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अदम गोंडवीः विद्रोह की रोशनाई से लिखा बेबाक कलाम

हमेशा दबे-कुचलों और कमजोरों की आवाज बनकर समाज सियासत और नौकरशाही में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ अदबी विद्रोह करने वाले अदम गोंडवी ने हिन्दी गजल को रूमानियत के घेरे से निकाल कर जनोन्मुखी बनाया और हर बुराई के खिलाफ अदबी जंग छेड़ी.

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Adam Gondvi
Adam Gondvi

हमेशा दबे-कुचलों और कमजोरों की आवाज बनकर समाज सियासत और नौकरशाही में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ अदबी विद्रोह करने वाले अदम गोंडवी ने हिन्दी गजल को रूमानियत के घेरे से निकाल कर जनोन्मुखी बनाया और हर बुराई के खिलाफ अदबी जंग छेड़ी. 18 दिसंबर को उनकी पुण्यतिथि है.

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मशहूर शायर अनवर जलालपुरी ने रामनाथ सिंह उर्फ अदम गोंडवी के अदबी मिजाज पर रोशनी डालते हुए कहा कि आजादी के बाद समाज में व्याप्त बुराइयों राजनेताओं और अधिकारियों के चरित्र और सामंती जुल्म पर गोंडवी ने जिस बेबाकी से अपनी लेखनी चलाई ऐसे रचनाकार बहुत कम मिलते है. उन्होंने बताया कि गोंडवी का लहजा ‘इंकलाब जिंदाबाद’ से आगे निकल कर बगावत का लहजा बन चुका था.

वह जब अपने बगावती जज्बात से भरे शेर सुनाते थे तो ऐसा महसूस होता था कि जैसे अगर उनका बस चले तो सारी व्यवस्था को पल भर में बदल दे और जितने भ्रष्ट लोग हैं सबको सलाखों के पीछे कर दें. मगर उनके कमजोर हालात ने उन्हें सिर्फ शायरी तक सीमित रखा. जलालपुरी ने कहा कि गोंडवी की उनकी शायरी कमजोर गरीब और शोषित लोगों के हाथों में एक हथियार की तरह थमा दी गयी है.

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वह समाज में बदलाव नहीं ला सके लेकिन उनकी शायरी की यह खूबी है कि व्यवस्था को परिवर्तित करने वाले लोग उनकी शायरी का एक मुद्दत तक इस्तेमाल करते रहेंगे. उन्होंने कहा कि हिन्दी गजल को आशिक और माशूक की रूमानियत से निकालकर उसे जनोन्मुखी और समाज संवेदी बनाने की दिशा में दुष्यंत कुमार की कोशिशों को आगे बढ़ाने का काम सही मायने में गोंडवी ने ही किया है.

जलालपुरी ने कहा कि बेहद कम पढ़े लिखे होने के बावजूद अदम गोंडवी ने अपनी रचनाओं में जिन उपमेय और उपमानों का प्रयोग किया है वह उनकी सोच और जानकारी पर दांतों तले अंगुली दबाने का मजदूर करता है. गोण्डा जिले के आटा गांव में 22 अक्टूबर 1948 को एक साधारण किसान परिवार में जन्मे रामनाथ सिंह का बचपन बहुत मुफलिसी में बीता. पारिवारिक पृष्ठभूमि कमजोर होने के कारण केवल प्राइमरी तक शिक्षा पाने के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और खेती किसानी में लग गये.

बचपन से ही उनका झुकाव कविता पाठ की ओर हो गये और वे आसपास के मुशायरों एवं कवि सम्मेलनों में जाने लगे. अस्सी का दशक आते-आते वह हिन्दुस्तान के कवि मंचों पर पहचाने जाने लगे. जलालपुरी के मुताबिक अदम की शायरी सामाजिक अन्याय और विषमता की शायरी है. वह हमें वहां खींच ले जाती है, जहां खड़े होकर हम अपनी व्यवस्था की स्याह सचाई को देखकर उससे गरीबों को होने वाली तकलीफ की शिद्दत का एहसास कर सकते है. गोंडवी का अन्तिम समय अस्पतालों में गुजरा.

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गंभीर बीमारी से पीड़ित होने पर उन्हें नवम्बर 2011 में गोण्डा के एक स्थानीय चिकित्सालय में भर्ती कराया गया. कुछ दिन उपचार के बाद उन्हें लखनऊ स्थित संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान ले जाया गया. ताउम्र व्यवस्था से मुठभेड़ करने वाला व्यक्ति 18 दिसम्बर 2011 को समय से मुठभेड़ में हार गया. ऐसे साहित्य मनीषी को पद्म विभूषण से सम्मानित किये जाने के लिए तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट राम बहादुर ने 19 नवम्बर 2011 को राज्य सरकार को संस्तुति भेजी थी, लेकिन अब तक दरख्वास्त अनुसनी है.

इनपुट भाषा से

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