चांद अंगड़ाइयां ले रहा है चांदनी मुस्कुराने लगी है... की कहानी हम भारतीयों के लिए हमेशा के लिए बदल जा रही है. कवि अब उतनी मासूमियत से चांद पर साहित्य नहीं गढ़ सकेंगे. शायरी, कविताओं और कहानियों में रचनाकारों की कल्पना का चांद हमारे वैज्ञानिकों द्वारा बनाई गई मशीन से भेजे गए चित्र से बिल्कुल अलग दिख रहा है. फिर आज तो हमारे चंद्रयान की छाप भी चंद्रमा पर पड़नी है. ऐसे में मुक्तिबोध का 'चांद का मुंह टेढ़ा' है जैसे शीर्षक व घर- घर गूंजने वाली लोरी- चंदा मामा दूर के, पुए पकाएं पुरके, आप खाएं थाली में मुन्ने को दें प्याली में...आगे से बमुश्किल ही सृजित हो पाए.
उर्दू शायरी में तो चांद और महबूब की न जाने कितनी अनगिन उपमाओं, तुलनाओं और साम्य से भरी पड़ी है. ऐसे में जब भारत का चंद्रयान-दो चंद्रमा पर है, तब साहित्य आजतक पर पढ़िए चांद पर सृजित ये दो बेहद लोकप्रिय रचनाएं. एक इब्न-ए-इंशा की है तो दूसरी परवीन शाकिर की...
1.
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा
कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा
हम भी वहीं मौजूद थे हम से भी सब पूछा किए
हम हँस दिए हम चुप रहे मंज़ूर था पर्दा तिरा
इस शहर में किस से मिलें हम से तो छूटीं महफ़िलें
हर शख़्स तेरा नाम ले हर शख़्स दीवाना तिरा
कूचे को तेरे छोड़ कर जोगी ही बन जाएँ मगर
जंगल तिरे पर्बत तिरे बस्ती तिरी सहरा तिरा
हम और रस्म-ए-बंदगी आशुफ़्तगी उफ़्तादगी
एहसान है क्या क्या तिरा ऐ हुस्न-ए-बे-परवा तिरा
दो अश्क जाने किस लिए पलकों पे आ कर टिक गए
अल्ताफ़ की बारिश तिरी इकराम का दरिया तिरा
ऐ बे-दरेग़ ओ बे-अमाँ हम ने कभी की है फ़ुग़ाँ
हम को तिरी वहशत सही हम को सही सौदा तिरा
हम पर ये सख़्ती की नज़र हम हैं फ़क़ीर-ए-रहगुज़र
रस्ता कभी रोका तिरा दामन कभी थामा तिरा
हाँ हाँ तिरी सूरत हसीं लेकिन तू ऐसा भी नहीं
इक शख़्स के अशआ'र से शोहरा हुआ क्या क्या तिरा
बेदर्द सुननी हो तो चल कहता है क्या अच्छी ग़ज़ल
आशिक़ तिरा रुस्वा तिरा शाइर तिरा 'इंशा' तिरा.
- इब्न-ए-इंशा
2.
पूरा दुख और आधा चाँद
पूरा दुख और आधा चाँद
हिज्र की शब और ऐसा चाँद
दिन में वहशत बहल गई
रात हुई और निकला चाँद
किस मक़्तल से गुज़रा होगा
इतना सहमा सहमा चाँद
यादों की आबाद गली में
घूम रहा है तन्हा चाँद
मेरी करवट पर जाग उठ्ठे
नींद का कितना कच्चा चाँद
मेरे मुँह को किस हैरत से
देख रहा है भोला चाँद
इतने घने बादल के पीछे
कितना तन्हा होगा चाँद
आँसू रोके नूर नहाए
दिल दरिया तन सहरा चाँद
इतने रौशन चेहरे पर भी
सूरज का है साया चाँद
जब पानी में चेहरा देखा
तू ने किस को सोचा चाँद
बरगद की इक शाख़ हटा कर
जाने किस को झाँका चाँद
बादल के रेशम झूले में
भोर समय तक सोया चाँद
रात के शाने पर सर रक्खे
देख रहा है सपना चाँद
सूखे पत्तों के झुरमुट पर
शबनम थी या नन्हा चाँद
हाथ हिला कर रुख़्सत होगा
उस की सूरत हिज्र का चाँद
सहरा सहरा भटक रहा है
अपने इश्क़ में सच्चा चाँद
रात के शायद एक बजे हैं
सोता होगा मेरा चाँद
- परवीन शाकिर