-
नई कोंपलों को मसलते रहोगे।2।
यूँ क़ानून लाचार कबतक रहेगा,
ये सच्चाई कबतक पराजित रहेगी,
गहन चुप्पियाँ बोलती क्यों नहीं हैं,
हृदय-वेदना और कितना सहेगी,
सवालों के कबतक चमकदार भ्रम से,
जवाबों स्वयं को ही छलते रहोगे,
बताओ-बताओ दरिन्दों यूँ कबतक-
नई कोंपलों को मसलते रहोगे।3।
सितारे भी आँसू बहाने लगे हैं,
दिवाकर सुबकने लगा आज देखो,
समुन्दर की लहरें सिसकने लगी हैं,
हिमालय का हिलने लगा ताज देखो,
नई चेतना के सवेरों उगो फिर,
यूँ कबतक भला हाथ मलते रहोगे,
बताओ-बताओ दरिन्दों यूँ कबतक-
नई कोंपलों को मसलते रहोगे।4।
हमीं चंडिका, देवी, दुर्गा, भवानी,
बताओ ज़माने को अब तो बताओ,
दरिन्दों के आगे यूँ झुकना भी छोड़ो,
ज़रा उनकी आँखों से आँखें मिलाओ,
अँधेरों में लुट-लुटके कबतक अकेले,
निराशा में खुद को बदलते रहोगे,
बताओ-बताओ दरिन्दों यूँ कबतक-
नई कोंपलों को मसलते रहोगे।5।