'एक और प्रार्थना', 'छूटता हुआ घर' और 'कविता और कविता के बीच' जैसे संकलनों से हिंदी कविता के हलके में भी अपनी छाप छोड़ने वाले सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रकाश मनु की तीन कविताएं
1.
यह घर
प्रकाश मनु
यह घर नहीं है किसी
लड़ाई में शामिल
इसने नहीं बहाया रक्त...
नहीं किया पददलित किसी को.
आए क्षत्रप
चमकदार ताज पहने बड़े-बड़े सूरमा
राजे बड़े-बड़े दिल बहादुर, दिल्लेशाह...
घोड़ों के पैरों से रौंदते धरा!
इसने देखा और सरककर एक तरफ खड़ा हो गया.
आए विश्वविजयी सिकंदर जैसे
पागल बाँकुरे
भूख से बेहाल...
मानो सारी दुनिया को खाएँगे.
इसने देखा और फिर उचटती एक नजर डाल,
बच्चों के लिए स्वेटर बुनने, फंदे डालने
रात के भोजन, गरमाइश और नन्हे बच्चों के लिए दूध
के इंतजाम में जुट गया.
इसने नहीं लिखा इतिहास,
बनाया तो कतई नहीं
कतई नहीं किया रक्तपात किसी सत्ता-संघर्ष में...
मगर क्या सचमुच?
अलबत्ता
जब-जब इसके धीरज की सीमा टूटी है
और जुल्मी के पैर गए हैं खड़िया के घेरे के बाहर...
तब-तब कुछ हुआ है!
ऐसे में सुनो
इसके भीतर की शांत गुर्राहट...
और देखो कि एक घर और दूसरे घर की आवाजें मिलकर
कैसे एक तीखी गड़गड़ाहट में बदलती हैं!
और यह गड़गड़ाहट जो पागल नहीं है
भीतर के सारे जोर के बावजूद...
जब चपतियाती है तो बड़े-बड़े पागल सूरमा विश्वविजयी
जमीन पर लोटते नजर आते हैं
पहचानो...
वो रहे उनके चमकते हीरक-जड़े स्वर्ण मुकुट!
तब यह नहीं कि ठहाका लगाकर हँसता हो
यह घर
नहीं पीठ ठोंकता अपनी कभी उत्साह में
कि जैसे जानता हो कि यह है वीरों की रीति नहीं.
सिर्फ चुपचाप
उचटती नजर एक डाल भू-लुंठित महानों पर...
बच्चों के लिए
स्वेटर के फंदे डालने सलाइयाँ बुनने
शाम की दाल-रोटी
और गरमी और उजाले की चिंताओं
में लग जाता है!
और यों यह घर
किसी इतिहास में शामिल नहीं
नहीं किया इसने कोई रक्तपात...
नहीं बहाया रक्त—और सदियों की तेज उथल-पुथल
और भूकंपों की मार में
एक ही जगह ठहरा सा
अपनी चाल से चलता जाता है.
***
2.
हिंदी के लिए एक कविता जैसा कुछ
हिंदी दिलों की भाषा है आत्मा की सनातन बानी
हिंदी है हमारे पुरखों का कोठार हिंदी हृदय है इस महादेश का
जिसमें बसते हैं सवा सौ करोड़ जन
और उनके हँसने-रोने, गाने और गुनगुनाने का जादुई अरथ भी
हिंदी धुरी है जिंदगी की कठिनतम लड़ाइयों की
हिंदी रोज-रोज के दुख-दरद, उच्छ्वास और फटे हुए
आँसुओं की भट्ठी
जो रोज अपनी आँच में तचाकर हमें कर देती है
बज्र से अधिक मजबूत
हिंदी है रात-दिन निरंतर दौड़ रहे एक विशालकाय रथ
के पहिए की गुंजार
हिंदी एक विराट स्वप्न और इच्छाओं का आकाश
जिसका ओर-छोर कोई आज तक नाप पाया ही नहीं
हिंदी चिड़ियों की चह-चह है हिंदी पत्तों की मर-मर
