आज छायावाद युग के प्रमुख कवि सुमित्रानंदन पंत की जयंती है. उनका जन्म अल्मोड़ा के कसौनी में हुआ था और उनकी दादी ने उनका पालन पोषण किया था. इस युग को जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' और रामकुमार वर्मा जैसे छायावादी प्रकृति उपासक-सौन्दर्य पूजक कवियों का युग कहा जाता है. सुमित्रानंदन पंत का प्रकृति चित्रण सबसे अच्छा बताया जाता है.
वे झरना, बर्फ, पुष्प, लता, भंवरा गुंजन, उषा किरण, शीतल पवन, तारों की चुनरी ओढ़े गगन से उतरती संध्या ये सब तो सहज रूप से काव्य का उपादान बने. उनका व्यक्तित्व भी आकर्षण का केंद्र बिंदु था, गौर वर्ण, सुंदर सौम्य मुखाकृति, लंबे घुंघराले बाल, उंची नाजुक कवि का प्रतीक समा शारीरिक सौष्ठव उन्हें सभी से अलग मुखरित करता था.
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उन्होंने सात साल की उम्र से ही कविता लेखन शुरू कर दिया था. उनके जीवनकाल में उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिनमें कविताएं, पद्य-नाटक और निबंध शामिल हैं. सुमित्रानंदन पंत अपने विस्तृत वाङमय में एक विचारक, दार्शनिक और मानवतावादी के रूप में सामने आते हैं किंतु उनकी सबसे कलात्मक कविताएं 'पल्लव' में संकलित हैं, जो 1918 से 1925 तक लिखी गई.
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उनकी विधाओं में कविता, उपन्यास, नाटक, निबंध शामिल है. वहीं प्रमुख कृतियों में हार (उपन्यास), उच्छ्वास, पल्लव, वीणा, ग्रंथि, गुंजन, ग्राम्या, युगांत, युगांतर, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, सत्यकाम, मुक्ति यज्ञ, तारापथ, मानसी, युगवाणी, उत्तरा, रजतशिखर, शिल्पी, सौवर्ण, अतिमा, पतझड़, अवगुंठित, ज्योत्सना, मेघनाद वध (कविता संग्रह) शामिल है.
उन्हें पद्मभूषण, ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. 28 सितंबर 1977 को इलाहाबाद में उनका निधन हो गया था.