ज्ञानपीठ निश्चित रूप से बड़ा पुरस्कार है, पर अमिताभ घोष के लिए नहीं. एक न एक दिन उन्हें यह मिलना ही था. अच्छी बात यह है कि इस बार यह पुरस्कार अपेक्षाकृत युवा लेखक को मिला है.
घोष का जन्म 11 जुलाई, 1956 को कोलकाता के एक बंगाली परिवार में हुआ था. शुरुआती पढ़ाई दून स्कूल में हुई, जहां विक्रम सेठ और रामचंद्र गुहा जैसे आज के नामचीन समकालीन लेखक भी थे. बाद में उन्होंने सेंट स्टीफेन कॉलेज तथा दिल्ली स्कूल आफ इकोनॉमिक्स से उच्च शिक्षा हासिल की. वह ऑक्सफोर्ड डीफिल करने गए. बाद के सालों में क्वीन्स कॉलेज, न्यूयॉर्क और सोर्बोंने ने अमिताभ घोष को डॉक्टरेट की उपाधि भी दी.
पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ समय तक दिल्ली के एक अखबार में नौकरी की और फिर पूरी तरह से लेखन से जुड़ गए.
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पुरस्कार और अमिताभ घोष एक दूसरे के पूरक रहे हैं. उनकी किताब ‘द सर्किल ऑफ रीजन’ को साल 1990 में ही फ्रांस प्रिक्स मेडिसिस अवॉर्ड मिल गया था. उनकी एक और किताब 'द शैडो लाइन्स' भी काफी चर्चित रही. 2010 में वह मार्गरेट अट्वूड के साथ डैन डेविड अवॉर्ड भी जीत चुके हैं. 2011 में उन्हें ब्लू मेट्रोपोलिस के इंटरनेशनल ग्रैंड प्रिक्स अवॉर्ड मिला था. उनकी किताब द सर्किल ऑफ रीजन ने फ्रांस के मुख्य साहित्यिक अवॉर्ड, प्रिक्स मेडिसिस जीता था, को दो प्रतिष्ठित अवॉर्ड और मिले, जिनमें साहित्य अकादमी और अनंदा पुरस्कार शामिल हैं.
'द कलकत्ता क्रोमोजोम' को साल 1997 में आर्थर सी. क्लार्क अवॉर्ड और 'द ग्लास पैलेस' को 2001 में फ्रैंकफ़र्ट बुक फेयर का 'इंटरनेशनल ई-बुक अवॉर्ड' मिला. जनवरी 2005 में 'द हंग्री टाइड' को 'क्रॉसवर्ड बुक प्राइज' दिया गया. खास बात यह कि साल 2008 में उपन्यास ‘सी ऑफ़ पॉपीज़’ को मैन बुकर प्राइज के लिए नामांकित किया गया था.
उनका यह उपन्यास क्रॉसवर्ड बुक प्राइज और इंडिया प्लाजा गोल्डन क्विल अवार्ड से भी नवाजा गया था. उनकी यह किताब देश और दुनिया में काफी लोकप्रिय हुई. 'द टाइम्स' के समीक्षक की टिप्पणी थी, 'मैं किसी अन्य समकालीन लेखक के बारे में नहीं सोच पा रहा हूं, जिसके साथ इतनी दूर तक, इतनी तेजी से जाना इतना रोमांचक हो सकता है.’ खुशवंत सिंह का कहना था 'सी ऑफ पॉपीज बेहद दिलचस्प किताब है... घोष ने इतना रोचक उपन्यास लिखा है जो हमें अंत तक बांधे रखता है.'
पुस्तक अंश: पोस्ट बॉक्स नं. 203 नाला सोपारा, दास्तान जो खास बन गई
अमिताभ घोष एक बड़े लेखक, शिक्षाविद और चिंतक हैं. उनकी किताबों का लगभग दो दर्जन भाषाओं में अनुवाद हो चुका है. वह स्विट्जरलैंड के लोकार्नो फिल्म फेस्टिवल और वेनिस फिल्म फेस्टिवल की जूरी में भी थे. उनके लेख द न्यूयॉर्कर, द न्यू रिपब्लिक और द न्यूयॉर्क टाइम्स में भी प्रकाशित होते रहे हैं. पेंगुइन इंडिया और हौगटन मिफ्फलिन यूएसए ने इनका संकलन छापा. वह देश और दुनिया की कई यूनिवर्सिटियों के विजिटिंग फैकल्टी भी रहे, जिनमें दिल्ली यूनिवर्सिटी, कंबोडिया, क्वीन्स कॉलेज और हार्वर्ड शामिल हैं.
उनकी एक और प्रसिद्ध किताब 'रिवर ऑफ स्मोक' को के मैन एशियन लिटरेरी प्राइज के लिए नामित किया गया था. भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री देकर सम्मानित किया. मुंबई लिट्फेस्ट के टाटा लिटरेचर लाइव में वह लाइफटाइम अचीवमेंट के अवॉर्ड से सम्मानित हो चुके हैं और अब ज्ञानपीठ.
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