हिंदी गरीब की रोटी और रोजी है हाजीपुर के अवधू रिक्शे वाले
की फटी बनियान से चमकता पसीना
हिंदी रामू पुताई वाले के चूने सने हाथों और सादा सी कूँची
से उपजी दीवारों की सफेदी है
दीवाली के दीयों की झलर-मलर हँसी
होली का धूल सना अबीरी हुल्लड़ और टेसू की महकती शाम
हिंदी हमारी और हम सबकी प्यारी भारत माँ
के दुक्खों की बोली है
जिसमें आँसू भी हैं दुख कराह सिसकियाँ और सुच्चे
मोतियों सी हँसी भी
हिंदी रोली है बहना का प्यार, चंदन और अबीर दोस्ती का
हिंदी जिंदगानी है खेत-खलिहानों की जिंदादिल भाषा
जिसकी धूल भी गाती-गुनगुनाती है
हिंदी कबीर का करघा मीरा के पदों की अनवरत पुकार है
हिंदी सुराज की तकली और चरखा है खादी और खुद्दारी है
हिंदी लोकगीतों का पलना है लोककथाओं की मीठी
शहदीली उड़ान वाली सप्तरंगी पाँखी
वह अटकती, कहीं भटकती भी हो अगर, तो उस पर हँसना
खुद अपनी माँ की मैली, फटी हुई साड़ी उधड़ी चोली की शर्म
पर निरलज्ज होकर हँसना है
हिंदी तुलसी की मर्यादा है, सूर के रसभीने पदों की बोली-बानी
हिंदी जनता के फटेहाल महाकवि निराला की खुद्दारी
की भाषा है जिसकी पूरी जिंदगी लड़ते हुए बीती
हिंदी प्रेमचंद के किरमिच के फटे जूतों से झाँकती
मैली उँगली है पैर की
जिस पर नजर आ जाता है हिंदी लेखक की
अनाम पीड़ाओं का इतिहास
कि इस महादेश के सवा सौ करोड़ परानियों के जीने मरने हँसने और
रोने की भाषा है हिंदी
हिंदी उनके होने का आईना उनकी जिंदगी का पर्याय है
हिंदी बिना दीवारों वाला घर है
जिसमें रहते हैं अनगिनत मेहनतकश लोग अपने दुख-दर्द
माथे पर चुहचुहाते पसीने और बेअंत परेशानियों के साथ
हिंदी मिट्टी में साँस लेती लुहार की धौंकनी है कुम्हार का चाक
हिंदी है गोमुख जिससे निकलकर महा समुद्र की लहरों सरीखे
उच्छल ऊर्जित करोड़ों लोग
बढ़ा देते हैं रोज एक कदम और आगे पूरी आश्वस्ति से
और समय का महाभारत लिखता है रोज एक नया मन्वंतर
हिंदी है इक्कीसवीं सदी का नया अर्थ जो इस महादेश
की नाभि से निकला है
प्रभात सूर्य की किरणों में नहाए नीलोत्पल सरीखा
हिंदी है झोंपड़पट्टी के सात बरस के बिरजू की झिझकती कलम
जिससे नए युग की रामायण और नया समय रचा जाना है...
हिंदी है पाँच बरस की एक छोटी सी बच्ची रजिया के हाथ का ब्रश
जिससे अभी-अभी लिखा गया है स्वागतम्
और धूप में चमकते हैं उसके गीले सतरंगी आखर
हिंदी को एक दिन गाजे-बाजे से मनाने की दरकार नहीं दोस्तो
हिंदी तो रोज-रोज है हर दिन हर पल हर साँस
की लय और बेखुदी में
हिंदी हर पल धड़कती है हममें
हिंदी माँ है हमारे होने का मतलब...
हिंदी जिंदगी है और जिंदगियों के पार
की जिंदगी भी
जिसे मानी देते हैं करोड़ों करोड़ लोग अपने गुट्ठिल हाथों से
***
3.
