देश डिजिटल इंडिया की राह पर आगे बढ़ रहा है, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कविताओं के पाठक भला कैसे पीछे रहते. आखिर उन्हें भी तो डिजिटल क्रांति का साक्षी रहना है. तो हो गई शुरुआत.. पीएम ने विश्व कविता दिवस पर अपनी कविताओं की ई-बुक लॉन्च की और इसकी जानकारी अपने करोड़ों चाहने वालों को ट्वीट कर दी खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दी.
I have occasionally penned my thoughts through poetry. The book ‘Sakshibhav’ is a collection of some of the works. https://t.co/5viOHLGkvp
— Narendra Modi (@narendramodi) March 21, 2017
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कविताएं अब आप मोबाइल टैब और लैपटॉप पर भी पढ़ सकेंगे. मोदी ने विश्व कविता दिवस पर अपनी लिखी कविताओं का संग्रह 'साक्षीभाव' को ई-बुक के रूप में जारी कर दिया है. ये कविताएं सालों के उनके संघर्ष के दौरान लिखी गई हैं. ये एकालाप नहीं बल्कि संवाद की तरह हैं परमशक्ति जगतजननी मां के साथ संवाद. अपने दुख, खुशी, उत्साह, आस-निराशा और मन में उमड़ते-घुमड़ते विचारों को मां के साथ साझा करते मोदी. तब प्रधानमंत्री नहीं थे लिहाजा ज्यादा सहजता से उन्होंने अपने विचार कविताओं में प्रवाहित किये.
इसमें मूल रूप से गुजराती मे लिखी गई कविताएं हैं. प्रभात प्रकाशन ने पीएम की कविताओं का संग्रह प्रकाशित किया दो साल पहले. इनका अनुवाद हिंदी में किया गया. 'साक्षीभाव' नामक संग्रह बाजार में आया. अब इसकी ई-बुक भी आ गई है. 1986 में संघ के प्रचारक बने तो नये उत्तरदायित्व को लेकर भी ऊहापोह दिखा उनकी कविता में.
'मां, क्या मैं इन अपेक्षाओं को पूरा कर सकूंगा?क्या वास्तव में जिस आशा आकांक्षा और विश्वास के साथ मुझे ये काम सौंपा गया है उसे पूरा कर सकूंगा?कठोर परिश्रम करकेअपने आपको इसके लिए तैयार कर सकूंगा...'प्रभात प्रकाशन के प्रमुख प्रभात कुमार के मुताबिक पीएम ने विश्व कविता दिवस पर ई-बुक का आगाज कर कविता को नया सम्मान दिया है. अब पाठक आज के जमाने के साथ नरेंद्र भाई की कविताओं का आनंद ले सकेंगे. उनके साथ अपने विचारों को एकाकार कर सकेंगे, क्योंकि नरेंद्र भाई की कविताएं सामान्य धरातल पर भावुक सोच का प्रतिनिधित्व करती हैं.
हर व्यक्ति इन परिस्थितियों में ऐसा ही सोचता है. महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की लिखी 'राम की शक्ति पूजा' में राम भी कमल का फूल कम पड़ने पर कुछ ऐसे ही सोचते हैं. यानी कालजयी कविताएं अब कालजयी माध्यम से पाठकों तक पहुंच गई हैं.
शब्द तब भी यही थे और अब देखो तो लगता है कितने सटीक थे, आज के लिए भी...
'मां, मैं जानता हूं इस शरीर को अब एक नये रंगमंच पर ले जाना हैनये रंगमंच के अनुरूप इसकी साज सज्जा करनी है,मन, बुद्धि, हृदय -- शरीर के इन सब अंगों को अब इस नये रंगमंच के अनुरूप ढालना है. 'और दिसंबर 1986 का ये आत्मचित्रण देखकर भी लगता है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद भी कुछ बदला नहीं है...
'मां, तेरी कैसी अजब कृपा हैदेख न, चार दिन हो गयेभोजन और नींद दोनों ही उपलब्ध नहींकिसी परिस्थिति के कारणतो कुछ किसी निर्णय के कारणफिर भी थकान जैसा कुछ लगता नहीं है. अरे, कल की रात तोनिपट नींद के बिना ही बिताई फिर भी प्रसन्नता का अनुभव करता हूं. सच में, यह सब तेरी कृपा के बिना संभव है क्या?'मां के साथ हृदय विचार और मन को साझा करते मोदी कविताएं अब शायद कम लिख पाते हों, लेकिन विचार यही रहते होंगे. भले ही आप इसे डिजिटल मोड में पढ़ेंगे सुनेंगे और गुनेंगे, लेकिन दिल दिमाग और विचार कभी डिजिटल नहीं होते ये तो वैसे ही धड़कते, उमड़ते और घुमड़ते हैं.