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खून अपना हो या पराया हो

पाकिस्तान में 132 बच्चों के कत्ल-ए-आम के बाद साहिर लुधियानवी की एक प्रासंगिक नज्म.

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Peshawar attack
Peshawar attack

पाकिस्तान के पेशावर में आतंकी हमले में 132 मासूमों की मौत से सारी दुनिया गमगीन है. ऐसे में मशहूर शायर साहिर लुधियानवी की ये नज्म एक बार फिर प्रासंगिक हो गई है.

खून अपना हो या पराया हो
नस्ल ए आदम का खून है आखिर
जंग मशरिक में हो या मगरिब में
अम्न ए आलम का खून है आख़िर

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बम घरों पर गिरें कि सरहद पर
रूहे-तामीर जख्म खाती है
खेत अपने जलें या औरों के
जीस्त फाकों से तिलमिलाती है

टैंक आगे बढ़ें या पीछे हटें
कोख धरती की बांझ होती है
फतेह का जश्न हो या हार का सोग
जिंदगी मय्यतों पे रोती है

जंग तो खुद ही एक मसला है
जंग क्या मसअलों का हल देगी
खून ओर आग आज बरसेगी
भूख ओर एहतियाज कल देगी
इसलिए ए शरीफ इंसानों
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप ओर हम सभी के आंगन में
शम्मा जलती रहे तो बेहतर है

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