नन्ही किट्टू के लिए एक प्रभाती
उठो मेरी प्यारी किट्टू, उठो और जरा आखें खोलो
देखो तो बाहर कितना उजला सा सबेरा है
द्वार पर झन-झन करती किरणें सूरज की दस्तक दे रही हैं
चिड़ियाँ किट्टू-किट्टू कहकर प्यार से पुकारती हैं तुम्हारा नाम
हवा तुम्हारे माथे पर बिखरे बालों से खेलती
अचानक खिलखिलाकर हँस पड़ी है
लो, अभी-अभी फिर किसी ने पुकारा तुम्हारा नाम
लो, अभी-अभी फिर किसी ने आवाज दी है
किट्टू, किट्टू, मेरी प्यारी किट्टू-हवा में गूँजता है तुम्हारा नाम
शायद एक नन्ही सी चंचल गौरैया आई है तुम्हें उठाने
उठो प्यारी किट्टू, उठो और जरा आँखें खोलो
सूरज काका तुम्हें बाँहों के झूले पर झुलाने के लिए आ गए
पापा एक मखमली ऊँटनी लाए हैं तुम्हें घुमाने के लिए
उठो और जरा बैठकर उस पर एक चक्कर
लगाओ तो प्यारी छुटकू
मम्मी ने गोटे वाली ओढ़नी बनाई है खुद अपने हाथों से
पहनो और जरा नदी के पानियों में देखो तो अपनी परछाहीं
जरा देखो तो, द्वार पर खड़ा घोड़ा हिन-हिन करके स्वागत गान
गा रहा है भला किसके लिए
भूरी कुतिया पूँछ उठाकर पूछती है बार-बार—क्या जागी नहीं किट्टू,
कब आएगी वह मेरे साथ खेलने?
चंचल गौरैया पूछती है, किट्टू मेरे साथ तो जरूर खेलेगी ना?
उठो और खेलो लाडली किट्टू, रोज-रोज के अपने प्यारे दोस्तों से
उठो, सब तुम्हारे लिए द्वार पर बैठे हैं
उठो और खेलो
उनके साथ दौड़ो, उछलो-कूदो और यों ही गुलगपाड़ा मचाते हुए
अचानक छुपमछुपाई वाले किसी परदे में छिप जाओ
और वहीं से आवाज लगाओ कि जरा ढूँढ़ो तो मुझे, मैं यहाँ...!
उठो मेरी प्यारी किट्टू, उठो और जरा आखें खोलो तो सही
देखो ये सबके सब तुम्हारे लिए आकुल हैं
देखो तो जरा किस-किस को प्रतीक्षा है तुम्हारी
किस-किस ने आतुर होकर पुकारा तुम्हारा नाम
आओ जरा देखो तो बाहर कौन-कौन हैं तुम्हारे इंतजार में
आओ और देखो तो जरा कि यह भोर का नरम-नरम सा
मखमली उजाला,
यह ओस धुली फूलों की हँसी
यह कोयल की कूक और तितली की बाँक भरी मुसकान
तुम्हारे, बस तुम्हारे लिए हैं
चिड़ियाँ बस तुम्हारे लिए गा रही हैं सुरीली भोर के गान
फूल खिले हैं बगिया में तुम्हारे, बस तुम्हारे लिए...
उठो, उठो, मेरी प्यारी बच्ची, जरा आँखें खोलो,
कि एक नई सुबह सज-धजकर और गुलाबी फ्रॉक पहनकर
आई है तुम्हारे पास, जैसे कोई पुरानी सहेली हो तुम्हारी
उठो और मुसकराकर उसका स्वागत करो...
उठो और हँसो और हँसो
और हँसी-खुशी से भर दो झोली
कि दुनिया की सब खुशियाँ तुम्हारे, बस, तुम्हारे लिए हैं
मेरी नन्ही प्यारी किट्टू।
जरा उठो और आँखें खोलो प्यारी किट्टू,
कि बाहर कितना खिला-खिला सा उजला सवेरा
तुम्हारा इंतजार कर रहा है
बुला रही हैं तुम्हें चिड़ियाँ—
नन्ही शैतान तुम्हारी दोस्त सहेलियाँ
बुला रही भूरी कुतिया
बुला रहे लॉन में उगे हँस-हँस पड़ते गेंदे और गुलाब...!
उठो मेरी प्यारी किट्टू
उठो और आँखें खोलकर देखो तो जरा
सुबह का यह अलमस्त नजारा।
***
वरिष्ठ साहित्यकार प्रकाश मनु 12 मई, 1950 को उत्तर प्रदेश के शिकोहाबाद में जन्मे. उनका मनु का मूल नाम चंद्रप्रकाश विग है. आपने आगरा कॉलेज से भौतिक विज्ञान में एम.एस-सी. की डिग्री हासिल की, पर साहित्यिक रुझान ने उनके जीवन का ताना-बाना बदल दिया. 1975 में आपने हिंदी साहित्य में एम.ए. किया और 1980 में यूजीसी की फेलोशिप के तहत कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से 'छायावाद एवं परवर्ती काव्य में सौंदर्यानुभूति' विषय पर शोध किया. मनु अब तक शताधिक रचनाओं का सृजन कर चुके हैं. कुछ वर्ष प्राध्यापक रहे और फिर लगभग ढाई दशक तक बच्चों की लोकप्रिय पत्रिका 'नंदन' के संपादन से जुड़े रहे. फिलहाल प्रसिद्ध साहित्यकारों के संस्मरण, आत्मकथा तथा बाल साहित्य से जुड़ी कुछ बड़ी योजनाओं पर काम कर रहे हैं.
आपकी प्रकाशित पुस्तकों में उपन्यास: यह जो दिल्ली है, कथा सर्कस, पापा के जाने के बाद, कहानियाँ; अंकल को विश नहीं करोगे, सुकरात मेरे शहर में, अरुंधती उदास है, जिंदगीनामा एक जीनियस का, तुम कहाँ हो नवीन भाई, मिसेज मजूमदार, मिनी बस, दिलावर खड़ा है, मेरी श्रेष्ठ कहानियाँ, मेरी इकतीस कहानियाँ, 21 श्रेष्ठ कहानियाँ, प्रकाश मनु की लोकप्रिय कहानियाँ, मेरी कथायात्रा: प्रकाश मनु, मेरी ग्यारह लंबी कहानियाँ, जीवनी; जो खुद कसौटी बन गए, आत्मकथा; मेरी आत्मकथा: रास्ते और पगडंडियाँ. हिंदी के दिग्गज साहित्यकारों के लंबे, अनौपचारिक इंटरव्यूज की किताब 'मुलाकात' बहुचर्चित रही. 'यादों का कारवाँ' में हिंदी के शीर्ष साहित्कारों के संस्मरण. देवेंद्र सत्यार्थी, रामविलास शर्मा, शैलेश मटियानी, रामदरश मिश्र तथा विष्णु खरे के व्यक्तित्व और साहित्यिक अवदान पर गंभीर मूल्यांकनपरक पुस्तकें. साहित्य अकादेमी के लिए देवेंद्र सत्यार्थी और विष्णु प्रभाकर पर मोनोग्राफ. सत्यार्थी जी की संपूर्ण जीवनी 'देवेंद्र सत्यार्थी: एक सफरनामा' प्रकाशन विभाग से प्रकाशित. इसके अलावा 'बीसवीं शताब्दी के अंत में उपन्यास: एक पाठक के नोट्स' आलोचना में लीक से हटकर एक भिन्न ढंग की पुस्तक.
हिंदी में बाल साहित्य का पहला व्यवस्थित इतिहास लिखने का श्रेय उन्हें जाता है. इस ग्रंथ का नाम 'हिंदी बाल साहित्य का इतिहास' है. इसके अलावा मनु ने 'हिंदी बाल कविता का इतिहास', 'हिंदी बाल साहित्य के शिखर व्यक्तित्व', 'हिंदी बाल साहित्य के निर्माता' और 'हिंदी बाल साहित्य: नई चुनौतियां और संभावनाएं' जैसे महत्त्वपूर्ण काम किए हैं. बाल उपन्यास 'एक था ठुनठुनिया' पर साहित्य अकादमी का पहला बाल साहित्य पुरस्कार. उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के 'बाल साहित्य भारती पुरस्कार' और दिल्ली हिंदी अकादमी के 'साहित्यकार सम्मान' और कविता-संग्रह 'छूटता हुआ घर' पर प्रथम गिरिजाकुमार माथुर स्मृति पुरस्कार सम्मानित. प्रसिद्ध साहित्यकारों के संस्मरण, आत्मकथा तथा बाल साहित्य से जुड़ी कुछ बड़ी योजनाओं पर काम करने के साथ ही स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं.
*
संपर्कः प्रकाश मनु, 545 सेक्टर-29, फरीदाबाद (हरियाणा), पिन-121008, मो- 09810602327, ईमेल- prakashmanu333@gmail.com